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शतक २४.-उद्देशक २४. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
१९३ १०. [प्र०] जइ मणुस्सेहिंतो उववजंति० ? [उ०] भेदो तहेव । जाव
११. [प्र०] असंखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए जोइसिएसु उववजित्तए से णं भंते ! ०१ [उ०] एवं जहा असंखेजवासाउयसन्निपंचिंदियस्स जोइसिएसु चेव उववजमाणस्स सत्त गमगा तहेव मणुस्साण वि । नवरं ओगाहणाविसेसो पढमेस तिसु गमएसु । ओगाहणा जहन्नेणं सातिरेगाई नव धणुसयाई, उक्कोसेणं तिनि गाउया। मज्झिमगमए जहलेणं सातिरेगाई नव धणुसयाई, उक्कोसेण वि सातिरेगाइं नव धणुसयाई । पच्छिमेसु तिसु गमएसु जहन्नेणं तिन्नि गाउयाई, उकोसेण वि तिमि गाउया। सेसं तहेव निरवसेसं जाव-'संवेहोत्ति।
१२. [प्र०] जइ संखेजवासाउयसन्निमणुस्से० १ [उ०] संखेजवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणाणं तहेव नक्ष गमगा भाणियवा । नवरं जोतिसियठिति संवेहं च जाणेजा, सेसं तं चेव निरवसेसं। 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ।
चउवीसतिमे सए तेवीसइमो उद्देसो समत्तो । १०. जो तेओ मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय तो तेने बघी विशेषता पूर्वे कहेला संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनी पेठे कहेवी. यावत्- मनुष्योनो ज्योतिषि
कमा उपपात११. प्र०] हे भगवन् । असंख्याता वर्षना आयुषवाळो संज्ञी मनुष्य जे ज्योतिषिकोमा उत्पन्न थवाने योग्य छे ते केटला काळनी स्थितिवाळा ज्योतिषिकोमा उत्पन्न थाय ! [उ०] जेम ज्योतिषिकोमा उत्पन्न यता असंख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचने सात गमको कह्या छे तेम ज मनुष्योने पण सात गमको कहेवा. परन्तु प्रथमना त्रण गमकोमा शरीरनी अवगाहनानो विशेष छे. अवगाहना जघन्य काइक अधिक नवसो धनुष अने उत्कृष्ट त्रण गाउनी होय छे. मध्यमना गमकमां जघन्य अने उत्कृष्ट काइक अधिक नवसो धनुष. अने छेल्ला त्रण गमकोमा जघन्य अने उत्कृष्ट त्रण गाउनी छे. बाकी बधुं यावत्-संवेध सुधी ते ज प्रमाणे छे.
१२. जो ते संख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय तो तेने असुरकुमारोमा उपजता संख्याता वर्षना संख्याता० सं० मनु आयुषवाळा संज्ञी मनुष्योनी पेठे नवे गमको कहेवा. पण ज्योतिषिकनी स्थिति भने संवेध भिन्न जाणवो. बाकी बधुं ते ज प्रमाणे जाणवं.
योनो ज्योतिरिकमा
उपपात. हे भगवन् ! ते एम ज छे, हे भगवन् ! ते एम ज छे.'
चोवीशमा शतकमां त्रेवीशमो उद्देशक समाप्त.
चउवीसतिमो उद्देसो। १. [प्र०] सोहम्मदेवा णं भंते! कोहिंतो उववजंति ? किं नेहपहिंतो उववजंति ? [३०] भेदो जहा जोसियउसप।
२. [H०] असंखेजवासाउयसभिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए सोहम्मगदेवेसु उववज्जित्तए से भंते ! फेवतिकाल०१ [उ०] गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवमट्ठितिएसु, उक्कोसेणं तिपलिओवमट्टितीएसु उववजेजा। ३. [प्र०] ते णं भंते! [उ०] अवसेसं जहा जोइसिएसु उववजमाणस्स । नवरं सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, णो
चोवीशमो उद्देशक. १. [प्र०] हे भगवन् ! सौधर्मदेवो क्याथी आवी उत्पन्न थाय ? शुं नैरयिकोथी आवी उत्पन्न थाय-इत्यादि. [उ०] त्रेवीशमा वैमानिकोनो ज्योतिषिक उद्देशकमां कह्या प्रमाणे भेद कहेवो.
२. [प्र०] हे भगवन् ! असंख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक, जे सौधर्मदेवलोकमां उत्पन्न थवाने योग्य छे भसंख्यात० १० १० ते केटला काळनी स्थितिवाळा सौधर्म देवमा उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! जघन्य *पल्योपमनी अने उत्कृष्ट त्रण पल्योपमनी स्थितिवाळा
तियेचनो सौधर्म
॥ देवलोकमा उपपात. सौधर्मदेवोमा उत्पन्न थाय.
उपपात.
३. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो एक समये केटला उत्पन्न थाय-इत्यादि बाकीनी हकीकत ज्योतिषिकमा उत्पन्न थता असंख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी तिर्यंचनी पेठे कहेवी. परन्तु विशेष ए के ते सम्यग्दृष्टि पण होय अने मिथ्यादृष्टि पण होय, पण मिश्रदृष्टि न
परिमाणादि.
२* सौधर्म देवलोकमा जघन्य आयुष एक पल्योपमर्नु होय छे, तेथी तिर्यंचो जघन्य पल्योपमनी स्थितिवाळा देवोमा उत्पन्न थाय छ; अने उत्कृष्ट आयुष बे सागरोपमर्नु होय छे. पण तिर्यचो उत्कर्षथी त्रण पल्योपम आयुषवाळा ज होय छे, तेनाथी अधिक देवायुष बांधता नथी. माटे तिर्यचो उत्कृष्ट प्रण पल्योपमना आयुषवाळा सौधर्म देवोमा उत्पन्न पाय छ एम कर्दा छे.
२५ भ० सू०
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