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________________ ११० गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति तेना ऊपर एटले आर्षप्राकृत ऊपर मागधीनी असर ठीक देखावी 'अर्धमागधी' नो जोईए छतां ते आजकाल उपलब्ध थता अर्थविचार आर्ष प्राकृतमां जळवाई जणाँती नथी. माटे ज कधुं छे के वर्तमान जैन अंग- उपांग साहित्यमां तेनी मूळभाषा अर्धमागधीनुं झांखुं-आलुं स्वरूप सचवायुं छे अने मूळभाषा विशेष घसाई गई लागे छे. आर्षप्राकृतनी एक खास विशेषता एछे के जेम साधारण प्राकृतमां अनादिस्थ अने असंयुक्त एवा क, ग, च, ज, त, द, प, य, व अने ब लोप पामे छे तथा तेने बदले केटलाक प्रयोगोमां 'य' श्रुति थाय छे अने केटलाक प्रयोगोमां उदत्त स्वर - शेष स्वर- कायम रहे छे तेम आर्षप्राकृतमां धतुं नथी, तेमां तो केटलाक प्रयोगोमां ते व्यञ्जनो कायम रहे छे, केटलाक प्रयोगोमां ते ते व्यञ्जनोने ७५ आ ज हकीकत आचार्य हेमचंद्रे पोताना व्याकरणमां मागधीभाषानुं स्वरूप बतावतां आ प्रमाणे कही छे : ८८ 'यदपि पोराणं अद्धमागहभासानिययं हवइ सुत्तं" इत्यादिना आर्षस्य अर्धमागधभाषानियतत्वम् आम्नायि वृद्धैः तदपि प्रायः अस्यैव विधानात्, न वक्ष्यमाणलक्षणस्य - ( हेमचंद्र ८ -४ - २८७ ) तात्पर्य ए के २८७ मा सूत्रमां मागधी भाषामां 'अ' नो 'ए' थवानी सूचना करेली छे. हेमचंद्र कहे छे के जैन आगमोमां मागधीनुं आ एक लक्षण घटमान छे, बीजां - बाकीनां - लक्षणो प्रायः घटमान नथी. ७६ वर्तमानमा आगमोदयसमिति द्वारा के बीजी संस्थाओ द्वारा जे अंगउपांग सूत्रो प्रकट थयां छे तेमां छपायेला पाठो जोईने आगमोनी मूळ भाषाना स्वरूप संबंधे निश्चित अभिप्राय आपवो कठण छे. तेमां छपायेला पाठो बधा एकधारा नथी, तेम संपादको पाठोनी विशिष्ट शुद्धि माटे उपेक्षा राखी छे. तेम छतां ए अव्यवस्थित पाठोमां रहेली 'त' श्रुति तेम ज क्वचित् आवती 'र' ना 'ल' नी श्रुति द्वारा जाणी शकाय छे के तेमां अत्यारे पण 'अर्धमागधी ' नुं आछु स्वरूप सचवायुं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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