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________________ १२४ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २०.-उद्देशक १०. १८. प्र० एएसिणं भंते ! सिद्धाणं छक्कसमजियाणं नोछक्कसमजियाणं जाव-छक्केहि य नोछक्केण य समज्जियाण य कयरे २ जाव-विसेसाहिया वा? [उ०] गोयमा! सवत्थोवा सिद्धा छक्केहि य नोछक्केण य समजिया, छक्केहिं समज्जिया संखेजगुणा, छक्केण य नोछक्केण य समजिया संखेजगुणा, छक्कसमजिया संखेजगुणा, नोछकसमजिया संखेजगुणा। १९. [प्रनेरइया णं भंते ! किं बारससमजिया १,नोवारससमजिया २, बारसरण यनोबारसपण य समजिया ३, पारसरहिं समजिया ४, बारसएहि य नोबारसरण य समजिया ५१ [उ०] गोयमा ! नेरतिया बारससमजिया वि, जावबारसएहि य नोबारसरण य समजिया वि । [प्र०] से केणटेणं जाव-'समजिया वि' ? [उ०] गोयमा ! जे णं नेरइया बारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते ण नेरइया वारससमजिया १। जे णं नेरइया जहन्नेणं पक्केण वा दोहिं वा तीहि वा उक्कोसेणं, एकारसपणं पवेसणपणं पविसंति ते ण नेरइया नोवारससमजिया २ । जे ण नेरइया बारसरणं अन्नेण य जहन्नण एकेण । दोहिं वा तीहिं वा उक्कोसेणं एक्कारसरणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया बारसपण य नोवारसरण य समजिया ३ । जे णं नेरया णेगेहि बारसरहिं पवेसणगं पविसंति ते णं नेरतिया बारसरहिं समजिया ४ । जेणं नेरइया णेगेहिं बारसरहिं अन्नेण य जहन्नेणं एकेण वा दोहिं वा तीहिं वा उक्कोसेणं एक्कारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया बारसएहि य नोयारसएण य समजिया ५।से तेणटेणं जाव-समजिया वि । एवं जाव-थणियकुमारा। २०. [प्र०] पुढविकाइयाणं-पुच्छा। [उ०] गोयमा! पुढविक्काइया नोबारससमजिया १, नो नोवारससमजिया २ नो पारसएण य नोबारसरण य समजिया ३, वारसपहिं समजिया ४, बारसेहि य नोबारसेण य समजिया वि५ प्र०] से केणटेणं जाव-'समजिया वि' ? [उ०] गोयमा ! जे णं पुढविकाइया णेगेहि वारसहिं पवेसणगं पविसंति ते णं पुढविक्काइया वारसरहिं समजिया। जेणं पुढविक्काइया णेगेहिं बारसएहिं अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा उक्कोसेणं सिद्धोने आयी १८. हे भगवन् ! षटूसमर्जित, नोषटूसमर्जित, यावत्-अनेक षटु अने नोषटू समर्जित सिद्धोमां कोण कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छे ! [उ०] हे गौतम ! अनेक षटो तथा नोषटूसमर्जित सिद्धो सौथी थोडा छे. तेथी अनेक षटूसमर्जित सिद्धो संख्यातगुण छे, तेथी एक षटु तथा नोषटसमर्जित सिद्धो संख्यातगुण छे, तेथी षटकसमर्जित सिद्धो संख्यातगुण छे, अने तेथी नोषटसमर्जित सिद्धो संख्यातगुण छे. नैरयिका दिने आश्र १९. [प्र०] हे भगवन् ! शुं नैरयिको १ द्वादशसमर्जित (एक समये बारनी संख्यावडे उत्पन्न थएला ) छे, २ नोद्वादशसमर्जित यी द्वादशसमर्जि- (एक समये एकथी आरंभी अगियार सुधी उत्पन्न थएला) छे, ३ द्वादश अने नोद्वादशसमर्जित (एकथी आरंभी अगियार सुधी सादि. उत्पन्न थएला) छे, ४ अनेक द्वादश समर्जित (एकसमये अनेक बारनी संख्यामा उत्पन्न थयेला) छे, के ५ अनेक द्वादश तथा नोद्वादशसमर्जित (एक समये एकथी अगीयार सुधी उत्पन्न थएला ) छे ! [उ०] हे गौतम ! नैरयिको १ द्वादशसमर्जित पण छे, यावत्-५ अनेक द्वादश तथा नोद्वादशसमर्जित पण छे. [प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी आप एम कहो छो के तेओ यावत्अनेक द्वादश तथा नोद्वादश समर्जित पण छे ? [उ०] हे गौतम! जे नैरयिको एक समये वारनी संख्यामा प्रवेश करे छे, तेओ १ द्वादशसमर्जित छे, जे नैरयिको जघन्यथी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्टथी अगियार प्रवेश करे छे तेओ २ नोद्वादशसमर्जित छे, जे नैरयिको एक समये बार अने जघन्यथी एक, बे के त्रण तथा उत्कृष्टथी अगिआर प्रवेश करे छे तेओ ३ द्वादश तथा नोद्वादशसमर्जित छे, जे नैरयिको एक समये अनेक बारनी संख्यामा प्रवेश करे छे तेओ४ अनेक द्वादशसमर्जित छे, वळी जे नारको एक समये अनेक बार तथा जघन्यथी एक, बे के त्रण तथा उत्कृष्टथी अगिआर प्रवेश करे छे तेओ ५ अनेक द्वादश अने नोद्वादश समर्जित छे. ते हेतुथी हे गौतम ! यावत्-तेओ अनेक द्वादश अने नोद्वादश समर्जित कहेवाय छे ए प्रमाणे यावत्-स्तनितकुमारो सुधी जाणवू. पृथिवीकायिकोने आमयी द्वादशसम जिंतादि. २०. [प्र०] हे भगवन् ! शुं पृथिवीकायिको द्वादशसमर्जित छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! पृथिवीकायिको १ द्वादशसमर्जित नथी, २ नोद्वादशसमर्जित नथी, ३ द्वादश तथा नोद्वादश समर्जित नथी, पण ४ अनेक द्वादशसमर्जित छे, ५ तेम ज अनेक द्वादश तथा नोद्वादश समर्जित छे. [प्र०] हे भगवन् ! आप शा हेतुथी एम कहो छो के तेओ यावत्-'अनेक द्वादश तथा नोद्वादश समर्जित छे'! उ०] हे गौतम! पृथिवीकायिको १ द्वादशसमर्जित-एक समये बारनी संख्यामा उत्पन्न थता-नथी, २ नोद्वादशसमर्जित-एकथी मांडीने अगियार सुधी पण उत्पन्न थता-नथी, ३ द्वादश तथा नोद्वादशसमर्जित पण नथी, पण ४ अनेकद्वादशसमर्जित छे, तेमज ५ अनेक द्वादशो अने नोद्वादशसमर्जित छे. [प्र०] हे भगवन् ! आप शा हेतुथी एम कहो छो के तेओ यावत्-अनेक द्वादशो अने नोद्वादशसमर्जित छे ! [उ०] हे गौतम ! जे पृथिवीकायिको एक समये [असंख्य उपजता होवाथी] अनेक बारनी संख्यामा प्रवेश करे छे ते अनेक द्वादशसमर्जित कहेवाय छे, अने जे पृथिवीकायिको एक समये अनेक द्वादश तथा नोद्वादश-एकथी अगियार सुधी-प्रवेश करे छे तेओ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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