SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૮૨ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति प्राकृत- संस्कृत-मागध - पिशाचभाषाश्च शौरसेनी च । षष्ठोऽत्र भूरिभेदो देशविशेषाद् अपभ्रंशः ॥ " (( 6 आ श्लोकमा प्राकृत, संस्कृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी अने छट्ठी अनेकमेदवाळी अपभ्रंश एम छ भाषानां नाम गणाव्यां छे. तेमां सर्वथी प्रथम ' प्राकृत' नो उल्लेख छे. ग्रंथकार लौकिकसंस्कृतनो उद्भट विद्वान होईने तेनो ज पक्षपाती होय ते बनवाजोग छे, छतांय तेणे बधी भाषाओमां ' प्राकृत' ने ज अग्रस्थान शा माटे आप्युं छे ? एनो खुलासो आपवा श्रीनमिसाधुए ' प्राकृत' शब्दनां पूर्वोक्त बे निर्वचनो कर्यां छे, तेमां पहेलामां बतान्युं छे के - स्वाभाविक वचनव्यापारनुं नाम ' प्रकृति' छे. जे उच्चारणो सहेजे सहेजे नीकळे छे, जेमनी ऊपर व्याकरण वगैरे भाषासंबंधी शास्त्रो संस्कारनो ओप नथी चडाव्यो एवां उच्चारणो ' प्रकृति ' कहेवाय. जे भाषानो देह एवां उच्चारणोथी घडायो छे ते भाषानुं नाम प्राकृत अथवा एवां उच्चारणो द्वारा जे भाषा नीपजी छे ते 'प्राकृत भाषा कहेवाय. बीजा निर्वचनमां 'प्राक् + कृत' एवा बे शब्दोद्वारा ' प्राकृत' शब्द नीपजाव्यो छे अने एनो अर्थ 'जे सर्वथी प्रथम करेलं होवाथी बधी भाषाओनुं कारणरूप छे तेनुं नाम प्राकृत एम बताव्यो छे. पहेला निर्वचनमां जे अर्थ कह्यो छे ते ज अर्थ आ बीजामां बताव्यो छे. मारा नम्र मत मुजब पहेलुं ज निर्वाचन विशेष योग्य छे. जो के पहेला अने बीजाना भावमां खास भेद नथी छतां ' प्राक् + कृत' मांथी प्राकृत शब्द नीपजाववो ए करतां 'प्रकृति' मांथी नीपजाववो विशेष संगत छे तेथी पहेला निर्वचन तरफ मारो पक्षपात छे. प्राकृत शब्दनो जे अर्थ आगळ बतावी गयो धुं ते अने उक्त नमिसाधुए प्राकृतनो जे अर्थ समझाव्यो छे तेमां लेश पण भेद नथी, माटे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy