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२४२ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक २५.-उद्देशक ६. १३. [प्र०] कसायकुसीले गं भंते ! किं सवेदए-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! सवेदए वा होजा, अवेदए वा होजा । १४. [प्र०] जइ अवेदए कि उवसंतवेदए, खीणवेदए होजा? [उ०] गोयमा! उवसंतवेदए वा खीणवेदए वा होजा। १५. [प्र०] जइ सवेयए होजा किं इत्थिवेदए-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! तिसु वि जहा बउसो।। १६. [प्र०] णियंठे गं भंते ! किं सवेदए-पुच्छा । [उ०] गोयमा! णो सवेयए होजा, अवेयर होजा। १७. [प्र०] जह अवेयए होजा कि उवसंत-पुच्छा । [उ०] गोयमा! उवसंतवेयए वा होजा, खीणवेयए वा होजा ।
१८. [प्र०] सिणाए णं भंते । किं सवेयए होजा.' [उ.] जहा नियंठे तहा सिणाए वि। नवरं णो उवसंतवेयए होजा, स्त्रीणवेयए होजा।
१९. [प्र०] पुलाए णं भंते ! कि सरागे होजा, वीयरागे होजा ! [उ०] गोयमा ! सरागे होजा, णो बीयरागे होजा, पवं जाव-कसायकुसीले।
२०. [प्र०] णियंठे णं भंते ! किं सरागे होजा-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! णो सरागे होजा, वीयरागे होजा ।
२१. [प्र०] जइ वीयरागे होजा किं उवसंतकसायवीयरागे होजा, खीणकसायवीयरागे होजा? [उ०] गोयमा। उवसंतकसायवीयरागे वा होजा, वीणकसायवीयरागे वा होजा । सिणाए एवं चेव । नवरं णो उवसंतकसायवीयरागे होजा, वीणकसायवीयरागे होजा ३।
२२. [प्र०] पुलाए णं भंते ! किं ठियकप्पे होजा, अट्ठियकप्पे होजा? [उ०] गोयमा ! ठियकप्पे पा होजा, अट्ठियकप्पे वा होजा । एवं जाव-सिणाए।
२३. [प्र०] पुलाए णं भंते ! किं जिणकप्पे होजा, थेरकप्पे होजा, कप्पातीते होजा ! [उ०] गोयमा ! नो जिणकप्पे होजा, थेरकप्पे होजा, णो कप्पातीते होजा।
कषायकुशील सदे- १३. [प्र०] हे भगवन् ! शुं कषायकुशील वेदसहित छे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! कषायकुशील 'वेदसहित पण होय दी के अवेदी?
अने वेदरहित पण होय.
१४. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते वेदरहित होय तो शुं ते उपशांतवेदवाळो होय के क्षीणवेदवाळो होय ! [उ०] हे गौतम ! ते उपशांतवेदवाळो पण होय अने क्षीणवेदवाळो पण होय. .
१५. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते वेदसहित छ तो शुं ते स्त्रीवेदसहित होय-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! ते बकुशनी पेठे
त्रणे वेदमा होय. निर्मन्थ वेदसहित के १६. [प्र०] हे भगवन् ! शुं निग्रंथ वेदसहित छे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! निग्रंथ वेदसहित नथी, पण वेदरहित छे. घेदरहित।
१७. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते वेदरहित होय तो शुं ते उपशांतवेद होय-इत्यादि पृच्छा. उ०] हे गौतम ! ते उपशांतवेद
पण होय अने क्षीणवेद पण होय. सातक सवेद के १८. [प्र०] हे भगवन् ! शुं स्नातक वेदसहित होय-इत्यादि प्रच्छा. [उ०] हे गौतम ! ते निग्रंथनी पेठे वेदरहित होय. पण
निद? विशेष ए के, स्नातक उपशांतवेद न होय, पण क्षीणवेद होय. ३ रागदार- १९. [प्र०] हे भगवन् ! शुं पुलाक रागसहित होय के वीतराग होय ! उ०] हे गौतम | पुलाक रागसहित होय, पण वीतराग पुलाक, बकुश भने .
न होय. ए प्रमाणे यावत्-कषायकुशील सुधी जाणवू. कुशील सराग के के
..
न वीतराग!
२०. [प्र०] हे भगवन् ! शुं निग्रंथ सराग होय-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम | ते सराग नथी, पण वीतराग होय छे. निम्रन्थ सराग के
२१. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते वीतराग होय तो शुं उपशांतकषाय वीतराग होय के क्षीणकषाय वीतराग होय. [उ०] हे गौतम ! वीतराग!
ते उपशांतकषाय वीतराग होय अने क्षीणकषाय वीतराग पण होय. ए प्रमाणे स्नातक पण जाणवो. विशेष ए के स्नातक उपशांतकषाय
वीतराग न होय, पण क्षीणकषाय वीतराग होय. ४ कल्पद्वार- २२. [प्र०] हे भगवन् ! शुं पुलाक स्थितकल्पमा होय के अस्थितकल्पमा होय ! [उ०] हे गौतम ! ते स्थितकल्पमा पण स्थित भने अस्थित- होय अने अस्थितकल्पमा पण होय. ए प्रमाणे यावत्-स्नातक सुधी जाणवु. पुलाक भने कल्प.
२३. [प्र०] हे भगवन् । शुं पुलाक जिनकल्पमा होय, स्थविरकल्पमा होय के कल्पातीत होय ! [उ०] हे गौतम | ते जिनकल्पमा न होय, कल्पातीत न होय, पण स्थविरकल्पमा होय.
कल्प.
१४ * कषायकुशील सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानक सुधी होय छे, ते प्रमत्त, अप्रमत्त अने अपूर्वकरणने विषे सवेद होय अने अनिवृत्तिबादर अने सूक्ष्मसंपरायने विषे उपशांत के क्षीणवेद थाय त्यारे अवेदक होय.-टीका.
२२ । पहेला अने छल्ला तीर्थकरना साधुओ आचेलक्यादि दश कल्पमा स्थित छे, कारण के तेनु पालन तेओने आवश्यक छ, माटे सेओनो स्थित. कल्प कहेवाय छे, अने तेमा पुलाक होय छे. मध्यम बावीश तीर्थकरना साधुओ ते कल्पमा कदाच स्थित होय के अस्थित होय, कारण के तेभोनुं पालन तेमने आवश्यक नथी, माटे तेओनो अस्थित कल्प छ, भने तेा पण पुलाक होय छे. एम सातक सुधी जाणवू.
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