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________________ ___+ + + + + + + + + + + + विजयगच्छके अभयदेवसूरिका रचा हुवा पांडवचरीत्र पर बहोत रमणीक है उसे छापके प्रसिद्ध करनेसे बहोत लाभ होगा (1) xx __+ + + + + + + + + + + दःखुद भीपूज्यजीका ॥ भी ॥ ता. ७-७-१४ई. स्वस्ति श्रीपार्श्वजिनं प्रणम्य श्रीमत् कोटानगरात् लिखायतं भट्टारक श्रीपूज्यश्रीजिनसुमातिसागरसूरिभिः केन मुंबई x x x x x x x श्रावक x x जीवनचंद साकरचंद योग्य धर्मलाभ वंचना x x x x x x अपंच x पत्र मिला x x x x x x रासका अन्तिम लिखा उसे देखकर और पट्टावलीको देखा सो पूर्णरूपसे मिला दर असलमें केशराजजी हमारे गच्छमें केही यती हैं इसमे कोइ तरेकी संकास्पद नहीं है क्यों के केशराजजीने स्वयं रासके अंतमे खुलासा कर दिया है और साफ लिख दिया है के विजयसरि धर्मसरि क्षमासागरसूरि पद्मसागरसूरि गुणसागरसूरिजी, तो केशराजजी विजयगच्छ लिखा सो पहले विजयगच्छका नाम न था किन्तु मलधारपुनमिया था (!) सो उनोंने उस नामको न लिखते हुवे विजयगच्छ लिखा सो साथमेंही इस वातकोभी जाहर कर दिया है के विजयगच्छ किससे और कब हुवा (1) { ત્યાંથી શ્રી કેશરાજજીને બદલે કેશવજીની બીના આવવાથી રાસની અંતિમ પ્રશસ્તિ તથા બીજે થોડોક ભાગ લેવા માટે અમારા તરફથી મોકલાવી પૂછાવવામાં આવ્યું હતું, કે “ આ બીરારાજ ખાપના ગચ્છના છે કે બીજા” તેના ઉત્તરમાં આ પત્ર આવેલ છે. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004836
Book TitleAnand Kavya Mahodadhi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivanchand S Zaveri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1914
Total Pages496
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Literature
File Size16 MB
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