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शतक १६. - उद्देशक ६०
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
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यस्स परेसा य, अहवा पनिदियपसा व वर्णिदिप्पपसा य बेइंदियाण व परसा, एवं आदिहविरहिनो जाब-पंचिदिया । अजीवा जहा दसमसए तमाए तहेव निरवसेसं ।
५. [प्र० ] लोगस्स णं भंते ! हेट्ठिल्ले चरिमंते किं जीवा० - पुच्छा। [अ०] गोयमा ! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीवदेसा वि, जाव - अजीवप्पपसा वि; जे जीवदेसा ते नियमं एर्गिदियदेसा, अहवा एर्गिदियदेसा य बेईदियस्स देसे, अहवा ए-ि दियदेसा व बंदियाण व देसा, एवं मझिलविरहिओ जाव अणिदियाणं पदेसा आदलबिरहिया सोसि जहा पुरच्छिमिले चरिमंते तव । अजीवा जहेव उवरिल्ले चरिमंते तहेव ।
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६. [अ०] इमीले गं मंते । रवणण्यभार पुढवीर पुरच्छिमिले चरिमंते किं जीवा० पुच्छा। [४०] गोषमा ! जो जीवा एवं जहेव लोगस्स तहेव चत्तारि वि चरिमंता जाव - उत्तरिल्ले, उवरिले तहेव, जहा दसमसए विमला दिसा तहेव निरवसेसं हेडले चरिमंते देव लोगस्स देहिले चरिमंते तदेव नवरं ऐसे बिंदिपसु तियभंगो ति सेसं तं चैव एवं जहा रयमप्य भार चार चरमंता भणिया एवं सरप्यभार वि, उचरिम देहिला जहा रयणप्यभार हेट्ठिते । एवं जाय- महेसत्तमाप 1 तथा ए प्रमाणे यावत् पचेंद्रिये सुची जाग. अने दिशमा शतकमां कहेल तथा दिशानी वक्तम्यता प्रमाणे अहीं अजीबोनी वक्तव्यता कहेवी 5
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चरमति.
५. [प्र० ] हे भगवन् ! *लोकना हेठळना चरमांतमां शुं जीवो छे - इत्यादि प्रश्न. [ उ०] हे गौतम ! त्यां जीवो नथी, जीवदेशो लोकनी हेठे नो छे, जीवप्रदेशो छे, यावत् - [ अजीवो, अजीवना देशो अने] अजीवना प्रदेशो पण छे. जे जीवदेशो छे ते अवश्य " एकेंद्रियना देशो छे. १ अथवा एकेंद्रियोना देशो अने बेइंद्रियनो देश छे. २ अथवा एकेंद्रियोना देशो अने बेइंद्रियोना देशो छे. ए प्रमाणे वचला भांगा सिवाय बीजा बधा भांगा कहेवा, अने ते यावत्-अनिंद्रियो सुधी जाणवुं. सर्वना प्रदेशोनी बाबतमां पूर्व चरमांतना प्रश्नोत्तर प्रमाणे जावं, पण तेमां प्रथम भांगो न कहेवो. अजीवोनी बाबतमां उपरना चरमांतमां कह्या प्रमाणे बघु कहे.
६. [प्र०] 'हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथ्वीना पूर्व चरमांतमां जीवो छे- इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! त्यां जीवो नथी. जैम लोकना चार चरमांत कह्या तेम रत्नप्रभाना पण चारे चरमांत यावत्-उत्तरना चरमांत सुधी जाणवा. दशमा शतकमां कहेल
४६ जेम अजीवोनी वक्तव्यता देशमा शतकना प्रथम उद्देशकमां तमा दिशाने आश्रयी कहेली छे ते प्रमाणे उपरना चरमान्तने आश्रयी कहेवी. ते आ प्रमाणे - रूपी अजीवना स्कन्ध, देश, प्रदेश अने परमाणु-ए चार प्रकार अने धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय अने आकाशास्तिकायना देश अने प्रदेशो- ए. ते अरूपी अजीवना दश प्रकार छे.
लोकना उपरना चरमान्तने आश्रयी जीवदेश भने जीवप्रदेशोना भांगाअंनु यन्त्र
देश.
प्रदेश.
एन.
२-२
एक के अनेक जीवना एक के अनेक देशादि.
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अनिन्द्रिय.
बेन्द्रिय
१-१
SE
२-२
3-3
१-२
२-२
२-२
तेइन्द्रिय.
१-१
२-२
१-२
२-२
उरिन्द्रिय
१-१
२-२
१-२
२-२
२-२
"
लोकना उपरना चरमान्तमां एकेन्द्रिय अने अनिन्द्रिय ( सिद्ध ) जीवो साथेज होवाथी अहिं असंयोगी भांगो थतो नथी, पण द्विकसंयोगीथी शरु - थाय छे. तेनी साथे बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय भने पंचेन्द्रियना बच्चे भांगा जोडता त्रिकसंयोगी आठ भांगा थाय छे. तेथी अहिं देश अने प्रदेशने श्री भांगामां द्विसंयोगी एक अने त्रिकसंयोगी आठ मळी नव नव भांगा जाणवा.
*
५] 'एकेन्द्रियना देशो' ए अयोगी एक मांगो याद छ भने दिसंयोगी 'एकेन्द्रियोना देशो ने देश तथा एकेन्द्रियोना देशो भने यो देश-ए नेन्द्रिय साथै वे मांगा था. 'एकेद्रिय देशो बने बेन्द्रियना देशो-ए वो भांगो लोक अभावी थतो नथी. ए प्रमाणे तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अने अनिन्द्रियनी साथे बच्चे भांगा जाणवा. ए रीते जीवदेशने आश्रयी अगीयार भांगा थाय छे. पूर्वचरमान्तमां जीवदेशने आश्रयी जे भांगा कहेला छे ते अहिं जीवप्रदेशने आश्रयी कहेवा. जेमके एकेन्द्रियोना प्रदेशो भने बेइन्द्रियना प्रदेशो; एकेन्द्रियोना प्रदेशो अने बेइन्द्रियोना प्रदेशो. ए प्रमाणे तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अने अनिन्द्रियना प्रदेश संबन्धे भांगा जाणवा. मात्र 'एकेन्द्रियोना प्रदेशो अने बेइन्द्रियनो प्रदेश - ए प्रथम भंग असंभवित होवाथी घटी शकतो नथी, अने 'एकेन्द्रियना प्रदेशो' ए असंयोगी एक भांगो मेळवतां जीवप्रदेशने seerat अगीभर भांगा थाय छे उपरना चरमान्तमां कह्या प्रमाणे रूपी अजीवना चार अने अरूपी अजीवना छ मळी अजीवोना दश प्रकार जाणया.
लोकनी नीचेना चरमान्त, मैवेयक अने अनुत्तर विमानना उपर अने नीचेना चरमान्तने आश्रयी जीवदेश अने जीवप्रदेशोना भांगाओनुं यन्त्र
एक के अनेक जीवोना देशादि.
9-9
२-२
१-२
२-२
पञ्चेन्द्रिय.
कुलभांगा
9-9
बार
S
२-२
१-२
२-२
एकेन्द्रिय.
बेइन्द्रिय. १-१
अनिय १-१
१-१
१-१
२-२
BALI CINT
२-२
२-२
२-२
१-२
१-२
प्रदेश
२-२ १-२ २-२
१-२ २-२
२-२
२-२
२-२
अहिं देश अने प्रदेशना भांगाओमां असंयोगी एक, द्विकसंयोगी दश एम अगीयार २ भांगा जाणवा.
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कुलभांगा.
११
११
रतमभाना पूर्वादि चरमति.
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