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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे--
शतक १७.-उद्देशक ४. चउत्थो उद्देसो. १.प्राणं कालेणं, तेणं समएणं रायगिहे नगरे जाव-एवं वयासी-अत्थि णं भंते ! जीवाणं पाणावापणं किरिया कजा ? [उ०] हंता, अत्थि ।।
२. [प्र०] सा भंते ! किं पुट्ठा कज्जइ, अपुट्ठा कजइ १ [उ०] गोयमा ! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ । एवं जहा पढमसए छहेसए जाव-णो 'अणाणुपुश्विकडा' ति वत्तवं सिया, एवं जाव-वेमाणियाणं, नवरं-जीवाणं एगिदियाण य निधाधाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुश्च सिय तिदिसि, सिय चउदिसि, सिय पंचदिसिं, सेसाणं नियम छहिसिं ।
३. [प्र०] अस्थि णं भंते ! जीवाणं मुसावारणं किरिया कज्जा ? [उ०] हता, अस्थि।
४. [प्र०] सा भंते ! किं पुट्ठा कजइ, अपुट्ठा कजति ? [उ०] जहा पाणाइवाएणं दंडओ एवं मुसावारण वि; एवं अदिनादाणेण वि, मेहुणेण वि, परिग्गहेण वि । एवं एए पंच दंडगा।
५. [प्र०] जं समयं णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कजइ सा भंते । किं पुट्ठा कज्जा, अपुट्ठा कजाउ०] एवं तहेव जाव-पत्तत्रं सिया, जाव-वेमाणियाणं, एवं जाव-परिग्गहेणं, एवं पते वि पंच दंडगा।
६. [प्र०] ज देसेणं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कजइ ? [उ०] एवं चेव, जाव-परिग्गहेणं, एते वि पंच दंडगा।
७. [प्र०] जं पएसं गं भंते ! जीवाणं पाणातिवाएणं किरिया कजइ सा भंते किं पुट्ठा कजर-एवं तहेव दंडओ। [उ०] एवं जाव-परिग्गहेणं । एवं एए वीसं दंडगा।
कराय।
चतुर्थ उद्देशक. प्राणातिपात बगेरे १. [प्र०] ते काळे ते समये राजगृह नगरमा [भगवान् गौतम] यावत्-आ प्रमाणे बोल्या के, हे भगवन् ! जीवो वडे प्राणातिपातद्वारा थवी क्रिया.
द्वारा क्रिया-कर्म कराय छ ! [उ०] हा, कराय छे. स्पृष्ट के अस्पष्ट कर्म २. [प्र०] हे भगवन् ! ते क्रिया (कर्म) रपृष्ट-आत्माए स्पर्शेली कराय के अस्पृष्ट-आत्माना स्पर्श विना कराय: [उ.] हे गौतम!
ते स्पृष्ट कराय, पण अस्पृष्ट न कराय-इत्यादि बधुं प्रथम शतकना *छट्टा उद्देशका कह्या प्रमाणे कहे; यावत्-ते क्रिया (कम) अनुक्रमे कराय छे, पण अनुक्रम विना कराती नथी. ए प्रमाणे दंडकना क्रमथी यावत्-वैमानिको सुधी जाणवू. परन्तु विशेष ए के जीवो अने एकेन्द्रियो व्याघात-प्रतिबंध सिवाय छ ए दिशामाथी आवेलां कर्म करे छे, अने जो व्याघात होय तो कदाच त्रण दिशामांथी, कदाच चार दिशामाथी अने कदाच पांच दिशामांथी, आवेलां कर्म करे छे. [जे एकेन्द्रियो लोकान्ते रहेला छे, तेने उपरनी अने आसपासनी दिशाथी कर्म आववानो संभव नथी, तेथी तेओ कचित् त्रण दिशामांथी कदाचित् चार दिशामांथी, अने कदाचित् पांच दिशामांथी आवेलं कर्म करे छे. अने बाकीना जीवो लोकना मध्य भागमा होवाथी व्याघातना अभावे छ ए दिशामाथी आवेलं कर्म करे छे. ते सिवाय बाकीना जीवो तो
अवश्य छ ए दिशामांथी आवेलां कर्म करे छे.] मृषावाद द्वारा थती . ३. [प्र०] हे भगवन् ! जीवो मृषावादद्वारा कर्म करे छे ! [उ०] हा, करे छे. क्रिया.
१. प्र०] हे भगवन् । शुं ते क्रिया-कर्म स्पृष्ट कराय-इत्यादि प्रश्न. [उ०] जेम प्राणातिपात संबन्धे दंडक को छे तेम मृषावाद संबन्धे पण दंडक कहेवो. एम अदत्तादान, मैथुन अने परिग्रहसंबन्धे पांचे दंडको कहेवा.
५. [प्र०] हे भगवन् ! जे समये जीवो प्राणातिपातद्वारा (कर्म) करे छे ते समये हे भगवन् ! ते स्पृष्ट कर्म करे छे के अस्पृष्ट कर्म करे छे ! [उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवू. यावत्-ते 'अनानुपूर्वीकृत नथी' त्यांसुधी कहे, ए प्रमाणे-यावत्-दंडकना क्रमथी वैमानिको
सुची यावत्-परिग्रह संबन्धे जाणवू. बधा मळीने पूर्ववत् पांचे दंडको मृषावाद संबन्धे कहेवा. क्षेत्रने आनयी कर्म. ६. [प्र०] हे भगवन् ! जे क्षेत्रमा जीवो प्राणातिपात द्वारा कर्म करे छे ते क्षेत्रमा स्पृष्ट के अस्पृष्ट कर्म करे छे-इत्यादि प्रश्न.
[उ०] पूर्व प्रमाणे उत्तर कहेवो. यावत्-परिग्रह सुधी जाणवू. एम पांचे दंडको कहेवा. प्रदेशने माययी ७. [प्र०] हे भगवन् ! जे प्रदेशमा जीवो प्राणातिपात द्वारा कर्म करे छे ते प्रदेशमां शुं स्पृष्ट कर्म करे छे के अस्पृष्ट कर्म करे क्रिया. .
छे-इत्यादि पूर्व प्रमाणे दंडक कहेवो. [उ०] ए प्रमाणे यावत्-परिग्रह सुधी जाणवु. एम बधा मळीने विीश दंडको कहेवा.
२* भग• खं० १.१ उ.६ पृ. १६५-१६६.
+ प्राणातिपातथी परिग्रह सुधीना सामान्य पांच दंडको, अने ए प्रमाणे समय, देश अने प्रदेश आश्रयी पण पांच पांच दंडको मळी वीश दंडको जाणवा.
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