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________________ १९४ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २४.-उद्देशक २४ सम्मामिच्छादिट्ठी । णाणी वि, अन्नाणी वि, दो णाणा दो अन्नाणा नियमं । ठिती जहन्नेणं पलिओवमं, उकोसेणं तिन्नि पलिओवमाई । एवं अणुबंधो वि, सेसं तहेव । कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलिओवमाई, उक्कोसेणं छप्पलिओवमाईपष-नियं० १ । ४. सो चेव जहन्नकालट्ठितिपसु उववन्नो एस चेव पत्तधया। नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलिओवमा, उनोसेणं चत्तारि पलिओवमाई-एवतियं० २। ५. सो चेव उक्कोसकालद्वितिएसु उववन्नो जहन्नणं तिपलिओवम०, उक्कोसेण वि तिपलिओवम०-एस चेव वसधया। नवरं ठिती जहन्नेणं तिन्नि पलिओवमाई, उकोसेण वि तिन्नि पलिओवमाई, सेसं तहेव । कालादेसेणं जहन्नेणं छप्पलिमोवमाई, उक्कोसेण वि छप्पलिओवमाई-एवतियं. ३ । ६. सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितिओ जाओ, जहन्नेणं पलिओवमट्ठितिएसु, उक्कोसेण वि पलिओमट्टितिएसु०, एस चेव वत्तधया । नवरं ओगाहणा जहन्नेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणं दो गाउयाई । ठिती जहन्ने] पलिओवमं, उक्कोसेण वि पलिमोवम, सेसं तहेव । कालादेसेणं जहन्नेणं दो पलिओवमाई, उक्कोसेणं पि दो पलिओवमाई-एवतियं०६। ७. सो चेव अप्पणा उकोसकालट्ठितिओ जाओ, आदिल्लगमगसरिसा तिन्नि गमगा णेयथा । नवरं ठिति कालादेसं च जाणेजा ९। ८. [प्र०] जइ संखेजवासाउयसन्निपंचिंदिय० १ [उ०] संखेजवासाउयस्स जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणस्स तहेव नव वि गमा। नवरं ठिति संवेहं च जाणेजा । जाहे य अप्पणा जहन्नकालट्ठितिओ भवति ताहे तिसु वि गमएसु सम्मदिट्टी वि, मिच्छादिट्ठी वि, णो सम्मामिच्छादिट्ठी। दो नाणा दो अन्नाणा नियम, सेसं तं चेव । ९. [०] जइ मणुस्सेहितो उववजंति० १ [३०] भेदो जहेव जोतिसिएसु उववजमाणस्स । जाव १०. [प्र०] असंखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं मंते! जे भविए सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववजित्तप०१ [उ०] एपं होय, ज्ञानी पण होय अने अज्ञानी पण होय. तेओने बे ज्ञान के बे अज्ञान अवश्य होय छे. तेओनी स्थिति जघन्य पल्योपमनी अने उत्कृष्ट त्रण पल्योपमनी होय छे. ए प्रमाणे अनुबंध पण जाणवो. बाकी बधुं ते ज प्रमाणे जाणवू. काळादेशथी जघन्य बे पल्योपम अने उत्कृष्ट छ पल्योपम-एटलो काळ यावत्-गमनागमन करे (१). पसंख्यात सं० १०४. हवे जो ते (असंख्यात वर्षना आयुषवाळो संज्ञी तिर्यंचयोनिक ) जघन्यकाळनी स्थितिवाळा सौधर्मदेवमा उत्पन्न थाय तो तिर्यंचयोनिकनो ज० तेने एज वक्तव्यता कहेवी. विशेष एके काळादेशथी जघन्य बे पल्योपम अने उत्कृष्ट चार पल्योपम-एटलो काळ यावत्-गतिआसौधर्म देवलोका उपपात. गति करे (२). ५. जो ते ज जीव उत्कृष्टकाळनी स्थितिवाळा सौधर्म देवमां उत्पन्न थाय तो जघन्य अने उत्कृष्ट त्रण पल्योपमनी स्थितिवाळा तिर्यचनी उ० सौधर्म सौधर्म देवलोकमां उत्पन्न थाय-इत्यादि पूर्वोक्त वक्तव्यता कहेवी. विशेष ए के स्थिति जघन्य अने उत्कृष्ट त्रण पल्योपमनी जाणवी. देवलोका उत्पति. " बाकी बधू पूर्वे कह्या प्रमाणे कहे. कालादेशथी जघन्य अने उत्कृष्ट छ पल्योपम-एटलो काळ यावत्-गमनागमन करे (३). समसंख्यात सं० ६ . जो ते पोते जघन्य स्थितिवाळो होय (अने. सौधर्म देवमां उत्पन्न ) थाय तो ते जघन्य अने उत्कृष्ट पल्योपमनी स्थितिवाळा ६० तियेचनो सौधर्म सौधर्म देवलोकमां उत्पन्न थाय. तेने पण ए ज पूर्वोक्त वक्तव्यता कहेवी. विशेष ए के शरीरनुं प्रमाण जघन्य धनुषपृथक्त्व अने उत्कृष्ट ने देवलोकमा उपपात. गाउनु होय छे. स्थिति जघन्य अने उत्कृष्ट पल्योपमनी होय छे. बाकी बधुं पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवु. कालादेशथी जघन्य भने उत्कृष्ट वे पल्योपम-एटलो काळ यावत्-गमनागमन करे (६). १० मसंख्यात सं० ७. जो ते पोते उत्कृष्ट स्थितिवाळो होय तो तेने प्रथम गमक जेवा प्रण गमको कहेवा. विशेष ए के स्थिति अने कालादेश पं० तिर्यचनो सौधर्म देवोकमा उपपात. भिन्न जाणवो (९). संख्यात० सं०५० ८. जो तेओ (सौधर्म देवो) संख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यचोयी आवी उत्पन्न थाय तो तेने असुरकुमारोमा तिर्यंचनो सौधर्म उत्पन्न यता संख्याता वर्षना आयुषवाळा तिर्यचनी पेठे नवे गमको कहेवा. विशेष ए के अहीं स्थिति अने संवेध भिन्न भिन्न जाणवो. देवलोकमा उपपात. ज्यारे ते पोते जघन्य स्थितिवाळो होय त्यारे त्रणे गमकोमां सम्यग्दृष्टि अने मिथ्यादृष्टि होय, पण मिश्रदृष्टि न होय. वे ज्ञान अने वे अज्ञान अवश्य होय. बाकी बधु पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू. मनुष्योनो सौधर्म ९. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते (सौधर्म देवो) मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय तो--इत्यादि ज्योतिषिकमा उत्पन्न थता संज्ञी मनुष्यनी देवलोकमा उपपात. पेठे मेद कहेवो. यावत् १०. [प्र०] हे भगवन् ! असंख्य वर्षना आयुषवाळो संज्ञी मनुष्य, जे सौधर्मकल्पमां देवपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे ते केटला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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