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________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १६.-उद्देशक देसा ते नियम एगिदियदेसा य, अहवा पगिदियदेसा य बेइंदियस्स य देसे-एवं जहा दसमसए अग्गेयी दिसा तहेव, नवरं देसेसु अणिदियाण आइल्लविरहिओ । जे अरूवी अजीवा ते छविहा, अद्धासमयो नत्थि । सेसं तं चेव निरवसेसं। ३. [प्र०] लोगस्स णं भंते ! दाहिणिल्ले चरिमंते किं जीवा० ? [उ०] एवं चेव, एवं पञ्चच्छिमिल्ले घि, उत्तरिले पि । ४. [प्र०] लोगस्स णं भंते ! उवरिले चरिमंते किं जीवा०-पुच्छा । [30] गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीवप. देसा वि, जाव-अजीवपएसा वि । जे जीवदेसा ते नियम पगिदियदेसा य आणदियदेसा य, अहवा एगिदियदेसा य अणिदियदेसा य बेंदियस्स य देसे, अहवा एगिदियदेसा य अणिदियदेसा य बेंदियाण य देसा, एवं मझिल्लविरहिओ जाव-पंचिं. दियाणं । जे जीवप्पएसा ते नियम पर्गिदियप्पएसा य आणि दियप्पएसा य, अहवा एगिदियप्पएसा य अणिदियप्पएसा य दिन छे, अजीवदेशो छे अने अजीव प्रदेशो पण छे. जे जीवदेशो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवना देशो छे, अथवा एकेंद्रियना देशो अने अनिन्द्रियनो (एक) देश छे–इत्यादि बधु *दशमा शतकमां कहेल आग्नेयी दिशानी वक्तव्यता प्रमाणे कहे. विशेष ए के, देशोना विषयमा अनिद्रियो माटे प्रथम भांगो न कहेवो. त्यां जे अरूपी अजीवो रहेला छे ते 'छ प्रकारना छे अने अद्धासमय (काळ) नथी. बाकी बधुं तेज प्रमाणे जाणवू. ३. [प्र०] हे भगवन् ! लोकना दक्षिण दिशाना चरमांतमा [दक्षिण बाजुना छेडाने अंते ] जीवो छे-इत्यादि सर्व पूर्व प्रमाणे पूछq. [उ०] पूर्व प्रमाणेज बधुं कहेवू, अने ए प्रमाणे पश्चिम चरमांतमा तथा उत्तर चरमांतमा पण समजवु. ४. प्र०] हे भगवन् ! लोकना उपरना चरमांतमा जीवो छे-इत्यादि पृच्छा. [उ.] हे गौतम ! त्यां जीवो नथी, पण जीवदेशो छे, जीवप्रदेशो छे, यावत्-अजीवप्रदेशो पण छे. जे जीवदेशो छे ते अवश्य एकेंद्रियोना देशो अने अनिंदियोना देशो छे, १ अथवा एकेद्रियोना देशो, अनिन्द्रियोना देशो अने बेइंदियनो एक देश छे. २ अथवा एकेंद्रियोना देशो अनिद्रियोना देशो अने बेइंद्रियोना देशो छे. एम वचला भांगा सिवायना त्रिकसंयोगी बीजा बघा भांगा कहेवा. ए प्रमाणे यावत्-पंचेंदियो सुघी कहे. त्यां जे जीवप्रदेशो छे ते अवश्य एकेंदियोना प्रदेशो अने अनिद्रियोना प्रदेशो छे. १ अथवा एकेंद्रियोना प्रदेशो, अनिंद्रियोना प्रदेशो अने एक बेइंद्रियना प्रदेशो छे. २ अथवा एकेंद्रियोना प्रदेशो, अनिद्रियोना प्रदेशो अने बेइंद्रियोना प्रदेशो छे. ए प्रमाणे "प्रथम भांगा सिवायना बीजा बधा भांगा कहेवा. दक्षिणादि चरमांत. उपरनो चरमांत. २. भग० खं०३ श०१. उ०१पृ० १८९. भरूपी अजीबो छ प्रकारना -1 धर्मास्तिकायदेश अने २ प्रदेश, ३ अधर्मास्तिकाय देश अने ४ प्रदेश, तथा ५ आकाशास्तिकायदेश भने ' प्रदेश. समयक्षेत्रना अभावथी अद्धासमय नथी. ३ लोकना तथा रमप्रभामादि साते नरक भने सौधर्मथी अनुत्तर सुधीना देवलोकना पूर्वादि चारे दिशाओना चरमान्तने आश्रयी जीवदेश भने जीवप्रदेशना भांगाओर्नु यत्र एक के अनेक जीवोना एक के भनेक देशादि. एकेन्द्रिय. बेइन्द्रिय. तेइन्द्रिय. चउरिन्द्रिय. पञ्चेन्द्रिय. अनिन्द्रिय. कुलांगा. १-१ १-२ २-२ प्रदेश. १-२ १-२ । १-१ १-२ २-२ १-२ २-२ १५ २-२ १-२ १-२ ___आ एकेन्द्रियादि जीवोना देश प्रदेशना भोगाओमा प्रथम बांक जीवनो सूचक छ भने बीजो आंक तेना देश भने प्रदेशोनो सूवक छ. ज्या २-२ अंक मूकेला छे त्या अनेक जीवोना अनेक देशो या प्रदेशो समजवा.अहिं देशभांगाओमा एकेन्द्रियने आश्रयी असंयोगी एक अने तेनी साथे बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय अने पंचेन्द्रियना त्रण त्रण भांगा अने अनिन्द्रियना बे भांगा जोडता द्विकसंयोगी चौद भर्भागा जाणवा, अने ए रीते प्रदेशभांगामा असंयोगी एक भने द्विकसंयोगी दश जाणवा. ४३ उपरना चरमान्तमा सिद्धो होवाथी त्यां एकेन्द्रियोना देशो अने अनिन्दियोना देशो होय छे, माटे भा द्विकर्मयोगी एक भौगो थाय छे. त्रिकसंयोगीमां बब्वे भांगा करवा; कारण के 'एकेन्द्रियोना देशो, अनिन्द्रियोना देशो अने एक बेइन्द्रियना देशो' आ मध्यम भांगो घटतो नथी. केमके कोई बेइन्द्रिय जीव मरणसमुद्धात बडे मरी उपरना चरमान्तने विषे रहेला एकेन्द्रिय जीवमा उत्पन्न थाय तो पण प्रदेशनी हानि वृद्धिथी थयेल लोकदन्तकविषम भाग नहि होवाथी पूर्व चरमान्तनी पेठे त्यां बेइन्द्रियना अनेक देशो संभवता नथी. पूर्व चरमान्तमा तो प्रदेशनी हानि-वृद्धि थती होवाथी भनेक प्रतरात्मक लोकदन्तक होवाने लीधे त्यो बेइन्द्रिय जीवना अनेक देशो संभवे छे. माटे उपरना मध्यम भंगरहित त्रिकसंयोगी बम्बे भांगा जाणवा. 1 पूर्व चरमान्तमा जीवदेश संबन्धे द्विकसयोगी त्रण भांगा थाय छे, तेमांनो 'एकेन्द्रियोना देशो अने बेइन्द्रियनो देश' ए प्रथम भांगो छ, तेने उपरना चरमान्तमा जीवप्रदेशना त्रिकसंयोगी भांगा करवामां वर्जयो. अर्थात्-'एकेन्द्रियोना प्रदेशो,अनिन्द्रियोना प्रदेशो, बेइन्द्रियनो प्रदेश'-एवो त्रिकसंयोगी भंग न करवो, कारण के तेमा 'बेइन्द्रियनो प्रदेश' ए अंशनो असंभव छे. केवलि समुद्धात समये लोकव्यापक अवस्था सिवाय जीवोनो ज्यां एक प्रदेश होय स्या असंख्याता प्रदेशो होय छे, तेथी उपरना चरमान्तमा एकेन्द्रियो भने अनिन्दियोना प्रदेशो संभवे छे. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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