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शतक २५.-उद्देशक ६. भगवत्सुधर्मखामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
२४३ २४. [प्र०] यउसे गं-पुच्छा । [उ०] गोयमा! जिणकप्पे वा होजा, थेरकप्पे वा होजा, नो कप्पातीते होजा। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।।
२५. [प्र०] कसायकुसीले णं-पुच्छा। [उ०] गोयमा ! जिणकप्पे वा होज्जा, थेरकप्पे वा होजा, कप्पातीते पा होजा।
२६. [प्र०] नियंठे णं-पुच्छा । [३०] गोयमा! नो जिणकप्पे होजा, नो थेरकप्पे होजा, कप्पातीते होजा । एवं सिणाए वि।
२७. [प्र०] पुलाए णं भंते ! किं सामाइयसंजमे होजा, छेओवट्ठावणियसंजमे होजा, परिहारविसुद्धियसंजमे होजा, सुहमसंपरागसंजमे होजा, अहक्खायसंजमे होजा? [उ०] गोयमा ! सामाइयसंजमे वा होजा, छेओवट्ठावणियसंजमे वा होजा, णो परिहारविसुद्धियसंजमे होजा, णो सुहमसंपरागसंजमे होजा, णो अहक्खायसंजमे होजा । एवं बउसे वि. एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
२८. [प्र०] कसायकुसीले णं-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! सामाइयसंजमे वा होजा, जाव-सुष्टुमसंपरागसंजमे षा होजा, णो अहफ्खायसंजमे होजा।
२९ [प्र०] नियंठे णं-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! णो सामाइयसंजमे होजा, जाव-णो सुहुमसंपरागसंजमे होजा, अहवायसंजमे होजा । एवं सिणाए वि ५ । ___ ३०. [प्र०] पुलाए णं भंते ! किं पडिसेवए होजा, अपडिसेवए होजा? [उ०] गोयमा ! पडिसेवए होजा, णो अपडिसेवए होजा।
___३१. [प्र०] जइ पडिसेवए होजा किं मूलगुणपडिसेवए होजा, उत्तरगुणपडिसेवए होजा? [उ०] गोयमा ! मूलगुणपडिसेवए वा होजा, उत्तरगुणपडिसेवए वा होजा । मूलगुणपडिसेवमाणे पंचण्डं आसवाणं अन्नयरं पडिसेवेजा, उत्तरगुणपडिसेवमाणे दसविहस्स पच्चपखाणस्स अन्नयरं पडिसेवेजा।
२४. [प्र०] हे भगवन् ! | बकुश जिनकल्पमा होय-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! ते जिनकल्पमा होय अने स्थविरकल्पमा बकुश भने कल्प. होय, पण कल्पातीत न होय. ए प्रमाणे प्रतिसेवनाकुशील विषे पण समजवू.
२५. [प्र०] हे भगवन् ! शुं कषायकुशील जिनकल्पमा होय-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम 1 ते जिनकल्पमा होय, स्थविरक- कषायकुशीक ल्पा होय, अने *कल्पातीत पण होय.
अने कल्प. २६. [प्र०] हे भगवन् ! शुं निग्रंथ जिनकल्पमा होय-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! ते जिनकल्पमा अने स्थविरकल्पमा न निम्रन्थ अने कल्प. होय, पण 'कल्पातीत होय. ए प्रमाणे स्नातक संबंधे पण जाणवू.
२७. [प्र०] हे भगवन् ! शुं पुलाक सामायिक संयममा होय, छेदोपस्थानीय संयममां होय, परिहारविशुद्ध संयमा होय, सूक्ष्म- ५ चारित्रसंपराय संयममा होय के यथाख्यात संयममा होय ! [उ०] हे गौतम ! ते सामायिक संयममा अने छेदोपस्थापनीय संयममा होय, पण पुलाक अने चारित्र. परिहारविशुद्ध, सूक्ष्मसंपराय के यथाख्यात संयममा न होय. ए प्रमाणे बकुश अने प्रतिसेवनाकुशील पण समजवो.
२८. [प्र०] हे भगवन् ! कषायकुशील कया संयममा होय ! [उ०] हे गौतम ! सामायिक संयम, अने यावत्-सूक्ष्मसंपराय कषायकुशील अने संयममा होय, पण यथाख्यात संयममा न होय.
चारित्र. २९. [प्र०] हे भगवन् ! निग्रंथ कया संयमा होय ! [उ०] हे गौतम ! सामायिक के यावत्-सूक्ष्मसंपराय संयममां न होय, पण निर्मन्थने चारित्र. यथाख्यात संयममा होय. ए प्रमाणे स्नातक विषे पण समजवु.
३०. [प्र०] हे भगवन्! शुं पुलाक चारित्री प्रतिसेवक (संयमविराधक) होय के अप्रतिसेवक (अविराधक) संयमाराधक ६ प्रतिसेवनाहोय! [उ०] हे गौतम | ते प्रतिसेवक होय, पण अप्रतिसेवक न होय.
पुलाक भने प्रति
सेवना. ३१. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते प्रतिसेवक होय, तो शुं प्राणातिपातविरमणादि मूलगुणनो प्रतिसेवक-विराधक होय के प्रत्याख्यानादि उत्तरगुणनो प्रतिसेवक होय ! [उ०] हे गौतम ! ते मूलगुणनो प्रतिसेवक-विराधक होय अने उत्तरगुणनो पण प्रतिसेवक होय. मूलगुणनी विराधना करतो पांच आस्रवोमांना कोइ एक आस्रवने सेवे. तथा उत्तरगुणंनी विराधना करतो दश प्रकारना प्रत्याख्यानमाथी कोई एक प्रत्याख्यानने विराधे.
समज.
२५ * कल्पातीत छद्मस्थ तीर्थकर सकषायी होवाथी ते अपेक्षाए कल्पातीतमा पण कषायकुशील होय. २६ निर्ग्रन्थ कल्पातीत ज होय छे, कारण के तेने जिनकल्प अने स्थविरकल्पना धर्मों होता नथी. एम स्नातक पण कल्पातीत ज होय छे.-टीका. ३. 1 संज्वलन कषायना उदयथी संयमविरुद्ध आचरण करे ते प्रतिसेवक-संयमविराधक कहेवाय छे.
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