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१५ कहीने ते जडपूजामांथी लोकोने बचावी लेवा प्रयत्न कर्यो, ए एकसरखी हकीकत आ सूत्रमां आवेला दिशाना प्रकरण उपरथी स्पष्ट रीते समजी शकाय एवी छे. दिशा विषे भगवाननुं प्रवचन ते वखतनी दिकूपूजननी रूहिने नाबूद करनाएं छे.
आ प्रकारे भगवाने पोताना समयनी कुरूढिओने नाबूद करवा अने तेने स्थाने सुमार्ग प्रवर्ताववा पोताना प्रवचनमां घणो प्रयास करेलो छे. आ जातनां उदाहरणो घणां आपी शकाय पण उपरनो उदाहरणो नमुनारूपे मात्र टांकलां छे.
भगवान महावीरे अने भगवान बुद्धे कुरूढिने दूर करीने लोकोने सुरूढि पर लाववा पोताना प्रवचनोमां पूर्वोक्त केटलीक हकीकतो बतावेली छे. आधी ज आ बने महापुरुषो ते बखतना प्रबळ सुधारको हता एम जे अमारना शोधको माने छे से सरेस छे. आर्योंए बतावेळा अहिंसा अने सत्यमय मार्गमां जे केटलोक कचरो भराई गयेलो तेने दूर करवा आ बन्ने महापुरुषोए घणो प्रयत्न. सेव्यो छे एमां शक नयी.
केटलीये एवी वैदिक मान्यताओ हती जेनाथी लोकोमां हिंसा, असत्य, जडता वगेरे दुर्गुणोनो वधारो थतो अने एथी ते वखतनी प्रजा श्रासी पण गयेली, ए प्रजाने सन्मार्ग बताया भगवान बुद्ध अने भगवान महावीर कल्याणमित्ररूपे न आल्या होत तो अत्यारे आपणी केवी दुर्दशा होत ते कोण कही शके
जैनशास्त्री उपर वैदिक परंपरानी असर
वैदिक परंपराओमा केटा सुधारा करनारा जिनप्रवचनमां पण केलीये एवी मान्यताओ मछे छे जे वैदिक परंपरानी असरने आभारी होय. आ हकीकत समजवा माटे आ सूत्रमांथी ज आपणे केलांक उदाहरणो नीचे प्रमाणे जोई शकीशु.
देवदानवनुं युद्ध वेदनी परंपरामां प्रसिद्ध छे. ते युद्धने निरुक्तमां विजळीना कडाका तथा मेघनी गाजवीजना रूपक तरीके वर्णबेल छे. आ सूत्रमां इंद्रभूति गौतम भगवान महावीरने छे छे के देव अने असुरनो संग्राम के आनो उत्तर भगवान हकारमां आपे छे. आ पछीना सूत्रोमा देवनां शत्रो भने असुरनां शस्त्रोनी हकीकत भगवाने इंद्रभूतिने समजावेली छे. (भा० ४ पा० ६८) देवअसुरना संग्रामने लगता बधा प्रश्नो वैदिक परंपरामां प्रसिद्ध एवी देवदानवनी प्रख्यात उदाईने सक्षम राखीने करवामां आम्या दोष एम मालुम पढे के एट ज नहीं पण देवदानवना युद्धनी ए पौराणिक कथामा वधारे मेाळी हकीकत आवे ते माठे तेमना युद्धनां कारणो सायेनी एक कथा पण आ सूत्रमां मूकवामां आवेली छे.
श्रीजा शतफना भीजा उदेशफम आ संबंधमां एम कद्देवानां आयुं छे के देवो अने असुरोने जम्मधी ज बैरनो स्वभाव छे. अने ते बे बच्चे संपत्ति अने स्त्रीओ माटे युद्ध थाय छे. वैदिक कथानी हकीकत करतां देवासुरना युद्धने लगती आ हकीकत 'देवो अने असुरो पण लोभी अने विषयी होई परस्पर लडे छे' ए वस्तु समजावे छे अने लोकोने लोभ अने विषयना निर्वेद तरफ लई जई स्वर्ग पण वांछनीय नथी ए वात सूचवे छे अने आ जैनकथामां ए ज मुद्दो मेळवाळो छे. अहीं एक वस्तु ख्यालमा राखवानी छे के ज्यारे वैदिक परंपरामां देव अने दानवना स्पष्ट विभाग छे त्यारे जैनपरंपरामा असुरोने पण देव तरीके गणावेला छे.
भगवान महावीरे श्रीजा शतकना आ ज उद्देशामां पोतानी हयातीमां देवेंद्र देवराज शक अने असुरेंद्र असुरराज चमरनुं युद्ध
एम इन्द्रभूति गौतमने विस्तार सहित जगावे छे अने ते लडाईमां भगवानना ज आशराथी असुरेंद्र चमरनुं रक्षण पधुं धतुं एम पण सूचवे छे. आ उढाई जंबूद्दीपना भारतवर्षना सुंधुमार नगरमा ज्यारे भगवान दीक्षा सीधा पछी अगियारमे वर्षे तप सपता हता ते वसते पई इसी असुरेंद्र अने देवेन्द्र बनेने भगवानमा भक्त तरीके आ कथामा जणावेला छे. आ सूत्रमां आवेली आ कथानो उल्लेख सिद्धसेन दिवाकर पोतानी बत्रीशीओमांनी महावीरस्तुतिना त्रीजा श्लोकमां कवित्वने छाजे एवी सरस रीते करे छे.
जेम राम अने पांडवोनी कथा जैनपरंपरामां जैनदृष्टिए सारो घाट आपीने वर्णवायेली छे तेम देवअसुरनी आ कथा सारो घाट आपीने वर्णवाई होय अने ते द्वारा विषयनिर्वेद फेलाववानो आध्यात्मिक हेतु जैनाचार्योंए साध्यो होय तो ते तेमना ध्येयने बराबर अनुकूळ थयुं होय एवं लागे छे.
आव ज बीजी हकीकत लोकपाळोने लगती छे. त्रीजा शतकना सातमा उद्देशकमां कहेवामां आव्युं छे के देवेन्द्र देवराज शक्रना चार लोकपाळ छे. सोम, यम, वरुण अने वैभ्रमण आ चारे ढोकपाव्ये शत्रुनी आज्ञामां रहे छे.
१ निरुकना उल्लेख माटे जूओ प्रस्तुतग्रंथ भाग २ पृ० ४८-४९ टिप्पण २.
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देवाथ जैन समभवति व्यन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिकमेदातु भवन्ति ॥३॥
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अभिधानचिन्तामणि देवकाण्ड श्लोक ३ भोक माटे जुओ प्रस्तुत ग्रंथ भाग २ पृ. ६१ टिप्पण १
जैन सिद्धान्तमां देवोना चार प्रकार छे जेमके:-भवनपति, व्यन्तर, वै.
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