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शतक २१ पृ० १२७-१३१.
प्रथमवर्ग — शाल्यादि धान्यना मूळ तरीके जीवो क्यांथी आवीने उपजे छे ?- उत्पाद - एक समये केटला जीवो उपजे ? पृ० १२७ - अवगाहना - कर्मना बन्धक. - लेश्या - शाल्यादिना मूळपणे जीवनी स्थिति - शास्यादि अने पृथिवीकायिकनो संवेध. - शाल्यादिना मूळपणे सर्व जीवोनो उत्पाद पृ० १२८ - द्वितीय वर्ग - कलाय वगेरे धान्यना कन्दरूपे जीवो क्यांथी आवीने उपजे छ ? तृतीय वर्ग-अळसी वगेरेना मूळपणे जीवो क्यांथी आवी उपजे १९ वर्ग यांस बोरे वनस्पतिना मूळपणे जीनो यांची आगी उपजे - पांचो वर्गोरे पान क्याची भावी उपने वर्ग हेडिय मंतिय वगेरे पतिना जीयो क्यांची आतीने उपजे १३० सातमो वर्गादिना मूळपणे जीयो क्यांची आवीने उत्पन थाय छे ? - अष्टम वर्ग-तुलसी वगेरे हरित वर्गना मूळपणे जीवो क्यांथी आदीने उपजे छे ? पृ० १३१.
शतक २२ पृ० १३३-१३५.
प्रथमवर्ग — ताड वगेरे वलयवर्गना मूळपणे जीवो क्यांथी आवी उत्पन्न थाय छे ? पृ० १३२. – द्वितीय वर्ग - लीमडा वगेरे एकास्थिक वर्गना मूळपणे घोक्यांथी आवीने उपजे छे ? - तृतीय वर्ग - अगस्तिक वगेरे बहुबीज वर्गना मूळपणे जीवो क्यांथी आवीने उपजे छे ? पृ० १३३. - चतुर्थं वर्गगण वगेरे गुच्छवर्गना मूळपणे जीवो क्यांथी आवीने उपजे छे ?--पंचम वर्ग - सिरियक वगेरे गुल्मवर्गना मूळपणे जीवो यांथी आवीने उपजे छे ?— वर्गफली बगेरे वर्गाची आवीने उपजे २०१३५.
प्रथमवर्ग – आलु वगेरे साधारण वनस्पतिना मूळपणे पतिनाची आमीने उत्पन्न वा छे ! वर्गना मूळपणे जीवा क्यांथी आवीने उपजे छे ? पृ० १३७.
शतक २४ उद्देशक १ पृ० १३९ - १५६.
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नैको क्याथी आवीने उपजे !-तिर्यंचोनो नैरयिकोमां उपपात पृ० १३९ - पंचेन्द्रिय तिर्यंचोनो नारकोमां उपपात. असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यचोनो नारकोमा उपपात - पयाप्ता असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यचनो नारकोमा उपपात – असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचो केटली नरकपृथिवी सुधी उत्पन्न थाय ? ---केटला आयुषवाळा नारकमा असशी तियंचो आवीने उपजे ? - २ परिमाण - असंज्ञी पं० तिर्यंचो रत्नप्रभामां एक समये केटला उपजे ? - ३ तेओना संघयण. - १४ शरीरनी अवगाहना.-५ संस्थान पृ० १४०६ लेश्या. - ७ दृष्टि2-८ ज्ञान अने अज्ञान. ९ योग- १० उपयोग. ११ संज्ञा १२ कषाय. - १३ इन्द्रिय- १४ समुद्रात - १५ वेदना पृ० १४१ – १६ वेद – १७ आयुष - १८ अध्यवसाय. १९ अनुबंध. २० काय संवेध.-- २ असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनो जघन्य आयुषवाळा रत्नप्रभा नारकमां उपपात - तेओना परिमाणादिद्वारो पृ० १४२ - ३ कायसंवेध - असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनो उत्कृष्टस्थिति रत्नप्रभानारकमां उपपात परिमाणादि. काय संबंध.-४ जघन्य स्थितिवाळा अशी तियंचनो रत्नप्रभामां उपपात - परिमाणादि पृ० १४३. काय संवेध. – ५ जघन्य असंज्ञी पचेन्द्रिय तिर्यचनो जघन्य रत्नप्रभा नैरयिकमां उपपात — परिमाणादि कायसंवेध - ६ जघन्य असंज्ञी वियंचनी उत्कृष्ट रत्नप्रभा नैरयिकमां उत्पत्ति - परिमाणादि. - काय संवेध पृ० १४४. ७ उत्कृष्ट० असंज्ञी तिर्यचनी रत्नप्रभा नारकमां उत्पत्ति — परिमानादि --- काय संवेध.-८ उत्कृष्ट असंज्ञी तियंचनी जघन्य रत्नप्रभानारकमा उत्पत्ति परिमाणादि. फायसंवेध. ९ उत्कृष्ट असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनी उत्कृष्ट • रत्नप्रभानारकमा उत्पत्ति पृ० १४५. परिमाणादि कायसंवेध. – संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनो नारकमां उपपात - संख्याता • संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचोनो नाकमां उपपात. – पर्याप्त संख्याता • संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यचनो नारकमां उपपात. - संख्याता संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचोनो रत्नप्रभा नारकमां उपगत परिमाण. संघयण संस्थान - लेश्या दृष्टि ज्ञान अने अज्ञान काय संवेध. संख्याता० संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंचनी जघन्य रत्नप्रभानारकमां उत्पत्ति. - परिमाण पृ० १४७ - जघन्य संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनी रत्नप्रभानारकमा उत्पत्ति – परिमाण - जघन्य संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंचनी जघन्य रत्नप्रभा नारकर्मा उत्पत्ति - परिमाण. - जघन्य० संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनी उत्कृष्ट रत्नप्रभा नारकमा उत्पत्ति - उत्कृष्ट संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंचनी उत्कृष्ट रत्नप्रभानारकमां उत्पत्ति पृ० १४८. - उत्कृष्ट संशी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनी जघन्य रत्नप्रभानारकमां उत्पत्तिरिमाण. - उत्कृष्ट • संज्ञी पचेन्द्रिय तिर्यं बनी उत्कृष्ट० रत्नप्रभानारकमां उत्पत्ति. - परिमाणादि. - संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनी शर्कराप्रभामां उत्पति - परिमाणादि पृ० १४९. सख्याता संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनो सप्तम नरकमां उपपात -संज्ञी तिर्यचनी जघन्य० सप्तम नरकपृथिवीना नारकमां उत्पत्ति. - संज्ञी पंचेन्द्रिय विर्यचना उत्कृष्ट सप्तम नरकम उपपात पृ० १५० - जघन्य० संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यचनी सप्तम नरकमां उत्पत्ति - जघन्य संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यं वनो अघन्य सप्तम नरकमां उपपात जघन्य संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनो उत्कृष्ट • सप्तम नरकमां उपपात. उत्कृष्ट० संज्ञी० पंचेन्द्रिय तिर्यचनी सप्तम नरकमां उत्पत्ति. - परिमाण. - उत्कृष्ट संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनी जघन्य सप्तम नरकम उत्पत्ति - उत्कृष्ट० संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनी उत्कृष्ट सप्तम नरकम उत्पति पृ० १५१. - संज्ञी मनुष्योनो नरकमां उपपात - संख्याता० संज्ञी मनुष्योनी नारकपणे उत्पत्ति - पर्याप्ता मनुष्योनी नारकपणे उत्पत्ति. - संख्याता• सं० पं० मनुष्य केटली नरक पृथिवीमां उत्पन्न धाय ? - संख्याता मनुष्यनो रत्नप्रभानारकपणे उपपात परिमाण एक समये केटला उत्पन्न थाय ? पृ० १५२ -२ संज्ञी मनुष्यनी जघन्य रत्नप्रभानारकमां उत्पति ३ संज्ञी मनुष्यनी उत्कृष्ट० रत्नप्रभानैरयिकमां उत्पत्ति - - ४ जघन्य संज्ञी मनुष्यनी रत्नप्रभामा उत्पत्ति - ५ जघन्य मनुष्यनी जघन्य ० रत्नप्रभामां उत्पत्ति - ६ जघन्य मनुष्यनी उत्कृष्ट रत्नप्रभामां उत्पत्ति पृ० १५३.७ उत्कृष्ट ० मनुष्यनी रत्नप्रभामां उत्पत्ति - उत्कृष्ट मनुष्यनी जघन्य० रत्नप्रभामां उत्पत्ति - मनुष्यनी उत्कृष्ट० रत्नप्रभामां उत्पत्ति - मनुष्यनी शर्कर प्रभामां उत्पत्ति - परिमाण. - एक समये केटला उत्पन्न थाय ? - २ जघन्य मनुष्यनी शर्कराप्रभामां उत्पत्ति पृ० १५४.३ उत्कृष्ट० मनुष्यनी शर्कराप्रभामां उत्पत्ति - ए प्रमाणे छट्ठी नरकपृथिवी सुधी जाणवु. १ संख्याता० संज्ञी मनुष्यनी सप्तम नरकमां उत्पत्ति परिमाण. - २ मनुष्यनी जघन्य सप्तम नरकमां उत्पत्ति. - ३ मनुष्यनी उत्कृष्ट० सप्तम नरकमां उत्पत्तिः- जघन्य मनुष्यनी सप्तम नरकमां उत्पत्ति - उत्कृष्ट मनुष्यनी सप्तम नरकमां उत्पत्ति - पृ० १५६.
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शतक २३ पृ० १३६-१३८.
जीवो क्यांथी आवीने उपजे छे ? पृ० १३६ – द्वितीय वर्ग-लोही वगैरे अनन्तकायिक बन वृतीय वर्ग आयकावादि वर्तनामुपणे जीवोक्यांची आमीने उपजे वर्ग-पास माषपण आदि बल्लिवर्गना मूळपणे जीवो क्यांथी आवीने उपजे छे ? पृ० १३८.
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