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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १७.छट्टओ उद्देसो. १. [प्र०] पुढविक्काइएणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए, समोहणित्ताजे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते! किं पुछि उववजित्ता पच्छा संपाउणेजा, पुष्विं संपाउणित्ता पच्छा उववजेजा [उ.] गोयमा! पुष्विं वा उववजित्ता पच्छा संपाउणेजा, पुर्वि वा संपाउणित्ता पच्छा उववजेजा। [प्र०] से केणटेणं जाव-पच्छा उववजेजा ? [उ०] गोयमा! पुढविकाइयाणं तओ समुग्धाया पन्नत्ता, तं जहा-वेदणासमुग्घाए, कसायसमुग्धाए, मारणंतियसमुग्घाए । मारणंतियसमुग्घाएणं समोहणमाणे देसेण वा समोहणति, सवेण वा समोहणति; देसेण वा समोहणमाणे पुषि संपाउणित्ता पच्छा उववजिजा, सच्चेणं समोहणमाणे पुछि उववजेत्ता पच्छा संपाउणेजा; से तेणट्टेणं जाव-उववजिज्जा ।
___२. [प्र०] पुढविक्काइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव-समोहए, समोहणित्ताजे भविए ईसाणे कप्पे पुढवि०१ [उ०] एवं चेव ईसाणे वि, एवं जाव-अच्चुय-गेविजविमाणे, अणुत्तरविमाणे; ईसिपभाराए य एवं चेव ।
३. [प्र०] पुढविक्काइए णं भंते ! सकरप्पभाए पुढवीए समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढवि० ? [उ.] एवं जहा रयणप्पभाए पदविकाइओ उववाइओ एवं सक्करप्पभाए वि पुढविकाइओ उववाएयचो, जाव-ईसिंपम्भाराए, एवं जहा रयणप्पभाए वत्तवया भणिया, एवं जाव-अहेसत्तमाए समोहए ईसीपब्भाराए उववाएयचो, सेसं तं चेव । 'सेवं भंते!, सेवं भंते ति।
सत्तरसमे सए छट्ठओ उद्देसो समत्तो ।
षष्ठ उद्देशक.
१. [प्र०] हे भगवन् ! जे पृथिवीकायिक जीव आ रत्नप्रभा पृथिवीमा मरण समुद्घात करीने सौधर्मकल्पमा पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे ते हे भगवन् ! शुं प्रथम उत्पन्न थाय अने पछी आहार करे-पुद्गल ग्रहण करे के प्रथम पुद्गल ग्रहण करे अने पछी उत्पन्न थाय ! [उ०] हे गौतम ! ते *प्रथम उत्पन्न थाय अने पछी पुद्गल ग्रहण करे; अथवा प्रथम पुद्गल ग्रहण करे अने पछी उत्पन्न थाय. [प्र०] ते शा कारणथी यावत्-पछी उत्पन्न थाय ! [उ०] हे गौतम ! पृथिवीकायिकोने त्रण समुद्घातो कह्या छे; ते आ प्रमाणे-वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात अने मारणांतिक समुद्घात. ज्यारे जीव मारणांतिक समुद्घात करे छे त्यारे. दिशथी पण समुद्घात करे छे पण समुद्घात करे छे. ज्यारे देशथी समुद्घात करे छे त्यारे प्रथम पुद्गल ग्रहण करे छे अने पछी उत्पन्न थाय छे, ज्यारे सर्वथी समुद्घात करे छे त्यारे प्रथम उत्पन्न थाय छे भने पछी पुद्गल ग्रहण करे छे. ते कारणथी यावत्-पछीथी उत्पन्न थाय छे.
२. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिक जीव आ रत्नप्रभा पृथिवीमां यावत्-मरणसमुद्घात करी जे ईशानकल्पमां पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] पूर्व प्रमाणे ईशानकल्पसंबन्धे जाणवू. एम यावत्-अच्युत, अवेयक विमान, अनुत्तर विमान अने ईषत्प्राग्भारा पृथिवी संबन्धे पण जाणवू.
३. [प्र०] हे भगवन् ! जे पृथिवीकायिक जीव आ शर्कराप्रभा पृथिवीमां मरण समुद्घात करीने सौधर्म कल्पमां पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] जेम रत्नप्रभा पृथिवीना पृथिवीकायिकनो उत्पाद कह्यो छे तेम शर्कराप्रभाना पृथिवीकायिकनो उत्पाद कहेवो. यावत्-ए प्रमाणे ईषत्प्राग्भारा पृथिवी सुधी जाणवू. तथा जेम रत्नप्रभाना पृथिवीकायिकनी वक्तव्यता कही तेम यावत्सातमी नरकपृथिवी सुधीमां मरणसमुद्घातथी समवहत थयेला जीवनो ईषत्प्राम्भारामां उपग्रत कहेवो. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'.
सत्तरमा शतकमां पष्ठ उद्देशक समाप्त.
१. जीव मरणसमुद्घातथी निवृत्त थई ज्यारे पूर्वना शरीरने सर्वथा छोडी दडानी पेठे सर्व आत्मप्रदेशो साथे उत्पत्तिस्थळे जाय त्यारे पूर्व उत्पन्न थाय अने पछी पुद्गलग्रहणरूप आहार करे, पण श्यारे मरण समुद्घात करतां ज मरण पामे अने ईलिकानी गतिथी उत्पत्तिस्थाने जाय, त्यारे पहेला आहार करे अने पछी उत्पन्न थाय. अर्थात्-पूर्वना शरीरमा रहेला जीव प्रदेशोने ईयळनी पेठे संहरी समस्त जीवप्रदेशो साथे उत्पत्तिस्थाने जाय त्यारे प्रथम पुद्गलग्रहण करे अने पछी उत्पन्न थाय.-टीका.
1 मारणान्तिक समुद्घात करता ज मरण पामे त्यारे ते ईयळनी गतिथी उत्पत्तिस्थाने प्राप्त थाय, ते वखते जीवनो अंश पूर्वना शरीरमा रहेलो होवाथी अने अमुक अंश उत्पत्ति स्थान प्राप्त थयेलो होवाथी 'देशथी समुद्घात करे' एम कहेवाय छे. पण ज्यारे मरणसमुदूधातथी निवृत्त थईने पछी मरण पामे छे त्यारे सर्व प्रदेशने संहरी दडानी पेठे उत्पत्तिस्थळे प्राप्त थाय छे, माटे 'सर्वथी समुद्घात करे छे' एम कहेवाय छे.-टीका.
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