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________________ करुणामयी, वैराग्यभरी वाणी को सुन और पढ़ कर चित्त में श्रान्ति के स्थान में प्रसन्नता ही हुई और सात्त्विक भावों का अनुभव हुआ। ... महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध कुछ वर्षों की छुटाई बढ़ाई से समकालीन हुए-यह निर्विवाद है। किन्तु इन दोनों महापुरुषों के जन्म और निर्वाण की ठीक तिथियों के विषय में ऐतिह्यविदों में मतभेद है; तथापि यह सर्व-सम्मत है कि विक्रम पूर्व छठी शताब्दी में दोनों ने उपदेश किया। जैन सम्प्रदायों का विश्वास है कि महावीर का जिनका पूर्वनाम "वर्धमान" है, जन्म विक्रम पूर्व ५४२ और निर्वाण वि० पू० ४७० में हुआ। ___ उस समय में “लिपि" कम थी, “श्रुति" और "स्मृति" की ही रीति अधिक थी, गुरु के, ऋषि के, महापुरुष के, आचार्य के वचनों को श्रोतागण सुनते और स्मृति में रख लेते थे। महावीर के निर्वाण के बाद दूसरी शताब्दी में बड़ा अकाल पड़ा; जिनानुयायी “क्षपण" वा "श्रमण" कहलाने वाले साधुओं का संघ बहुत बिखर गया; कंठ करने की परम्परा में भंग हुआ; बहुत उपदेश लुप्त हो गये। अकाल मिटने के बाद स्थूलभद्राचार्य की देखरेख में पाटलिपुत्र में संघ का बड़ा सम्मेलन हुआ; बचे हुए उपदेशों का अनुसन्धान और राशीकरण हुआ; पर लिखे नहीं गये । महावीर निर्वाण की नवीं शताब्दी (वीर निर्वाण ८२७-८४० तक) में, मथुरा में स्कंदिलाचार्य और वलभी में नागार्जुन के आधिपत्य में सम्मेलन होकर उपदेशों का संग्रह किया गया और उन्हें लिखवाया भी गया । निर्वाण की दसवीं शताब्दी में बहुत से श्रुतधारी साधुओं का विच्छेद हुआ । देवर्धिगणिक्षमा श्रमण ने अवशिष्ट संघ को वलभी नगर में एकत्र करके उक्त दोनों - माथुरी और वलभी - वाचनाओं की समन्वयपूर्वक लिपि कराई। जिनोक्त सूत्र के नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004697
Book TitleMahavira Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherUSA Jain Institute of North America
Publication Year1997
Total Pages272
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Religion
File Size8 MB
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