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व्याकरणो अनेक प्रकारना देवो, राजाओ अने राजर्षीओ तथा अनेक प्रकारना संशयवाळा जिज्ञासुओए श्रीजिनने पूछेला छे. जेना जवाबी श्रीजिने द्रव्य, गुण, क्षेत्र, काल, पर्याय, प्रदेश, परिणाम, यथास्तिभाव, अनुगम, निक्षेप, नय, प्रमाण अने अनेक प्रकारना सुंदर उपक्रमो पूर्वक आमां आपेला छे." आ रीते समवाय नामना चोथा अंगमां प्रस्तुत 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' सूत्रना अभिधेय विषयनो परिचय आपेलो छे. त्यारे नन्दीसूत्रमा समवाय करतां थोडुं जुईं जणावेलुं छे एटले के नन्दीसूत्रमा समवाय अंगमां कहेली व्याकरणो संबंधी कशी हकीकत मळती नथी. पण मात्र तेमां "जीव, अजीव, जीवाजीव, खसमय, परसमय, खपरसमय, लोक, अलोक, अने लोकालोक संबंधी व्याख्यानो व्याख्याप्रज्ञप्तिमा छे" एटलं ज जणावेलं छे.
उपर जणाव्या प्रमाणे ते बन्ने सूत्रमा आ सूत्रना अभिधेयनी बाबतमा जेम फरक जणाय छे तेम तेना परिमाण विषे पण मेद मालुम पडे छे. ते भेद आ प्रमाणे छः व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्रना पदोनी संख्या समवायांगमा ८४००० जणावेली छे अने नन्दीसूत्रमा तेनी संख्या २८८००० जणावेली छे. परिमाण विषेनी बीजी हकीकतो बन्नेमा सरखी छे. ते जेमके अंगनी अपेक्षाए व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र पांच, अंग छे, तेमां एक श्रुतस्कंध छे, एकसो करतां वधारे अध्ययनो छे, दश हजार उद्देशको अने दश हजार समुद्देशको छे.
आ सूत्रमा वर्णवायेला विषयनी अने परिमाणनी जे हकीकत उपर आपी छे तेनी सरखामणी आपणी सामेना आ सूत्रना विषय अने परिमाण साथे करतां खास फेर जणातो नथी. उद्देशको अने पदोनी संख्यामां फेर छे ते फेर तो प्राचीन परंपराए पण मानेलो छे.
रचनाशैलीनी बाबतमा आ सूत्रमा प्रश्नोत्तरनी पद्धति छे ए हकीकत समवायांगा तो जणावेली छे अने आ वर्तमान सूत्रमा पण ते ज शैली आपणी सामे छे. जेम आ सूत्रमा भगवान महावीर अने इन्द्रभूति गौतम वञ्चेनी प्रश्नोत्तरनी शैली छे तेम आर्य श्यामाचार्ये रचेला पन्नवणा-प्रज्ञापना-सूत्रमा पण छे. पन्नवणा सूत्र श्यामाचार्ये रचेलं छे ए सिद्ध वात छे. तेथी तेमांनी भगवान महावीर अने इन्द्रभूति गौतम बच्चेनी प्रश्नोत्तरशैली श्यामाचार्ये गोठवेली छे तेम आ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्रनी पूर्वोक्त प्रश्नोत्तर शैली प्रस्तुत सूत्रना संकलन करनारे उपजावी काढी छे के मूळ ज एम छे ए विषे काई कही शकातुं नथी. कारण के घणा अर्वाचीन ग्रंथोमां पण ते ते ग्रंथकारोए एवी शैली राखेली जणायाथी संदेह यवो स्वाभाविक छे.
वर्तमानमा आ सूत्रमा आवेला अनुष्टुप श्लोकोनी संख्या लगभग १५८०० छे जे आगळ जणावेली पद (विभक्त्यंत पद)नी संख्याने मळती थई शके एवी कही शकाय, शतक १३८ छे अने उद्देशको १९२५ छे. ज्यारे प्राचीन परंपरा आमा दश हजार उद्देशको अने दश हजार समुदेशको होवार्नु जणावे छे. १९२५ उद्देशकोनी संख्या तो आ सूत्रना प्रान्त भागमा ज जणावेली छे अने टीकाकारे पण तेने मान्य राखी छे. पदोनी संख्या प्रान्त भागनी गाथामा ८४००००० लखेली छे जे समवाय अने नन्दीसूत्र बन्नेथी जुदी पडे छे. पण अन्तनी गाथामां 'चुलसीय सयसहस्सा पदाण' ने बदले 'चुलसीई य सहस्सा पदाण' आq वांचवाथी समवायांग सूत्रमा जणावेली पदसंख्या साथे कशो विरोध नहिं आवे अने एवं वांचवें कई अयुक्त छे एम नथी.
पण खूबी तो ए छे के अन्तनी जे गाथामा ८४००००० पदनी संख्या लखेली छे तेनी टीका करतां आचार्य अभयदेव "चतुरशीतिः शतसहस्राणि पदानामनाङ्गे इति सम्बन्धः" एम लखीने व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्रमा ८४००००० पदो होवानुं माने छे अने समवायांग सूत्रमा जे स्थळे आ सूत्रनी पदसंख्या बतावी छे त्यां मूळमां "चतुरासीई पयसहस्साई पयग्गेणं" आ पाठनी टीका करता ए ज अभयदेव "चतुरशीतिः पदसहस्राणि पदाणेति" आम लखीने व्याख्याप्रज्ञप्तिमा ८४००० पदो होवानुं लखे छे. ए रीते तेमनी पोतानी ज समवाय अने व्याख्याप्रज्ञप्तिनी टीकामां जे स्पष्ट विरोध आवे छे ते तरफ तेमनुं ध्यान केम नहीं गयुं होय ! आ विरोधना परिहारनी रीत उपर बतावी छे. ए, पाठान्तरपरीक्षणनी दृष्टिए ठीक लागे एवी छे. आ उपरांत आ सूत्रमा जे जातनी शैलीथी विषयो चर्चेला छे ए संबंधनुं निरीक्षण शरुआतमा 'आध्यात्मिक शोध'ना मथाळा नीचे करेलु छे जे आधुनिक वाचनार माटे पूरतुं कही शकाय..
(३) दिगंबर संप्रदायमा प्रस्तुत ग्रंथनो परिचय अने तेनी साक्षीनो उल्लेख विक्रमना नवमा सैकामां थयेला प्रसिद्ध दिगंबराचार्य श्रीमान भट्टाकलंकदेव मुनि तत्त्वार्थसूत्र उपरना पोताना तत्त्वार्थराजवार्तिकमां द्वादशांगनो परिचय आपतां व्याख्याप्रज्ञप्तिनो पण परिचय आपे छे. तेमां तेओ नाम तो व्याख्याप्रज्ञप्ति ज जणात्रे छे अने तेमां "शुं जीव छे ! शुं जीव नथी? ए प्रकारनां ६०००० व्याकरणो छे' एम कही व्याख्याप्रज्ञप्तिना प्रतिपाद्य विषयनो पण उल्लेख करे छे.
गोमट्टसारनी ३५५ मी गाथामा प्रस्तुत सूत्रनुं 'विक्खापण्णत्ति' नाम सूचवेलुं छे अने नन्दीसूत्रमा कह्या प्रमाणे तेमा २८८००० पदो छे एम पण नोंधेलु छे.
आगळ जणाव्या प्रमाणे श्वेतांबरसंप्रदायना ग्रंथोमां तो व्याख्याप्रज्ञप्तिनी साक्षी अनेक स्थळे आवे छे. एज प्रमाणे दिगंबरसंप्र
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