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________________ १६ जगतमा उल्कापात, दिग्दाह, धूळनो वरसाद, चंद्रग्रहण, सूर्यग्रहण, इन्द्रधनुष्य, मोटा मोटा दाहो, ग्रामदाह, नगरदाह, प्राणीक्षय, जनक्षय, धनक्षय, कुलक्षय, संध्या, गांधर्वनगर आ अने आवा बीजा बधा उत्पातो सोमनी देखरेख नीचे जगतमा आवे छे. सोमने आधीन विद्युत्कुमार, विद्युत्कुमारी; अग्निकुमार, अग्निकुमारी; वायुकुमार, वायुकुमारी; चंद्र, सूर्य, प्रह, नक्षत्र अने तारा ए बधां छे. शक्रने बीजो लोकपाळ यम छे. जगतमा कलह, महासंग्राम, मारफाड, रोगचाळा, शारीरिक दुःखो, पळगाड, एकांतरीयो, बेआंतरीयो, त्रणांतरीयो, चोथीयो, खांसी, श्वास, पांडुरोग, हरस, शूळ, मरकी आ बधा उपद्रवो यमनी सत्ता नीचे थाय छे. अंब, अंबरीष, महाकाळ, असिपत्र, कुंभ, वाल, वैतरणी ए बा यमना आश्रितो छे. वरुण त्रीजो लोकपाळ छे. अतिवृष्टि, मंदवृष्टि, सुवृष्टि, दुर्दृष्टि पाणीना उपद्रवो, जलप्रलय अने पाणीनी रेलो ए बधुं आ वरुणनी सत्तामा छे. लोढानी, कलाईनी, तांबानी, सीसानी, सोनानी, रुपानी, रत्ननी अने हीराओनी खाणो तथा रन, सुवर्ण वगेरेनी वृष्टिओ, सुकाळ, दुष्काळ, सोंघाई, मोंघाई आ बधुं शक्रना चोथा लोकपाळ वैश्रमणनी सत्तामां छे. ___ सुवर्णकुमारो, सुवर्णकुमारीओ, द्विपकुमारो, द्विपकुमारीओ, दिक्कुमारो, दिक्कुमारीओ, वानव्यंतरो, वानव्यंतरीओ ए बर्धा वैश्रमणना आशरामा रहे छे. __ आ बधु जोतां एम मालुम पडे छे के जाणे के जगतमां चालतुं आ बधुं तंत्र आ लोकपालोने आभारी न होय ? पण आत्मबळने प्रधान माननारा अने ते उपर ज प्रवर्तनारा तीर्थकरना शासनमा आ लोकपालोनी सत्ताथी थती ए व्यवस्था घटाववी शी रीते ! जे कोई दृश्य अने अदृश्य बनावो बने छे ते बघा आत्माए संचित करेला कर्मना परिणामरूप छे एम जिनदेव कहे छे तो आपणे रोगचाळा के दुष्काळनां कारणो आपणां कर्ममा शोधवां के लोकपालमा ! कदाच लोकपालोने निमित्त कारण कल्पीने उपर्युक्त व्यवस्था घटाववानो विचार यई आवे पण हरस, खांसी, शूळ वगेरेना अधिष्ठायक निमित्तो शरीरनी रक्षानुं अज्ञान अने कुपथ्यादिकने कल्पवां के लोकपालोने ! ___वळी, कार्यमात्रने थवानां पांच कारणो जैन परंपरा बतावे छे. जेमके:-काळ, खभाव, नियति, पूर्वकृत अने पुरुष. जगतनी बधी व्यवस्था आ कारणोनी व्यवस्थाने आधीन छे. एमां रोगो फेलावनारा, सुकाळ करनारा लोकपालोनुं स्थान क्या छे ते समजबुं मुश्केली भयु छे. जैनपरंपरामां संतसमागम अने तेनी अवेजीमां वीतरागर्नु ध्यान, स्मरण वा पूजन आदर्शने पहोंचवा सारु साधको माटे उचित मनायां छे पण रोगादिक टालवा वा धनलाभादिकं सुख मेळववा सोम, यम, वरुण के वैश्रमण वा इंद्रादिकनुं ध्यान, स्मरण, पूजन के प्रार्थना सम्यग्दृष्टि साधकने सारु तो सर्वथा निषिद्ध छे. ए तो दुःखना के सुखना जे जे प्रसंगो आवे तेने पोताना ज संस्कारोनुं परिणाम जाणी समपणे अनुभवे छे त्यारे वैदिक परंपरामां तो सोम, यम, वरुण, वैश्रमण के इंद्र वगेरेने लाभ वा हानिकर्ता ठराववामां आव्या छे अने लाभ मेळववा वा हानि टाळवा ते ते सोमादिकनी पूजा प्रार्थनानां पुरातन विधानो करवामां आव्यां छे जे आज पण प्रचलित छे तेथी आ सूत्रमा चर्चायेली आ लोकपालनी हकीकत पौराणिक पद्धतिने आभारी छे एम मानवामा करुं अनुचित नथी. वरसाद माटे इन्द्रनी पूजा घणा जूना काळथी वेदोमां प्रसिद्ध छे एटले के वैदिक जमानामां लोको एम मानता के वरसाद मोकलवो ए इन्द्रनी सत्तानी वात छे, तेथी ज तेओ वरसादने माटे इन्द्रने तुष्ट करवा यज्ञ करता. आ वहेम श्रीकृष्णे गोवर्धनपूजानी प्रथा पाडीने दूर करवा प्रयत्न करेलो ए जाणीतुं ज छे अने जैन परंपरामा वरसाद वगेरे कारणो माटे इन्द्रादिकने तुष्ट करवाना प्रयत्नो कदी करवामां आव्या नथी, कारण के भगवान महावीर खुद इन्द्रयज्ञ वगेरे यज्ञोना विरोधी हता एमां कशो शक नथी. ए परावलंबन टाळवा ज एमणे पुरुषार्थवाद अने कर्मवादनो सिद्धांत ते वखतना समाज समक्ष मूकेलो, आम छतांय वरसाद मोकलनार इन्द्रने लगती ए जूनी परंपरा आ सूत्रमा सचवायेली छे. चौदमा शतकना बीजा उद्देशकमा इन्द्रभूति गौतम भगवानने पूछे छे के देवेन्द्र देवराज शक ज्यारे वृष्टि करवानी इच्छावाळो होय छे त्यारे ते केवी रीते वृष्टि करे छे ? तेना उत्तरमा भगवान गौतमने कहे छे के ज्यारे तेने वरसाद वरसाववानी इच्छा थाय छे त्यारे ते पोतानी आंतरसभाना देवोने बोलावे छे, आंतरसभाना देवो मध्यसभाना देवोने बोला छे, मध्यसभाना देवो बहारनी सभाना देवोने १ वर्तमानमां जैनमंदिरोनी प्रतिष्ठा करवानी विधिमां के शांतिनावमां शांतिकर्म माटे देवोने आमंत्रवामां आवे छे अने तेओने संतुष्ट करव विविध प्रकारना नैवेद्यो पण धरवामां आवे छे. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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