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शतक २० उद्देशक १ पृ० ९५-९७. बेइन्द्रियादि जीवोना शरीरवन्धनो क्रम-बेइन्द्रिय साधारण शरीर बांधे के प्रत्येक शरीर बांधे-तेओने लेश्या पृ. ९५.-ओमा 'भमे इए के अनिष्ट रसादिनो अनुभव करीए छीए' एवी संज्ञा अने प्रज्ञादिनो अभाव.-पंचेन्द्रिय साधारण के प्रत्येक शरीर बांध! पृ. १६-इन्द्रियाचिर्नु अल्पबहुत्व पृ० ९५.
शतक २० उद्देशक २ पृ. ९७-९९. भाकाशना प्रकार.-'भोकाकाश जीवरूप छे, जीवदेशरूप छे' इत्यादि प्रश्न पृ० ९५.-अधोलोक धर्मास्तिकायना केटला भागने अवगाहीने रहेको ?-धर्मास्तिकायना केटलो अभिवचनो छ ?-अधर्मास्तिकायना अभिवचनो.-आकाशास्तिकायनां अभिवचनो.-जीवास्तिकायनो अभिवचनो. पृ. ९८.
--पुद्गलास्तिकायना अभिवचनामचनो छ ?--अधर्मास्तिकायना अभिवादन ४० १५.- अधोलोक धर्मास्तिकायना
.--आठ प्रदेशिका १४ भांगा.-सातप्रदेशमक स्कन्धमा वर्णादिने आया
शतक २० उद्देशक ३ पृ. ९९. प्राणातिपातादि आत्मा सिवाय बीजे परिणमता नथी पृ. ९९.
शतक २० उद्देशक ४ पृ. ९९. इन्द्रियोपचयना प्रकार पृ. ९९.
शतक २० उद्देशक ५ पृ० १००-११२. परमाणुमा केटला वर्णादि होय छै!-द्विप्रदेशिक स्कन्धा परमाणुमा का पास..MARA
केटला वर्णादि होय !-द्विप्रदेशिक स्कन्धना ४२ भांगायो पृ० १.१.-त्रिप्रदेशिक
TRAINS स्कन्धमा केटला वर्णादि होय ! पृ० १.१-चतुःप्रदेशिक स्कन्धना भांगाओ पृ. १०२.-वर्णने आश्रयी ९० भागाओ.-रसने आश्रयी ९. भांगाओ
TIR पृ.१०३.-चतुष्प्रदेशिक स्कन्धना २२२ भागाओ.-पांच प्रदेशिक स्कन्ध पृ० १०४-पंचप्रदेशिक स्कन्धमा वर्णादिने आश्रयी ३२४ भौगाओ.-. प्रदेशिक स्कन्धना वर्णादिना भोगायो पृ० १०५.-छ प्रदेशिक स्कन्धना ४१४ भांगा.-सातप्रदेशिक स्कन्धना वर्णादिना भांगाओ पृ० १०६.-सात प्रदेशिक स्कन्धना वर्णादिने आश्रयी ४७४ भांगा.-आठ प्रदेशिक स्कन्धना वर्णादिना भांगा-अष्ट प्रदेशिक स्कन्धना वर्णादिने आश्रयी ६०४ भागा पृ. १०७.-नव प्रदेशिक स्कन्धना वर्णादिना भंगो.-नव प्रदेशिक स्कन्धमा वर्णादिने आश्रयी ५१४ भंगो.-दश प्रदेशिक स्कन्धना वर्णादिना भंगो.-दश प्रदेशिक स्कन्धना ५१६ भंगो.-अनंत प्रदेशिक स्थूल परिणामवाळा स्कन्धना वर्णादिना भंगो पृ.१०८.-पांच स्पर्शना भंग-छ स्पर्शना भंगो पृ. १०९.- सात स्पर्शना भंगो पृ० ११०.-आठ स्पर्शना भंगो.-बादर स्कन्धना स्पर्शने आश्रयी १२९६ भंगो.-परमाणुना चार प्रकार.-व्यपरमाणुना प्रकार.-क्षेत्रपरमाणुना प्रकार पृ० १११.-काळपरमाणुना प्रकार.-भावपरमाणुना प्रकार पृ० ११२.
शतक २० उद्देशक ६ पृ० ११२-११४. 'जे पृथिवीकायिक जीव रमप्रभा भने शर्कराप्रभानी घचे मरणसमुद्धात करीने सौधर्मदेवलोकमां पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न यवाने योग्य छे ते पूर्व उत्पन थाथ अने पछी आहार करे' इत्यादि प्रश्न पृ० ११२-ए रीते अप्कायिक भने घायुकादिक संवन्ने प्रश्न जाणवो पृ. ११४.
शतक २० उद्देशक ७ पृ. ११४-११६. कर्मवन्ध पृ.११४.-शानावरणीय कर्मनो बन्ध.-शानावरणीयोदय कर्मनो बन्ध.-स्त्रीवेदनो बन्ध.-दर्शननोहनीय कर्मनो बन्ध.
शतक २० उद्देशक ८ पृ. ११६-११८. कर्मभूमिना प्रकार.-अकर्मभूमिना प्रकार.-अकर्मभूमिमां उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणीरूप काळ होय!-भरत अने ऐवतमा उत्सर्पिणी अने अबसपिणीरूप काळ होय!-काळ.-अरहंतो महाविदेहमा पाँच महाप्रतरूप धर्मनो उपदेश करे!-भारतवर्षमा केटला तीर्थकरो.होय ! पृ.११६-चोवीश जिना अंतरो.-कालिक धुतनो विच्छेद अने अविच्छेद.-पूर्वगत श्रुतमी स्थिति.-तीर्थनी स्थिति.-भावी छल्ला तीर्थकरना तीर्थनी स्थिति.-तीर्थ भने तीर्थकर-पृ.११-प्रवचन भने प्रवचनी-उप्र वगेरे क्षत्रियोनो धर्ममा प्रवेश.-देवलोकना प्रकार पृ. ११८.
शतक २० उद्देशक ९ पृ० ११८-१२०. चारण मुनिना प्रकार भने तेनु सामर्थ्य -विद्याचारण कहेवानुं कारण.-विद्याचारणनी शीघ्र गति. पृ. ११८-विद्या चारणनी तिर्यग्गतिनो विषय.-विद्या चारणनी ऊभ्यंगतिनो विषय.-जंघाचारण शाथी कहेवाय छ ? -जंघाचारणनी गति-संचाचारणनो तिर्यगूगतिविषय पृ. ११९.-जंघाचारणनो ऊर्चगतिविषय पृ. १२०.
शतक २० उद्देशक १० पृ० १२०. सोपक्रम अने निरुपक्रम भायुष.-नैरयिकोनो उत्पाद आत्मोपक्रम, परोपक्रम अने निरुपक्रमथी थाय छे! पृ० १२०–नेरयिकोनी उद्वर्तना आत्मोपक्रमथी परोपक्रमथी के निरुपक्रमथी थाय छे ?-नैरयिकोनो उत्पाद आत्मशक्तिथी के परनी शक्तिथी!-नरयिकोनी उत्पत्ति खकर्मथी के अन्यना कर्मथी ! नैरयिकोनी उत्पत्ति आत्मप्रयोगथी के परप्रयोगथी?-नैरयिको कतिसंचित, अकतिसंचित के अवक्तव्यसंचित होय छे!-नैरयिको कतिसंचितादि होय तेनुं कारण पृ. १२१-पृथिवीकायिकादि अने सिद्धो कतिसंचित छ ?-नैरयिकोने आश्रयी कतिसंचितादि अल्पबहुत्व.-सिद्धोने आश्रयी कतिसंचितादिनुं भक्पबहुत्व.-नैरयिकोने आश्रयी षट्कसमर्जितादि पृ० १२२-पृथिवीकायिकादिने आश्रयी षट्कसमर्जितादि.-नैरयिकादिने आश्रयी षट्कसमर्जितादिनु अल्पबहुत्व.-पृथिवीकायिकादिने आश्रयी अल्पबहुत्व पृ० १२३-सिद्धोने आश्रयी अपबहुत्व-नैरयिका दिने आश्रयी द्वादशसमर्जितादि.-पृथिवीकायिकोने माश्रयी द्वादशसमर्जितादि पृ० १२४.-नैरयिकादिने भाषयी द्वादशसमर्जितादिनु अल्पबहुत्व-नैरयिकादिने आश्रयी चोराशीसमर्जित.-सिद्धने माश्रयी चोराशीसमर्जितादि पृ० १२५-चोरासी समर्जितादिनुं अल्पबहुत्व.-पृ. १२६.
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