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________________ शतक २०.-उद्देशक १०. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. १२३ एक्कण वा दोहिं वा तीहिं वा उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति ते णे नेरइया छक्केण य नोछक्केण य समजिया ३ । जे नेरइया णेगेहि छक्कोहि पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया छक्केहि य समजिया ४ । जे णं नेरहया णेगेहिं छक्केहि अण्णेण य जहन्नेणं एकण वा दोहि वा तीहि वा उकोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति ते गं नेरइया छक्केहि य नोछक्केण य समजिया ५ । से तेणट्टेणं तं चेव जाव-समजिया वि । एवं जाव-थणियकुमारा । १५. [प्र०] पुढविकाइयाणं-पुच्छा। [उ०] गोयमा! पुढविक्काइया नो छक्कसमजिया १, नो नोछक्कसमजिया २, नो छक्केण य नोछक्केण य समजिया ३, छक्केहिं समजिया ४, छक्केहि य नोटक्केण य समजिया वि ५। [प्र०] से केणटेणं जाव'समज्जिया वि' ? [उ०] गोयमा! जे णं पुढविक्काइया णेगोहिं छक्कएहिं पवेसणगं पविसंति ते णं पुढविक्काइया छक्कोहि समजिया । जे णं पुढविक्काइया णेगेहि छक्कएहि य अनेण य जहन्नेणं एकेण वा दोहिं वा तीहि वा उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं पुढविकाइया छक्केहि य नोछक्केण य समजिया, से तेणेटणं जाव-समजियावि'। एवं जाव-वणस्सइकाइया। बेदिया जाव-वेमाणिया, सिद्धा जहा नेरइया । १६. [प्र०] एएसि णं भंते ! नेरइयाणं छक्कसमजियाणं, नोछक्कसमजियाणं, छक्केण य नोछक्केण य समजियाणं, छक्केहि थ समजियाणं, छक्केहि य नोछक्केण य समजियाणं कयरे २ जाव-विसेसाहिया वा ? [उ०] गोयमा ! सवत्थोवा नेरइया छक्कसमजिया, नोछक्कसमजिया संखेजगुणा, छक्केण य नोछक्केण य समजिया संखेजगुणा, छक्केहि य समन्जिया असंखेजगुणा, छक्केहि य नोछक्केण य समजिया संखेजगुणा । एवं जाव-थणियकुमारा। १७. [प्र०] एएसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं छक्केहि समजियाणं, छक्केहि य नोछक्केण य समजियाणं कयरे २ जावविसेसाहिया वा? [उ०] गोयमा! सपत्थोवा पुढविकाइया छक्केहिं समज्जिया, छकेहि य नोछक्केण य समजिया संस्खेजगुणा । एवं जाव-वणस्सइकाइयाणं । बेइंदियाणं जाव-वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं । एक नोषट संख्यावडे पण उत्पन्न थयेला होय छे? उ. हे गौतम ! जे नैरयिको एक समये छनी संख्याथी प्रवेश करे छे ते नैरयिको षटसमर्जित कहेवाय छे, जे नैरयिको जघन्य एक, बे के त्रण अने उत्कृष्ट पांच संख्यावडे प्रवेश करे छे ते नैरयिको नोषटुसमर्जित कहेवाय छे, जे नैरयिको एक षटूसंख्याथी अने बीजा जघन्य एक, बे के त्रण तथा उत्कृष्ट पांचनी संख्यावडे प्रवेश करे छे ते नैरयिको एक षटू अने नोषटुवडे समर्जित कहेवाय छे, जे नैरयिको अनेक षटुनी संख्यामा प्रवेश करे छे ते नैरयिको अनेक षटूसमर्जित कहेवाय छे, जे नैरयिको अनेक षटू तथा जघन्यथी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्ट पांच संख्यावडे प्रवेश करे छे ते नैरयिको अनेक षटू तथा नोषटू समर्जित कहेवाय छे. ते हेतुथी हे गौतम ! ए प्रमाणे का छे के यावत्-अनेक षटूवडे अने नोषटूवडे समर्जित पण होय छे. ए प्रमाणे यावत्-स्तनितकुमारो सुधी जाणवू. १५. [प्र०] हे भगवन् ! शुं पृथिवीकायिको षटकसमर्जित छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! पृथिवीकायिको षटूसमर्जित नथी, पृथिवीकायिकादिने नोषटूसमर्जित नथी, एक षटू अने नोषटूवडे समर्जित नथी, पण अनेक षट्रोवडे समर्जित छे, अने अनेक षटू तथा नोषटूवडे पण सम- आश्रयी षट्कसमर्जित छे. [प्र] हे भगवन् ! आप शा हेतुथी एम कहो छो के, तेओ यावत्-[अनेक षट्क तथा नोषट् ] समर्जित छे ! [उ०] हे गौतम ! जे पृथिवीकायिको अनेक षटोबडे प्रवेश करे छे ते पृथिवीकायिको अनेक षटू समर्जित छे, अने जे पृथिवीकायिको अनेक षटो तथा जघन्यथी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्ट पांचनी संख्या बडे प्रवेश करे छे ते पृथिवीकायिको अनेक षटो तथा नोषटवडे पण समर्जित कहेवाय छे, माटे ते हेतुथी तेओ यावत्-'समर्जित छे.' ए प्रमाणे यावत्-वनस्पतिकायिको सुधी जाणवू. अने बेइन्द्रियथी आरंभी यावत्-वैमानिको अने सिद्धो नैरयिकोनी पेठे जाणवा. जिंतादि. १६. [प्र०] हे भगवन् ! १ षटुसमर्जित, २ नोषटूसमर्जित, ३ एक षटू अने नोषटूवडे समर्जित, ४ अनेक पटू समर्जित, ५ नैरयिकादिने आश्रअनेक षट तथा नोषट्समर्जित नैरयिकोमा कोण कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छे? [उ०] हे गौतम! १ एक षटसमर्जित नैर बस यी षट्कसमर्जितादि नुं अल्पबहुत्व. यिको सौथी थोडा छे, २ नोषटूसमर्जित नैरयिको संख्यातगुण छे, ३ तेथी एक षटू अने नोषटूवडे समर्जित नैरयिको संख्यातगुणा छे. ४ तेथी अनेक षटू समर्जित नैरयिको असंख्यातगुणा छे, ५ अने तेथी अनेक षटू तथा नोषटुसमर्जित नैरयिको संख्यातगुणा छे. ए प्रमाणे यावत्-स्तनितकुमारो सुधी जाणवू. १७. [प्र०] हे भगवन् ! अनेकषटुसमर्जित तथा अनेक षटो अने नोषटू समर्जित पृथिवीकायिकोमां कोण कोनाथी यावत्- पृथिवीकायिकादिने विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम ! अनेकषटूवडे समर्जित पृथिवीकायिको सौथी थोडा छे. अने तेथी अनेक षटो तथा नोषटुसमर्जित आश्रयी अल्पबहुत्व. पृथिवीकायिको संख्यातगुण छे. ए प्रमाणे यावत्-वनस्पतिकायिको सुधी जाणवु. बेइन्द्रियो यावत्-वैमानिको नैरयिकोनी पेठे जाणवा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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