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________________ - २८ से प्रसिद्ध वाक्यों के संग्रहीता यह देवर्धिगणि ही माने जाते हैं। उमा-स्वाति के “तत्त्वार्थाधिगम सूत्र" जो प्राय: जिननिर्वाण के ४७१, अर्थात् विक्रम संवत के प्रारम्भ के लगभग किसी समय में लिखें गये और जिनमें जैनदर्शन का सार बहुत उत्तम रीति से कहा है वे इनसे भिन्न है। देवर्धिगणि के संकलित सूत्र, आचारांग, सूत्रकृतांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, दशवैकालिक सूत्रादि को देखने का मुझे अवसर नहीं मिला । श्री बेचरदासजी ने उन्हीं सूत्रों में से स्वयं महावीर स्वामी के कहे श्लोकों का उद्धरण और संदर्भण प्रस्तुत ग्रंथ “महावीर वाणी" में किया है। २५ सूत्रों वा अध्यायों मे ३४६ प्राकृत श्लोकों और उनके हिन्दी अनुवादों का संग्रह है। मुझको नहीं ज्ञात है, कि जैन वाङ्मय में इस प्रकार का कोई ग्रंथ, प्राचीन हैं वा नहीं प्राय: न होगा अन्यथा श्री बेचरदास जी को यह परिश्रम क्यों करना होता । बौद्ध वाङ्मय में एक छोटा पर बहुत उत्तम ग्रंथ “धम्म-पद" के नाम से वैसा ही प्रसिद्ध है, जैसा वैदिक वाङ्मय में "भगवद्गीता"; “धम्म-पद" भी स्वयं बुद्धोक्त पद्यों का संग्रह कहा जाता है। संभव है कि “महावीर वाणी" जैन संप्रदाय में प्राय: वही काम देने लगे, जो बौद्ध सम्प्रदाय में धम्म-पद देता है। भेद इतना है कि “महावीर वाणी" के अधिकतर श्लोक संसार की निन्दा करने वाले, वैराग्य जगाने वाले, यतिधर्म-संन्यासधर्म सिखाने वाले हैं; गृहस्थोपयोगी उपदेश कम हैं, पर हैं; विनय सूत्राध्याय में कितने ही उपदेश गृहस्थोपयोगी हैं। मुझे यह देख कर विशेष आनन्द हुआ कि बहुतेरे श्लोक ऐसे हैं जिनके समानार्थ श्लोक प्रामाणिक वैदिक और बौद्ध ग्रंथो में भी बहुतायत से मिलते हैं। प्रथम मंगलाध्याय के बाद के ६ अध्यायों में पाँच धर्मो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004697
Book TitleMahavira Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherUSA Jain Institute of North America
Publication Year1997
Total Pages272
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Religion
File Size8 MB
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