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________________ १८ अव्यवस्थित पण लोकमा प्रचार पामेली परंपरा दरेक प्रकारना प्राचीन साहित्यमा सरखी रीते सचवाई रहे छे. केटलीकवार तेने भेज ते साहित्य लोकमान्य अने लोकप्रिय पण थई पडे छे. आ सूत्रनुं अवलोकन करतां जीवनशुद्धिनी मीमांसा, भगवाने बतावेला विश्वने लगता विचारो, रूढिच्छेद अने बीजी बीजी परंपराओनी असरथी नवी उपजेली केटलीक जैन परंपराओ, आ मुद्दाओ विषे विचार थई गयो. हवे भगवाननी अनेकांत दृष्टि विषे थोडो विचार करी पछी मात्र प्रस्तुत ग्रंथना ऐतिहासिक अन्वेषण विषे नीचेना मुद्दा विचारवाना छे. (१) आगमनी परंपरा अने ग्रंथर्नु नाम (२) बीजा आगमोमा प्रस्तुत ग्रंथनो परिचय, वर्तमान रचना शैली तथा ग्रंथर्नु पूर (३) दिगंबर संप्रदायमा प्रस्तुत ग्रंथनो परिचय अने तेनी साक्षीनो उल्लेख (४) व्याख्याप्रज्ञप्तिमां आवेलां केटलांक मतांतरो (५) व्याख्याप्रज्ञप्तिमा आवेला केटलांक विवादास्पद स्थानो (६) व्याख्याप्रज्ञप्तिनी टीका (७) व्याख्याप्रज्ञप्तिना टीकाकार अनेकांतदृष्टि भगवाने ज्या ज्या आचार के तत्त्वनुं प्रतिपादन करेलुं छे त्यां तेनी बधी अपेक्षाओ साथे विचार करेलो छे एटले के कोई एक पदार्थ तेना मूळ द्रव्यनी दृष्टिए अमुक जातनो होय छे, तेना परिणामनी दृष्टिए कोई जुदी जातनो होय छे, ते ज प्रमाणे क्षेत्र, काल, भाव वगेरे बाजुओ लक्षमा राखीने पण विचार करवामां आवेलो छे. ( भा० २ पा० २३२) स्कंदकना प्रश्नना उत्तरमा भगवाने तेने कर्तुं छे के, लोक सांत पण छे. लोक अनंत पण छे. काळ अने भावथी लोक अनंत छे अने द्रव्य अने क्षेत्रथी लोक सांत छे. जीव पण द्रव्य अने क्षेत्रथी सात छे अने भाव अने काळथी अनंत छे. (भा० १ पा० २३५) परमाणुने लगतो विचार करतां द्रव्य दृष्टिनो (दव्वट्ठयाए) अने प्रदेशदृष्टिनो (पएसट्टयाए) उपयोग करेलो छे. (भा० ४ पा० २३४) आचारनी बाबतमा समन्वयनी दृष्टि केशी अने गौतमना संवादमां सुप्रसिद्ध ज छे. एक स्थळे सोमिल नामना ब्राह्मणे भगवानने पूछ्युं छे के, तमे एक छो ? बे छो ? अक्षत छो ? अव्यय छो ! अने वर्तमान, भूत अने भविष्यरूप छो ! आना उत्तरमां भगवाने कयुं छे के, द्रव्यदृष्टिए हुं एक छु, ज्ञान अने दर्शननी दृष्टिए हुँ बेछु, प्रदेशनी दृष्टिए हुँ अक्षर छु, अव्यय छु अने उपयोगनी दृष्टिए हुं वर्तमान भूत अने भविष्यना परिणामवाळो छं. आ रीतनी समन्वय दृष्टि जेम भगवान महावीरे बतावेली छे तेम भगवान बुद्धे पण बतावेली छे. सिंह सेनापतिने बुद्धे कयु:-मने कोई अक्रियावादी कहे के क्रियावादी कहे के उच्छेदवादी कहे तो हुं ते बधी जातनो छं. पुण्यप्रद विचारोनी किया करवी, कुशळ वृत्ति वधार्ये जवी, सदिच्छाने अनुसरवी एवो हुँ उपदेश करूं छं तेटला माटे क्रियावादी पापक्रियानो विचार न करवो, पापना विचारो मनमां न आववा देवा अने पापविचारोनो नाश करवो ए बधानो हुं उपदेश आपुं छं माटे हुँ अक्रियावादी छु अने अकुशळ मनोवृत्तिनो उच्छेद करवानुं हुं कहुं छू माटे उच्छेदवादी छु. आ प्रकारनी व्यक्तिगत के विश्वगत समन्वयनी दृष्टि जैन परंपराना अने बौद्ध परंपराना शास्त्रोना अत्यारे पण जळवाई रही छे. आना स्याद्वाद, अनेकान्तबाद, विभज्यवाद, ए नामो जैन परंपरामां प्रसिद्ध छे अने बौद्ध परंपरामां पण मध्यमप्रतिपदा अने विभज्यवाद जाणीतां छे. वर्तमानमा जो आपणा आचारो आ दृष्टिथी विचाराय तो लगभग बधा साम्प्रदायिक कलहोनो अंत आवे अने आपणां बुद्धि अने जीवननो सद्व्यय थई ठीक प्रमाणमा विकास थई शके. (१) आगमनी परंपरा अने ग्रंथतुं नाम आ सूत्रना मूळ कर्ता विषे विचार करवो सौथी प्रथम प्राप्त हतो पण ते विषे जैन परंपराए खुलासो करी दीधो छे के मूळ आगम मात्र तीर्थकरना अनुयायीओ गुंथे छे एटले के आगमनी शब्दरचना खुद तीर्थकरनी नथी होती पण तेमना समसमयी के परवर्ती अनुया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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