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शतक २५.-उद्देशक ६.
भगवत्सुधर्मखामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ६. [40] कसायकुसीले णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ? [उ०] गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा-१ नाणकसायकुसीले, २ दसणकसायकुसीले, ३ चरित्तकसायकुसीले, ४ लिंगकसायकुसीले, ५ अहासुहुमकसायकुसीले णाम पंचमे ।
७. [प्र०] नियंठे णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ? [उ०] गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा-१ पढमसमयनियंडे, २ अपढमसमयनियंठे, ३ चरमसमयनियंठे, ४ अचरमसमयनियंठे, ५ अहासुहुमनियंठे णाम पंचमे ।
८. [प्र०] सिणाए णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ? [उ०] गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा-१ अच्छवी, २ असबले, ३ अकम्मसे, ४ संसुद्धनाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली, ५ अपरिस्सावी १ . : ९.०] पुलाए णं भंते ! किं सवेयए होजा, अवेदए होजा ? [उ०] गोयमा ! सवेयए होजा, णो अवेयए होजा'।
१०. [प्र०] जइ सवेयए होजा किं इत्थिवेदए होजा, पुरिसवेयए होजा, पुरिसनपुंसगवेदए होजा? [उ.] गोयमा! नो इथिवेदए होजा, पुरिसवेयए होजा, पुरिसनपुंसगवेयए वा होजा। . ११. [प्र०] बउसे णं भंते ! किं सवेदए होजा, अवेदए होजा? [उ०] गोयमा ! सवेदए होजा, णो अवेदए होजा।
१२. [प्र०] जइ सवेदए होजा किं इत्थिवेयए होजा, पुरिसवेयए होजा, पुरिसनपुंसगवेदए होजा ? [उ०] गोयमा ! इत्थिवेयए वा होजा, पुरिसवेयए वा होजा, पुरिसनपुंसगवेयए वा होजा । एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
६.प्र०] हे भगवन् ! कषायकुशीलना केटला प्रकार कह्या छे ! [उ०] हे गौतम ! *कषायकुशीलना पांच प्रकार कह्या छे. कषायकुशीलना ते आ प्रमाणे-१ ज्ञानकषायकुशील, २ दर्शनकषायकुशील, ३ चारित्रकषायकुशील, ४ लिंगकषायकुशील अने पांचमो ५ यथासूक्ष्म
प्रकार. कषायकुशील.
७. प्र० हे भगवन् ! निग्रंथना केटला प्रकार कह्या छे ! [उ० हे गौतम | निग्रंथना पांच प्रकार कह्या छे. ते आ प्रमाणे-१ निर्ग्रन्थना प्रकार. प्रिथमसमयवर्ती निग्रंथ, २ अप्रथमसमयवर्ती (प्रथम समय सिवायना समयोमा वर्तमान ) निग्रंथ, ३ चरमसमयवर्ती निग्रंथ, ४ अचरमसमयवर्ती (चरम समय सिवायना समयोमा वर्तमान) निग्रंथ अने पांचमो ५ यथासूक्ष्म निग्रंथ.
८. प्र०] हे भगवन् ! स्नातकना केटला प्रकार कह्या छे ! [उ०] हे गौतम! स्नातकना पांच प्रकार कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ लातकना प्रकार. अच्छवी (शरीररहित, काययोगरहित ) २ अशबल-दोषरहित विशुद्ध चारित्रवाळो, ३ अकांश (घाती कर्मरहित ), ४ संशुद्ध ज्ञान अने दर्शनने धरनार-अरिहंत-जिन-केवली अने ५ पांचमो अपरिस्रावी (कर्मबन्धरहित ).
९. [प्र०] हे भगवन् ! शुं पुलाक निम्रन्थ वेदसहित छे के वेदरहित छे ? [उ०] हे गौतम ! 'पुलाक वेदसहित छे, पण २ घेदद्वारवेदरहित नथी.
पुलाकने वेद१०. [प्र०] हे भगवन् ! जो पुलाक वेदसहित छे तो शुं ते स्त्रीवेदवाळो छे, पुरुषवेदवाळो छे के पुरुषनपुंसकवेदवाळो छ ! [उ०] हे गौतम! ते स्त्रीवेदवाळो नथी, पण पुरुषवेदवाळो अने पुरुषनपुंसकवेदवाळो छे. ११. [प्र०] हे भगवन् ! शुं बकुश वेदसहित छे के वेदरहित छ ? [उ०] हे गौतम ! बकुश वेदसहित छे, पण वेदरहित नथी. बकुश सवेद के
वेदरहित! १२. [प्र०] हे भगवन् ! जो वकुश वेदसहित छे तो शुं ते स्त्रीवेदवाळो छ, पुरुषवेदवाळो छे के पुरुषनपुंसकवेदवाळो छ ! (उ०] हे गौतम! ते स्त्रीवेदवाळो, पुरुषवेदवाळो अने पुरुषनपुंसकवेदवाळो होय छे. ए प्रमाणे प्रतिसेवनाकुशील पण जाणवो.
६ * ज्ञान, दर्शन अने लिंग-वेशनो क्रोधमानादि कषायमा उपयोग करे ते अनुक्रमे ज्ञानकषायकुशील, दर्शनकषायकुशील अने लिंगकषायकुशील कहेवाय छे. कषायथी जे शाप आपे ते चारित्रकषायकुशील अने जे मात्र मनथी क्रोधादिने सेवे ते यथासूक्ष्मकषायकुशील कहेवाय छे. अथवा कपायोवडे ज्ञानादिनो विराधक ते ज्ञानादिकषायकुशील कहेवाय छे.
+ उपशांतमोह अने क्षीणमोह छद्मस्थनो काळ अन्तर्मुहूर्त प्रमाण छ, तेना प्रथम समयमा वर्तमान प्रथमसमय निर्ग्रन्थ अने बाकीना समयमा वर्तमान अप्रथमसमय निर्घन्ध कहेवाय छे. एम उपशांतमोह अने क्षीणमोहना चरम समयमा वर्तमान चरम समयनिर्ग्रन्थ अने बाकीना समयमा वर्तमान अचरमसमयनिर्ग्रन्थ कहेवाय छे. सामान्यतः प्रथमादि समयनी विवक्षा सिवायनो निम्रन्थ यथासूक्ष्म निम्रन्थ कहेवाय छे.
41 कोइपण टीकाकारे अहिं के अन्यत्र स्नातकना अवस्थाकृत भेदोनी व्याख्या करी नथी, माटे शक-पुरन्दरादिनी पेठे तेओनो शब्दनयकृत भेद होय एम संभवे छे-टीका.
९ ॥ अहिं पुलाक, वकुश अने प्रतिसेवाकुशीलने उपशमणि अने क्षपकश्रेणिनो अभाव होवाथी तेओ अवेदक नथी.
१. स्त्रीने पुलाकलब्धि होती नथी, पण पुलाकलब्धिवाळो पुरुष के पुरुष-नपुंसक होय छे. अहिं पुरुष छतां लिंगझेदादिवडे कृत्रिमनपुंसक होय ते पुरुषनपुंसक जाणवो, पण खरूपतः नपुंसकवेदवाळो न होय.
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