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________________ २०४ श्रीरायचद्र-जिनागमसंग्रहे शतक २५.-उद्देशक ३. तईओ उद्देसो। १.प्र०] कति णं भंते ! संठाणा पन्नत्ता? [उ०] गोयमा। छ संठाणा पन्नत्ता, तं जहा- परिमंडले, २ बढे, ३ तंसे, ४ चउरंसे, ५ आयते, ६ अणित्थंथे। २. [प्र०] परिमंडला गं भंते ! संठाणा दधट्टयाए कि संखेजा, असंखेजा, अणंता ? [उ०] गोयमा ! नो संस्नेजा, नो असंखेजा, अणंता। ३. [प्र०] वटा गं भंते ! संठाणा० ? [.] एवं चेव, एवं जाव-अणित्थंथा, एवं पएसट्टयाए वि, एवं बधटुपएसट्टयाए वि। ४.[प्र० एएसि णं भंते ! परिमंडल-व-तंस-चउरंस-आयत-अणित्यंथाणं संठाणाणं दधट्टयाए पएसट्टयाए दषटुपएसट्टयाए कयरे कयरेहितो जाव-विसेसाहिया वा! [उ०] गोयमा! सवयोवा परिमंडलसंठाणा दट्टयाए, वहा संठाणा दघट्टयाए संखेजगुणा, चउरंसा संठाणा दघट्टयाए संखेजगुणा, तंसा संठाणा दचट्ठयाए संखेजगुणा, आयतसंठाणा दघट्टयाए संखेजगुणा, अणित्थंथा संठाणा दधट्टयाए असंखेजगुणा । पएसट्टयाए-सव्वत्थोवा परिमंडला संठाणा पएसट्टयाए, वहा संठाणा पदेसट्टयाए संखेजगुणा; जहा दवट्ठयाए तहा पएसट्टयाए वि, जाव-अणित्थंथा संठाणा पएसट्टयाए असंखेजगुणा। दघट्टपएसट्टयाए-सवत्थोवा परिमंडला संठाणा दधट्टयाए, सो चेव गमओ भाणियचो, जाव-अणित्थंथा संठाणा दखट्टयाए पसंख्नेजगुणा, अणित्थंथेहितो संठाणेहितो देवढयाए परिमंडला संठाणा पएसट्टयाए असंखेगुणा, वहा संठाणा पएसट्टयाए संखेजगुणा-सो चेव पएसट्टयाए गमओ भाणियव्वो, जाव-अणित्थंथा संठाणा पएसट्टयाए असंखेजगुणा । ५. [प्र०] कति णं भंते ! संठाणा पन्नत्ता ! [उ०] गोयमा! पंच संठाणा पन्नत्ता, तं जहा-परिमंडले, जाव-आयते । तृतीय उद्देशक. संस्थान. १. [प्र०] हे भगवन् ! संस्थानो-पौद्गलिक स्कंधना आकारो केटला कह्यां छे ! [उ०] हे गौतम ! छ संस्थानो कयां छे, ते आ प्रमाणे-१ परिमंडल-वलयाकार, २ वृत्त-गोळ, ३ व्यस्र-त्रिकोण, ४ चतुस्र-चतुष्कोण, ५ आयत-दीर्घ अने ६ अनित्यंस्थ परिमंडलादिथी भिन्न आकारवाळु. परिमंगलनी संख्या. २. [प्र०] हे भगवन् ! परिमंडल संस्थान द्रव्यार्थरूपे \ संख्याता छे, असंख्याता छे के अनंत छे ! [उ०] हे गौतम ! ते संख्याता नथी, असंख्याता नथी, पण अनंत छे. वृत्तादिनी संख्या. ३. [प्र०] हे भगवन् ! वृत्त संस्थान द्रव्यार्थरूपे शुं संख्याता छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवं. एम यावत्-अनित्यंस्थ संस्थान सुधी जाणवू. ए प्रमाणे प्रदेशार्थपणे अने द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थपणे पण समजवू. मत्सबकुत्त्व. ४. [प्र०] हे भगवन् ! परिमंडल, वृत्त, व्यस्र, चतुरस्र, आयत अने अनित्यंस्थ संस्थानोमा द्रव्यार्थरूपे, प्रदेशार्थरूपे भने द्रव्यार्थप्रदेशार्थरूपे कयां संस्थानो कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम | द्रव्यार्थरूपे *परिमंडल संस्थानो सौथी थोडां छे, तेथी वृत्त संस्थानो द्रव्यार्थरूपे संख्यातगुणां छे. तेथी चतुरस्र संस्थानो द्रव्यार्थरूपे संख्यातगुणां छे, तेथी व्यस्रसंस्थानो द्रव्यार्थरूपे संख्यातगुणां छे, तेथी आयत संस्थानो द्रव्यार्थरूपे संख्यातगुणां छे, अने तेथी अनित्यंस्थ संस्थानो द्रव्यार्थरूपे असंख्यातगुणां छे. प्रदेशार्थरूपे परिमंडल संस्थानो सौथी थोडां छे, तेथी वृत्त संस्थानो प्रदेशार्थरूपे संख्यातगुणां छे-इत्यादि जेम द्रव्यार्थरूपे कयुं छे तेम प्रदेशार्थरूपे पण यावत्-'प्रदेशार्थरूपे अनित्यस्थ संस्थानो असंख्यातगुणां छेत्यां सुधी कहे. द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूपे-परिमंडल संस्थानो सौथी थोडां म्याधरूपे. छे-इत्यादि द्रव्यार्थ संबन्धी पूर्वोक्त गमक-पाठ कहेवो, यावत्-'अनित्थंस्थ संस्थानो द्रव्यार्थरूपे असंख्यातगुणां छे.' द्रव्यार्थरूपे अनित्थंस्थ संस्थानो करतां परिमंडल संस्थानो प्रदेशार्थरूपे असंख्यातगुण छे, तेथी वृत्त संस्थानो प्रदेशार्थरूपे संख्यातगुणां छे-इत्यादि पूर्वोक्त प्रदेशार्थपणानो पाठ यावत्-'अनित्थंस्थ संस्थानो असंख्यात गुण छे' त्यां सुधी कहेवो. संसान. ५. [प्र०] हे भगवन् ! केटला सिंस्थानो कयां छे । उ०] हे गौतम ! पांच संस्थानो का छे, ते आ प्रमाणे-१ परिमंडल, यावत्-५ आयत. 'दग्वट्ठयाए हिंतो'ग-छ। *४ अहिं संस्थानोनी जघन्य अवगाहनानो विचार कर्यो छे. जे संस्थानो जे संस्थाननी अपेक्षाए बहुप्रदेशावगाही छे ते खाभाविक रीते थोडा छे. परिमंडल संस्थान जघन्यथी वीश प्रदेशनी अवगाहनावाळु होय छे, अने वृत्त, चतुरस्र, व्यस्र अने आयत संस्थान जघन्यथी अनुक्रमे पांच, चार, त्रण अने ये प्रदेशावगाही छे. माटे परिमंडल बहुतरप्रदेशावगाही होवाथी सर्वथी थोडा छे, तेथी वृत्तादि संस्थानो अल्प अल्प प्रदेशावगाही होवाथी संख्यातगुणा अधिक अधिक होय छे. ५ संस्थाननी सामान्य प्ररूपणा करी. हवे रमप्रभादिने विषे प्ररूपणा करवानी इच्छाथी पुनः संस्थान संबन्धी प्रश्न करे छे. भही अन्य संस्थानोना संयोगजन्य होवाथी छठा अनित्थंस्थ संस्थाननी विवक्षा करी नथी, तेथी पांच ज संस्थान कयां छे-टीका. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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