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________________ १४ "हतो वा प्राप्स्यसि खर्गम्" ( गीता अ० २ सो० ३७) ए गीताना वाक्यमा एम कहेवामां आव्युं छे के शत्रुने हणीने तुं स्वर्गे जईश, एथी गीताना जमानाथी के गीताना समय पहेलेयी लोकोमां एवी मान्यता प्रसरी गयेली के लडनारा लोको स्वर्गे जाय छे. आ मान्यताने ली मोटी मोटी लडाईओमां लडनारा घणा मळी आवता अने आ रीते मनुष्यजातनो कच्चर घाण नीकळतो. ए अटकाववा भगवाने ए मान्यता उपर स्पष्ट प्रकाश नास्यो छे अनेक छे के लोको युद्धयी सर्ग मळयानी बात कहे छे ते खोटी छे. पण खरी बात तो एछे के लडनारा खर्गे ज जाय छे एम नथी पण ते पोतपोतानां शुद्धाशुद्ध कर्म प्रमाणे भिन्न भिन्न योनिओमां जन्म धारण करे छे. ( भा० ३ पा० ३२ ) आ हकीकत कहीने भगवाने युद्ध खर्गनुं साधन छे एवी जातनी सोकोमा फैलायेली धारणा खोटी पाडी अने लोकोने युद्धना हिंसामय मार्गथी दूर रहेवानी खास भलामण करी. बळी, ते वसतनी दिशापूजनमी प्रधाने छोकोगांची दूर करवा अने तेनुं खरं स्वरूप बतायया भगवाने आ सूत्रमां दिशानी पण चर्चा करी छे. दशमा शतकना पहेला उदेशकनी शुरूआत दिशाना विवेचनची करवामां आवी छे. भगवाने गौतमने क ले के दिशाओ दश कहेवामां आयी छे जेना समधी नाम ऐन्द्री (इन्द्रना सावळी), आग्नेयी (अग्निना खामिवाळी), याम्या यमनाखामिवबाळी), निश्रुति (निर्ऋति नामना देवना खामिवाळी), वारुणी ( वरुण देवना खामिवाळी) वायव्य (वायुना खामित्यवाली) सौम्या ( सोमना स्वामित्ववाळी ) ऐशानी ( ईशानना स्वामित्ववाळी), विमला अने तमा. आ दश दिशाओने माटे पुराणप्रसिद्ध उपर्युक्त नामो जणावा उपरांत नीचेना प्रसिद्ध शब्दो पण मूकवामां आवे छे. पूर्व, पूर्वदक्षिण, दक्षिण, दक्षिणपश्चिम, पश्चिम, पश्चिमोत्तर, उत्तर, उत्तरपूर्व, ऊर्ध्व ( उपरनी), अधो ( नीचेनी) आ बधी दिशाओ जीवाजीवना आधाररूप छे तेथी उपचारथी ए दिशाओने जीव अजीवरूप कामां आयी छे. दिशाने एक द्रव्य तरीके गणायपानी पद्धति वैदिक परंपरानी वैशेषिकं शालामा प्रसिद्ध छे. वैदिककाळमां दिशाओनी पूजा करवानो प्रघात हतो ए हकीकत से साहित्य उपरथी जानी शकाय छे अने दिशाओनुं प्रोषण करीने जमानी पद्धति एक जत तरीके अगुक परंपरामा चालु हती अने ते परंपराने मानता लोको दिसापोक्खिनो कहेयाला ए हकीकत जैन आगमोमां पण मळे छे. आ रीते वेदनी जूनी परंपरामां दिशाओनुं महत्त्व विशेष प्रसिद्धि पामेलुं हतुं अने दिशाओनी पूजानो प्रचार पण लोकोमां ठीकठीक हतो. आ जड प्रचारने रोकवा माटे ज भगवाने दिशाना माहात्म्यनी निष्प्रयोजनता बताववा तेने आ सूत्रमां जीवाजीवात्मक कहीने वर्णली. दिशाओ मात्र आकाशरूप होई जीवाजीवरूप समस्त पदार्थना आधाररूप छे ए बात खरी के पण एटा मात्रची तेगी जयपूजा करना मंडी पटवुं ते आध्यात्मिक शुद्धि के जीवनशुद्धि माटे जराय उपयोगी नभी. भगवान बुद्धे पण दिशाओनी जडपूजाने अटकाववा पोताना प्रवचनमां वीजी ज रीते टकोर करी छे. दीधनिकोयना त्रीजा वर्गना सिगालोमादत्तमां उसे छे के एक वखत बुद्ध भगवान राजगृहना वेणुवनमा रहेता हता ते बसते सिगाल नामनो एक युवक शहेरमांथी रोज सवारे बहार आवी स्नान करी पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उपर अने नीचे ए छए दिशाने नमस्कार करतो हतो. राजगृहमां मिक्षा गाटे जता बुद्ध तेने जोईने बोल्या "गृहपतिपुत्र । तें आ शुं मांड छे" सिगाल बोल्यो- "हे भदंत गारा पिताए मरती वखते छ दिशानी पूजा करता रहेवानुं मने कह्युं होवाथी हुं आ दिशाओने नमस्कार करुं हुं" भ० बुद्ध बोल्या - "हे सिगाल ! तारो आ नमस्कारविधि आर्योनी पद्धति प्रमाणे नथी." त्यारे सिगाले आर्योंनी रीति प्रमाणे छ दिशाओनो नमस्कारविधि बताववा बुद्धने विनंती करी. म० बुद्ध बोल्या "जे आर्यश्रावकने छ दिशानी पूजा करवानी होय तेणे चार कर्मप्रेशणी मुक्त यतुं जोइए. चार कारणोने ने पापकर्म करवां न घटे अने संपत्तिनाशनां छद्वारोनो रोगे अंगीकार करवो न घटे आ चौद वातो सांभळे तो छ दिशानी पूजा करवाने ते योग्य बने छे”. आ उपरांत बुद्धे तेने एम कह्युं के भाई ! माबाप ए पूर्वदिशा छे, गुरुने दक्षिण दिशा समजवी, पत्नीपुत्र पश्चिमदिशा, सगांबहालां उत्तरदिशा, दास अने मजूर नीचेनी दिशा तथा श्रमणत्राह्मण उपरनी दिशा समजवी. आटलं कथा पछी तेने ए दिशाभनी पूजानी पद्धति बुद्ध भगवाने विस्तारथी समजावी छे. आ उपरथी एम मालम पडे छे के भगवान बुद्धना वखतमां दिशाओनी जडपूजानो प्रचार खूब थयेलो होवो जोईए, जेने अटकाववा श्रीबुद्धे नया प्रकारे दिशानी पूजानी पद्धति लोकोने समजावी अने भगवान महावीरे पूर्वोक्त प्रमाणे दिशा ओने जीवाजीवात्मक १ २ ३ Jain Education International "पृथिव्यापस्तेजो वायुराकाशं कालो दिग् आत्मा मन इति द्रव्याणि ' (वैशेषिकदर्शन प्रथम अध्याय ) "उदकेन दिशः प्रोक्ष्य ये फल - पुष्पादि समुच्चिन्वन्ति” औपपातिक सूत्र पृ० ९० जूओ दीघनिकाय-उपर्युक्तसूत्र. १ पृथ्वी, पाणी, तेज, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा अने मन एटलां द्रव्यो छे. २ जे लोको पाणीधी दिशाओने अर्ध्य आपीने फळ, फुलने ग्रहण करे तेषी दिशाशी काय. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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