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बोलावे छे अने ते बहारनी सभाना देवो इन्द्रना कहेवाथी वरसाद वरसावे छे. आ प्रकारनी वृष्टि साथै इन्द्रना संबंधनी हकीकत जे जैन प्रवचनमां आवेली छे ते वेदनी पुराणी इन्द्रकानी प्रसिद्धिनुं ज परिणाम छे हवे ए वस्तु सिद्ध पई गई छे के वरसाद केम आवे छे अने सेना कया कयां कारणो से तथा तेनी साधे इन्द्रनो केटलो संबंध के अने ए इन्द्र कोण छे !
९ मा शतकमा ३ जा उदेशकमा एकोरुक- एक सामान्य एकटंगिया मनुष्योना द्वीपनी हकीकत आवे छे. ए द्वीप जंबूद्रीपम आवेला मंदर पर्यंतनी दक्षिणे चुछहिमवंत पचतना पूर्व छेडाची ईशान कोणमां त्रणसो योजन उपण समुद्रमां गया पछी आवे छे. से द्वीपनी संबाई पहोलाई ३०० योजन छे अने घेरावो ९४९ योजन करतां कांईक न्यून छे.
आ प्रमाणे बीजा अनेक द्वीपो विषे पण तेमां जणावेलुं छे. ए शतकना पहेला उद्देशकमां लखेलुं छे के जंबूद्वीपमां पूर्व पश्चिम बची मळीने १४५६००० नदीओ छे.
द्वीपो अने समुद्रो आ विश्वमां असंख्य छे एम भगवाने कयुं छे. ज्यारे इन्द्रभूतिए द्वीपो अने समुद्रोनां नाम विषे भगवानने पूछयुं ब्यारे तेमणे जणान्युं के लोकमां जेटलां सारां रूपो, सारा रसो, सारा गंधो अने सारा स्पर्शो छे ए बधां द्वीपनां अने समुदनां नाम समजवां, जेमके क्षीरसमुद्र, इक्षुसमुद्र, घृतसमुद्र वगेरे. ( भा० २ पा० ३३४ )
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आ उपरांत चंद्र, सूर्य अने साराओनी संख्या अने तेनां रहेनाराओनी रहेणीकरणी ए विये पण ९ मा शतकना बीजा उद्देशकम हकीकत आवे छे. ताराओ कि खतां तेमणे कां छे के एक लाख तेत्रीस हजार नवसो पचास कोटाकोटी तारानो समूह विश्वने शोभावी रह्यो छे.
आ सूत्रमां आवेली आ वधी हकीकतो भूगोल-सगोळने लगती प्राचीन आर्य परंपरानी असरने आभारी होय एवं लागे छे. कारण के भूगोल ने गोल विषे आने मळती मान्यता, वैदिक-महाभारत, पुराण वगेरे के अवैदिक वधी परंपराओमां फैलायेली हती.
अत्यारनुं भूगोळ ने खगोळनुं विज्ञान ए संबंधमां जे प्रकाश पाडे छे ते खास ध्यानमां लेवा जेवो छे.
ईश्वरने सृष्टिकर्तीने स्थाने समजनारी बधी परंपराओमां जगतनी उत्पत्तिनी पेठे जगतना प्रपनी पण सास कल्पना चाली आवे छे.
प्रलयकाळने माननारी परंपराओ एम जणावे छे के ते वखते बधा परमाणु अने जीवो सिवाय कशुं रहेवानुं नथी. ज्यारे सृष्टिनी नवी शरुआत थाय छे त्यारे ए बची रहेलां परमाणुओ अने जीवोनो उपयोग करी ईश्वर नवी सृष्टि बनावे छे. जैन परंपरामां आ संबंधे एवं मानवामां आवे छे के प्रलयकाळ जेवा आरामो प्रख्यना भयंकर वायु वाशे, दिशाओ धूममप पशे, सूर्य उम्रपणे तपशे, चंद्र अतिशय असह्य शीतता आपशे, खराब रसवाळां, अग्निनी पेठे दाहक पाणीवाळा, झेरी पाणीवाळा, रोगजनक पाणीवाळा, मुशळधार वरसाद वरसशे एधी कंरीने भारतवर्षमा ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्यट, मडंब, द्रोणमुख, पहन अने आश्रममा रहेला मनुष्यो, चोपगा प्राणीओगायो, पेट वगेरे, आवाशर्मा उडतां पक्षीओ तेमज गाम अने अरण्यमां चालता त्रस जीयो तथा अनेक प्रकारनां वृक्षो, गुच्छाओ, उताओ, वेलाओ, घास, शेरडीओ, घरो, अनाजमात्र, अंकुरो तथा तृणवनस्पतिओनो नाश पसे वैतान्य सिवायना पर्वतो, गिरिओ, डुंगराओ, धूळना उंचा देकराओ वगेरेनो नाश थशे. गंगा अने सिन्धु सिवायनी नदीओनो पण अंत आवशे. अग्निना वरसादोने लीधे तपेला कडाया जेवी अने धगधगता अंगारा जेवी जमीन थशे. बहु कीचडवाली बहु कादवाळी जमीन थशे. जेवी एना उपर बचेका प्राणीओ पण चाली नहीं शके. ७२ निगोदो भाविसृष्टिना बीजरूप बीजमात्र बचशे अने ते वैताढ्य पर्वतनो आश्रय करीने त्यां बीलोमां रहेशे . ( भा० ३ पा० २१ - २३ )
बालम पण काळे जे जीवो बची रहेनारा छे तेनी संख्यानी हकीकत एक कयाना रूपगां आवे छे. तेनो सार आ प्रमाणे छे:-"विश्वमां भयंकर जलप्रलय भवानी आगाही नुहने प्रभु खमाद्वारा आपी, अने आज्ञा करी के तारे एक महान वहाण तैयार कर, जेथी तारा कुटुंबने अने पृथ्वी उपरना हरेक जातना पशु पक्षीओमांधी बच्चे-नर अने मादाने बचावी लेयां, मुद्दे आज्ञानुसार महान तैयार कहुँ अने तेमां पोताना कुंटुंबने अने बीजा हरेक जातना पशुपक्षीमांची बम्बेने पकड़ी पकडीने पूरी दीघां. जे पशुओ पकडायां हतां तेमां एक सिंह अने एक सिंहण, एक वाघ अने एक वाघण, एक हरण अने एक हरणी, एक भैंस अने एक पाडो, एक गाय अने एक आखलो, एक बकरो अने एक बकरी, एक घेटो अने एक घेटी हतां. पक्षीओमां एक पोपट, एक मेना, एक चकलो अने एक चकली, एक मोर अने एक टेउ हतां जलप्रलय थयो आखा विश्वमांची फक्त एबहानमा रहेां व बची शक्यां."
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वैदिक परंपरा अने अवेस्तानी परंपरामां पण आने मळती हकीकत नौधाएली के ए ऐतिहासिकोने सुविदित ज छे.
आ प्रकारे आजची २५०० वर्ष पहेठांनी परंपरा उपर संकलित भयेा आ ग्रंथम समसमपनी के पूर्वसमपनी बीजी केटलीये परंपराओ एक के बीजे रूपे सचधाई रहे ए तदन साभाविक छे. आ उपरथी आपणे एटलं ज अनुमान काढी शकीए के व्यवस्थित के
१ ग्राम बगेरेना परिचय माटे जूओ प्रस्तुत ग्रंथ भाग २ पृ० १०६ टिप्पण १ भ० सू० 3
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