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________________ + + + + + + + + + + + और x लिखाके ' विजयगच्छको इधरके लोग ढुंढियागच्छ कहतें हैं' सो कहनेवालेकी भूल है क्योंके ढुंढियोका प्रचार सं. १५ से या १७ से (में) हुवा है ओर लूंकाजीसे चला है और विजयगच्छ तो कोटिगणसे निकला है चंद्र साखा है प्रष्न वाहन कुल है जव कोटीगणसे चार साखा निकली उसी चारमें चंद्र साखा भी है उस वसत इस गच्छका नाम मलधारगच्छ पडा बादको श्रीहेमाचार्यजीमहाराज ने अमावसकी पूनम करी तवसे मलधारपुनमियागच्छ कहा जाने लगा बादको सं० १५२५ के करीब विजयराजसूरिजीने कुंभलगढमें कुंभाराणाके सामने चोथकी संवच्छरी बंद कर पंचमीकी स्थापन करी इसका खरतरगच्छवालोंसे विवाद हुवा महाराजकी जीत हुई तव कुंभारानाजीने कहा के आप सदा जीतनेवाले हो (1) आप विजयकरनेवाले हो (1) तवसे मेवाडमें ५ मीकी संवच्छरी कायम करी चोथकी बंद करी और जबीसे विजेगच्छ येसा नाम जारी दुबा (!) इसतरे विजयगच्छकी उत्पत्ति हैगी और करीब ७२ बहत्तर पाट हो चुके आखिरी, में हुं सो नाम आप जानते है और गिनति अछीतरे पट्टावलीमें देखके लिखेंगे या आप लिखें तो पट्टावली भेजदेवें सो देख लेना और हमारे यहां भंडारमें अछी अछी पुस्तकें हैं.सो आपको छापना हो तो येक जना यहां चला आवे तो देखके जरूरतकी समझके छापनेको ले जावें. xx x x x .. x x x x x x x x और बहोत सबूत इसके है के ये गच्छ दुढियागच्छ नहीं हो सकता है (1) x x x x x x सिद्धपुर पट्टनमें हेमाचार्यजीकाभंडार है सो आजतक नहीं खुला (1) बीना मेरे खुलेगा नहीं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004836
Book TitleAnand Kavya Mahodadhi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivanchand S Zaveri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1914
Total Pages496
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Literature
File Size16 MB
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