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शतक २४.-उदेशक २४. भगवत्सुधर्मखामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
१९५ अहेव असंखेजवासाउयस्स सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स सोहम्मे कप्पे उववजमाणस्स तहेव सत्त गमगा। नवरं आदिसपस दोस गमएस ओगाहणा जहण गांउयं, उकोसेणं तित्रि गाउयाई। ततियगमे जहनेणं तिनि गाउया. उकोसेण घि तिमि गाउयाई चउत्थगमए जहन्नेणं गाउयं, उकोसेण वि गाउयं । पच्छिमपसु तिसु गमएसु जहनेणं तिमि गाउयाई. उपो. सेण वि तिनि गाउया। सेसं तहेव निरवसेसं ९।।
११. [40] जइ संखेजवासाउयसन्निमणुस्सेहिंतो०१ [उ०] एवं संस्नेजवासाउयसनिमणुस्साणं जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणाणं तहेव णव गमगा भाणियचा । नवरं सोहम्मदेवट्ठिति संवेहं च जाणेजा, सेसं तं चेव ९। .
१२.०ईसाणदेवा गं भंते ! कोहितो उववजंति ? [उ०] ईसाणदेवाणं एस चेव सोहम्मगदेवसरिसा वत्तवया । नवरं असंखेजवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जेसु ठाणेसु सोहम्मे उववजमाणस्स पलिओवमठिती तेसु ठाणेस यह सातिरेगं पलिमोवमं कायधं । चउत्थगमे ओगाहणा-जहन्नेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगाई दो गाउयाई, सेसं तहेव ।
१३. असंखेजवासाउयसन्त्रिमणुसस्स वि तहेव ठिती जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स असंखेजवासाउयस्स । योगाहणा वि जेसु ठाणेसु गाउयं तेसु ठाणेसु इहं सातिरेगं गाउयं, सेसं तहेव ९ ।
१४. संखेजवासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं मणुस्साण य जहेव सोहम्मेसु उववजमाणाणं तहेव निरवसेसं णव वि गमगा। नवरं साणठिति संवेहं च जाणेजा ९ ।
१५. [३०] सणंकुमारदेवा णं भंते ! कओर्हितो उववजंति ? [उ०] उववाओ जहा सकरप्पमापुढविनेरइयाणं । जाव
१६. [प्र०] पजत्तसंखेजवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए सणंकुमारदेवेसु उववजित्तए०१ [उ.] अवसेसा परिमाणादीया भवादेसपजवसाणा सञ्चेव वत्तधया भाणियचा जहा सोहम्मे उववजमाणस्स । नवरं सणंफुमारहिति संवेहं च जाणेजा। जाहे य अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ भवति ताहे तिसु वि गमएसु पंच लेस्साओ आदिल्लाओ फायधाओ, सेसं तं चेव ९।।
काळनी स्थितिवाळा सौधर्म देवोमा उत्पन्न थाय ? [उ०] सौधर्मकल्पमा उत्पन्न थता असंख्यवर्षना आयुषवाळा संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकनी पेठे साते गमको कहेवा. विशेष ए के प्रथमना बे गमकमां शरीरनुं प्रमाण जघन्य एक गाउनु अने उत्कृष्ट त्रण गाउनु, जीजा
गमकमा जघन्य अने उत्कृष्ट त्रण गाउनु, चोथा गमकमां जघन्य अने उत्कृष्ट एक गाउनु, अने छेला त्रण गमकोमा जघन्य अने उत्कृष्ट • प्रण गाउनु होय छे. बाकी बधुं पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवु (९).
११. प्र०] हे भगवन् ! जो ते संख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय-इत्यादि असुरकुमारोमा संख्यात. • मनु उत्पन्न थता संख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी मनुष्योनी पेठे नवे गमको कहेवा. विशेष ए के अहीं सौधर्मदेवनी स्थिति अने संवैध भिन्न योनो सौधर्म देव
लोकमा उपपाट जाणवो. बाकी बधुं पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवु (९).
१२. प्र०न हे भगवन् ! ईशान देवो क्यांथी आवी उत्पन्न थाय ? [उ०] ईशानदेवोनी वक्तव्यता सौधर्मदेवनी पेठे कहेवी. परन्तु शान देवोनो जे स्थानोमा असंख्यात वर्षना आयुषवाळा संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकनी पल्योपमनी स्थिति कही छे, ते स्थानोमा अहीं कांइक अधिक
उपपातपल्योपमनी कहेवी. चोथा गमकमां शरीरनुं प्रमाण जघन्य धनुषपृथक्त्व अने उत्कृष्ट काइक अधिक बे गाउनु होय छे. बाकी बधुं पूर्वे कह्या प्रमाणे जाण, (९).
१३. असंख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी मनुष्यनी स्थिति तेमज जाणवी-एटले असंख्यातवर्षना आयुषवाळा पंचेन्द्रियतियंचयोनिकनी पेठे जाणवी. अने जे स्थानोमा शरीरनुं प्रमाण गाउनु कह्यु छे ते स्थानोमां अहीं साधिक गाउ कहे. बाकी बधं ते ज प्रमाणे जाणवू ९.
११. सौधर्ममा उत्पन्न थनार संख्याता वर्षना आयुषवाळा तिर्यंचयोनिको अने मनुष्यो संबंधे नवे गमको कह्या छे तेम ईशान देवो संख्यात संधी०५. संबंधे अहीं कहेवा. विशेष ए के अहीं ईशानदेवोनी स्थिति अने संवेध जाणवो (९).
तिर्यंचो बने मनु
योनो शिान देक १५. [प्र०] हे भगवन् ! सनत्कुमारदेवो क्यांची आवी उत्पन्न थाय छे ? [उ०] शर्कराप्रभाना नैरयिको पेठे तेनो उपपात कहेवो. यावत्- समाधान
लोकमा उपपात.
उपपात१६. [प्र०] हे भगवन् ! संख्याता वर्षना आयुषवाळो पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक, जे सनत्कुमार देवोमा उत्पन्न थवाने योग्य छे ते केटला काळनी स्थितिवाळा सनत्कुमार देवमां उत्पन्न थाय-इत्यादि परिमाणथी मांडी भवादेश सुधीनी बधी वक्तव्यता सौध- तियेचनो सनकुमा ममा उत्पन्न थनार संख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी तियंचनी पेठे कहेवी. विशेष ए के अहीं सनत्कुमारोनी स्थिति अने संवेध जुदो
रमागावजाणवो. ज्यारे ते पोते जघन्य स्थितिवाळो होय त्यारे त्रणे गमकोमा प्रथमनी पांचे लेश्याओ जाणवी. बाकी बधुं ते ज प्रमाणे कहेवं (९).
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