SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यीओनी होय छे. कंठस्थ रहेला जैन आगमोमां दुकाळ आदिना कारणे केटलांय परिवर्तनो थई गयां छे एवं ख़ुद जैन परंपरा खीकारे छे अने ए एम पण माने छे के अत्यारना उपलब्ध आगमो देवर्धिगणीनी संकलनारूप छे. ए संकलना वलभी (वळा)मां भगवान महावीरना निर्वाण पछी लगभग हजार वर्षे थयेली एम जैन इतिहास कहे छे. एथी प्रस्तुत ग्रंथना कर्ता विषेनो निवेडो लगभग आवी जाय छे. प्रस्तुत ग्रंथy नाम भगवतीसूत्र जैनसंप्रदायमा सुप्रसिद्ध छे पण नीचेना उल्लेखो उपरथी ते तेनुं मूळ नाम नथी पण तेनी महत्ता दर्शावनारुं विशेषण मात्र छे अने टीकाकार अभयदेव पण एने एम ज माने छे. समवायांगसूत्र अने नंदीसूत्रमा वर्तमानमा उपलब्ध अंगसूत्रोनां नाम अने विषयो जणाव्या छे तेमां आ सूत्र माटे 'वियाह' शब्द वपरायेलो छे अने ते शब्दनुं मूळ 'वियाह' धातुमां बताववामां आव्युं छे. 'वि' अने 'आ' उपसर्ग साथेना 'ख्या' धातुथी थयेला 'व्याख्या' शब्दमाथी पूर्वोक्त 'वियाह' शब्द नीपजेलो छे एटले 'वियाह' नो अर्थ अनेक प्रकारनी व्याख्याओ-विवेचनो-धाय छे. टीकाकार पण ए 'वियाह' नी समजुती उपर प्रमाणे आपे छे. केटलेक स्थळे 'जहा पन्नत्तिए' एम जणावीने आ ग्रंथना टुंका नामनो निर्देश करेलो छे. ए उपरथी अने आ ग्रंथना टीकाकार अभयदेवना उल्लेख उपरथी एम पण मालुम पडे छे के आ ग्रंथर्नु आखं नाम 'वियाहपण्णत्ति' होवू जोईए, आगळ जे 'वियाह' जणाव्यु छे ते आनुं टुंकुं नाम छे. वियाहपण्णत्ति' शब्दने बराबर मळतो संस्कृत शब्द 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' छे अने तेनो अर्थ-जेमा असंकीर्णपणे अनेक प्रकारनी व्याख्याओ प्ररूपाती होय ते छे. आ अर्थ जोता आ नाम आ ग्रंथने बराबर बंध बेसतुं छे एथी ते अन्वर्थ छे. वियाहपण्णत्ति' ने बदले केटलेक स्थळे 'विवाहपण्णत्ति' शब्द पण मळे छे. पण विचार करतां जणाय छे के खरो शब्द तो 'वियाहपण्णत्ति' छे अने 'विवाहपण्णत्ति' तो तेनुं भळतुं पाठान्तर छे जे 'य' नो 'ब' बोलावाथी नीपज्यु लागे छे. व्युत्पत्ति अने व्याकरणशास्त्रनी दृष्टिए 'वि' अने 'आ' साथेना 'ख्या' धातुमांथी 'बियाह' शब्द नीपजी शके छे एटले तेनुं वकारवाळू 'विवाह' रूप पाठान्तर मानीए तो ज चाली शके... टीकाकारे तो 'वियाहपण्णत्ति' अने 'विवाहपण्णत्ति' ए बन्ने शब्दोने स्वीकारेला छे. पहेला शब्दनो अर्थ ते उपर प्रमाणे करे छे अने बीजा शब्दनो अर्थ करता ते तेने बराबर मळता संस्कृत शब्दो 'विवाहप्रज्ञप्ति' अने 'विबाधप्रज्ञप्ति' मूके छे पण प्राचीन परंपरा जोतां वियाहपण्णत्ति' नाम खलं जणाय छे. 'पण्णत्ति' शब्दने बराबर मळतो संस्कृत शब्द 'प्रज्ञप्ति' छे. तेनो स्पष्ट अर्थ 'प्रज्ञापन' थाय छे तेम छतां टीकाकारे ते शब्दने मळता आ शब्दो-'प्रज्ञाप्ति' (प्रज्ञ+आप्ति ) अने 'प्रज्ञात्ति' (प्रज्ञ आत्ति ) मूकेला छे. अने तेम करीने तेमणे 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' उपरांत व्याख्याप्रज्ञाप्ति' व्याख्याप्रज्ञात्ति' विवाहप्रज्ञाप्ति' 'विवाहप्रज्ञात्ति' 'विबाधप्रज्ञाप्ति' विबाधप्रज्ञात्ति' 'विवाहप्रज्ञप्ति' अने 'विबाधप्रज्ञप्ति' वगेरे संस्कृत शब्दो 'वियाहपण्णत्ति' अने 'विवाहपण्णत्ति' ने बदले जणाव्या छे. एथी कोईए एम न समजवू जोइए के आ सूत्रना आटलां बधां नामो छे. ___नाम तो 'वियाहपण्णत्ति' एक ज छे पण टीकाकारे जे एने माटे पूर्वोक्त अनेक संस्कृत शब्दो मूकेला छे तेनुं कारण तेमनो आगमो प्रत्येनो अधिकाधिक सद्भाव अने शब्दकुशळता मात्र छे. ज्या ज्यां आ सूत्रना नाम माटे संस्कृत शब्द जोवामां आवे छे त्या त्यां बधे व्याख्याप्रज्ञप्ति' नाम जणाय छे तेथी टीकाकारे मुकेला उपला शब्दो आ ग्रंथनां नाम तरीके न समजवा, भगवती शब्द तो आ सूत्रनी पूज्यता बतावनारुं विशेषण मात्र छे पण खास नाम नथी ते न भुलाय. (२) बीजा आगमोमां प्रस्तुत ग्रंथनो परिचय, वर्तमान रचनाशैली तथा ग्रंथर्नु पूर 'समवाय नामना चोथा अंगमा अने नैन्दीसूत्रमा आ सूत्रनो परिचय आपवामां आवेलो छे. "वियाह सूत्रमा जीवो विषे व्याख्यान छे. अजीवो विषे व्याख्यान (विवेचनो) छे. जीवाजीव विषे व्याख्यान छे, खसमय, परसमय अने स्वपरसमय तथा लोक, अलोक अने लोकालोक ए विष व्याख्यान छे. तथा छत्रीश हजार व्याकरणो-पुछायेला प्रश्नोनो निर्णय आपनारा उत्तरो-शिष्यना हित माटे जणावेलां छे, जे १ प्रस्तुत सूत्रनुं नाम तो 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' छे पण संप्रदायमा 'भगवती' नाम वधारे जाणितुं छे माटे ज आ ग्रंथना मुख पृष्ठ उपर ए नाम मोटा अक्षरे मुकेलं छे अने तेना कर्ताना नामनो उल्लेख पण संप्रदायप्रसिद्धि प्रमाणे सूचवेलो छे. २ समवायांग सूत्र पृ० ११४ ३ नंदीसूत्र पृ० २२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy