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शतक २५.-उद्देशक ३.
भगवत्सुधर्मखामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ६. [प्र०] परिमंडला णं मंते ! संढाणा किं संखेजा, असंखेजा, अणंता ? [उ०] गोयमा ! नो संस्नेजा, नो असंखेजा, अणंता।
७. [प्र०] वटा णं भंते ! संठाणा किं संखेजा० १ [उ०] एवं चेव । एवं जाव-आयता ।
प्रि० इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए परिमंडला संठाणा किं संखेजा, असंखेजा, अणंता? [10] गोयमा! नो संखेजा, नो असंख्नेजा, अणंता ।
९. [प्र०] वटा णं भंते ! संठाणा किं संखेजा, असंखेजा० १ [उ०] एवं चेव, एवं जाव-आयया।
१०. [प्र०] सक्करप्पभाए गं भंते ! पुढवीए परिमंडला संठाणा० १ [उ०] एवं चेव, एवं जाव-आयया । एवं जावअहेसत्तमाए।
११. [प्र०] सोहम्मे णं भंते ! कप्पे परिमंडला संठाणा० . [उ०] एवं चेव, एवं जाव-अचुए।
१२. [प्र०] गेवेजविमाणाणं भंते ! परिमंडलसंठाणा० ? [उ०] एवं चेव, एवं अणुत्तरविमाणेसु वि, एवं ईसिपभाराए वि।
१३. [प्र०] जत्थ णं भंते ! एगे परिमंडले संठाणे जवमझे तत्थ परिमंडला संठाणा किं संस्खेजा, असंत्रेजा, वर्णता [उ.] गोयमा। नो संखेजा, नो असंखेजा, अणंता।
१४. [प्र०] वट्टा णं भंते ! संठाणा किं संखेजा, असंखेजा० १ [उ०] एवं चेव, जाव-आयता।
६. [प्र०] हे भगवन् ! परिमंडल संस्थानो अ॒ संख्याता छे, असंख्याता छे के अनंत छे ! [उ०] हे गौतम ! संख्याता नथी, असं- परिमंडलनी संख्या. ख्याता नथी, पण अनंत छे.
७. [प्र०] हे भगवन् ! वृत्त संस्थान शुं संख्याता छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्व प्रमाणे समजवू. ए प्रमाणे यावत्-आयत संस्थान वृत्तनी संख्या. सुधी जाणवू.
८. [प्र०] हे भगवन् ! आ रनप्रभा पृथिवीमां परिमंडल संस्थानो शुं संख्याता छे, असंख्याता छे के अनंत छे! [उ.] हे गौतम ! रखप्रभामा परिमंडल ते संख्याता नथी, असंख्याता नथी, पण अनंत छे.
संस्थानो. ९. [प्र०] हे भगवन् ! वृत्त संस्थानो शुं संख्याता छे, असंख्याता छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्व प्रमाणे. यावत्-आयत संस्थान वृत्तसंस्थान. मुधी समजवू. १०. [प्र०] हे भगवन् ! शर्कराप्रभा पृथिवीमा परिमंडल संस्थानो \ संख्याता छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू. शर्कराप्रभामा
परिमंडल संस्थानए प्रमाणे यावत्-आयत संस्थान सुधी समजवू. यावत्-अधःसप्तम पृथिवी सुधी ए प्रमाणे जाणवू. ११. [प्र०] हे भगवन् ! सौधर्म कल्पमा परिमंडल संस्थानो शुं संख्याता छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्व कह्या प्रमाणे जाणवू. एम सौधर्मादि कल्पमा
परिमंडल संस्थान यावत्-अच्युतकल्प सुधी जाणवू.
१२. [प्र०] हे भगवन् ! प्रैवेयक विमानोमां शुं परिमंडल संस्थानो संख्याता छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू. एम अवेयक विमानमा यावत्-अनुत्तर विमानो तथा ईषयाग्भाराने विषे पण समजवु.
१३. [प्र०] हे भगवन् ! ज्यिां एक यवाकार परिमंडलसंस्थानसमुदाय छे त्यां यवाकार परिमंडलसमुदाय सिवाय बीजां परि- यवमध्यक्षेत्रमा बीजा मंडल संस्थानो संख्याता, असंख्याता के अनंत छ ? [उ०] हे गौतम ! संख्याता नथी, असंख्याता नथी पण अनंत छे.
परिमंडल संस्थानो. १४. [प्र०] हे भगवन् ! त्यां वृत्त संस्थानो अ॒ संख्याता छे, असंख्याता छे के अनंत छे ? [उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवू. एम यावत्- वृत्त संस्थानो. आयत संस्थान सुधी समजवू.
परिमंडल संस्थान.
११* सर्व लोक परिमंडलसंस्थानवाळा पुद्गलस्कन्धोवडे निरंतर भरेलो छे. तेमा तुल्यप्रदेशवाळा, तुल्यप्रदेशावगाही अने तुल्य वर्णादि पर्यायवाळा जे जे परिमंडल द्रव्यो होय ते वधाने कल्पनाथी एक एक पंक्तिमा स्थापित करवा. अने तेना उपर अने नीचे एक एक जातिवाळा परिमंडल द्रव्यो एक एक पंतिमा स्थापित करवा. तेथी तेमां अल्पबहुत्व थवाथी परिमंडल संस्थाननो समुदाय यवना आकारवाळो थाय छे. तेमा जघन्य प्रदेविक द्रव्यो खभावथी अल्प होवाची प्रथम पंकि नानी होय छे अने त्यार पछी बाकीनी पंक्ति अधिक अधिकतर प्रदेशवाळी होवाथी अनुक्रमे मोटी अने वधारे मोटी थाय छे. त्यार पछी क्रमशः घटतां छेवटे उत्कृष्ट प्रदेशवाळां द्रव्यो अत्यंत अल्प होवाथी छली पंक्ति अत्यन्त नानी होय छे. ए प्रमाणे तुल्य प्रदेशवाळा भने तेथी अन्य परिमंडल द्रव्यो वडे यवाकार क्षेत्र थाय छे.
१३ ज्यां एक यवाकृतिनिष्पादक परिमंडलसंस्थानसमुदाय होय छे ते क्षेत्रमा यवाकारनिष्पादक परिमंडल सिवाय बीजा केटला परिमंडळ संस्थानो होय हे-ए प्रश्न छे. तेनो उत्तर अनंत परिमंडल संस्थानो होय छे. ए प्रमाणे वृत्तादि संस्थानो संबन्धे पण जाणवू.-टीका.
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