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________________ सो विक्रम सं. १५२५ में विजयसूरि पाट विराजके कुंभलगढमें कुंभमाराणाजीसें विजयगच्छ इसका नाम पड़ा (1) इसीसे केशराज 'विजयीरषिराजा' येसा पद दिया है इस पदसे साफ जाहर है की विजयसूरिजीसे विजयगच्छ नाम हुवा आगे धर्मसूरि आदीका पाटपरंपरा नाम दिया मगर केशराजजी गुणसागरसूरिजी महाराजके शीष्य थे (!) + + + + + + + + + बस (!) आप पुस्तकमें इसी तरें छापदेवें इसमें जरा शंका न करें (!) हमनें ये वात पट्टावली और रासको मिलानेपर मिला जब लिखा है और + लिखाके 'विजयगच्छ स० १५७० में हुवा' सो ठिक है उपर लिखी वातसे आपका लेख सिद्धहै परंतु विजयगच्छ कोइ नया गच्छ न मानीयेगा (!) किंतु पूनमियागछकोही विजयगच्छ कहते हय (!) इसका खुलासा पहेलेभी लिखाथा और इसमेंभी इसारा है खुलासा चाहो तो पट्टावालि भेज दूं उसमें देख लो हम तलास कर रहें है मगर अभीतक केशराजजाँका जीवनचरित्र नहीं मिलताहै न संवतही (!) वाकी + लिखाके 'विजयगच्छ दुसरा हुवा' सो भ्रम है विजयगच्छ येकही है और नहीं (1) इसे सही जानना + और बात पूछना हो सो लिखियेगा मेरी बुद्धि के अनुसार लिखुंगा + + + + + + __ + + + + + + दःखुद श्रीजीका छे (ता. क.) और केशवजी दुसरे मालुम होते हैं न अपने गछके होना पायाजाता है (!) वाकी थे यती (!) x x x Jain Education International Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.ja
SR No.004836
Book TitleAnand Kavya Mahodadhi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivanchand S Zaveri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1914
Total Pages496
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Literature
File Size16 MB
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