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________________ जंघाचारणनो उर्ध्व गति विषय. सोपक्रम अने निरुपक्रम आयुष. नैरयिकोनो उत्पाद "आत्मोपक्रम, परो पनि पक्रम पक्रमची थाय छे? Jain Education International श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे पातक २०. - उद्देशक १०. ९. [०] पाचारणस्स णं भंते! उई के लिए गतिविरूप पद्मते [] गोवमा ! से णं हलो एवं कृपाणं पंढगवणे समोसरणं करेति, स० २ करेता दिलाई बंदति तहिं० २ वंदिता ततो पदिनियतमाणे चितिषणं उप्पारणं नंदraणे समोसरणं करोति, नंदण० २ करेत्ता तर्हि चेइयाहं वंदति, तर्हि ० २ वंदित्ता इह आगच्छर, इह चेहयाई वंदति, जंघा - चारणस्स णं गोयमा ! उ पवतिए गतिविसए पन्नत्ते से णं तस्स ठाणरस अणालोइचपडिते कालं करे नत्यि तस्स 1 आराहणा, सेणं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिकंते कालं करेति अत्थि तम्स आराहणा | 'सेवं भंते! सेवं मंते' ! सि । जाय-बिहरह १२० बीसमे सए नवमो उद्देसो समतो | ९. [ प्र० ] हे भगवन् ! जंघाचारणनी गति अने गतिविषय उंचे केटलो कह्यो छे ! [उ०] हे गौतम । ते जंघाचारण एक * उत्पातबड़े पांडुफमनमां समवसरण करे १, पछी त्यांना चेयो वांदी, त्यांची पाछा वळतां भीजा उत्पातकडे नंदनवनमां समवसरण करे २, पछी त्यांना चत्यो वांदी त्यांथी अहिं आवी, अहिंना चैत्योने वांदे २, हे गौतम ! जंघाचारणनी गति या गतिविषय उंचे एटलो कह्यो छे. वळी जो ते जंघाचारण ते स्थानने आलोच्या के प्रतिक्रम्या सिवाय काळ करे तो ते आराधक थतो नथी अने ते स्थानकने आलोची के प्रतिक्रमी काळ करे तो ते आराधक थाय छे. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे.' एम कही यावत् विहरे छे. वीशमा शतकमा नवमो उद्देशक समाप्त दसमो उद्देसो । १. [प्र० ] जीवा णं भंते! किं सोवक्रमाज्या, निश्चक्रमादया [४०] गोयमा ! जीवा सोचक्रमादया विनिश्वक माया वि। २. [0] रइयाणं - पुच्छा। [30] गोयमा ! नेरइया नो सोवक्कमाउया, निरुवकमाउया । एवं जाव - थणियकुमारा । पुढविक्काइया जहा जीवा, एवं जाव- मणुस्सा । वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया । ३. [प्र० ] नेरवा णं भंते! कि आतोयकमेणं उपयचंति, परोवक्रमेणं उपवनंति निश्वक्रमेणं उपबति १ [30] गोथमा ! आतोषकमेण वि उपपति, परोचकमेण वि उचचनंति, निरुचक्रमेण वि उपजंति एवं जाच वैमाणियाणं । दशम उद्देशक. १. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवो सोपक्रम आयुषवाळा होय छे के निरुपक्रम आयुषवाळा होय छे ! [उ०] हे गौतम ! जीवो 'सोकम आपला अने निरुपक्रम आयुषवान्य होय छे. २. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं नैरविको सोपक्रम आयुपवाया होय छे के निरुपकम आयुषयाळा होय छे ! [उ०] हे गौतम! गैरपिको सोपक्रम आपवाळा होता नथी पण निरुपक्रमआयुषवाळा होय छे. ए प्रमाणे यावत् स्तनित्कुमारो सुधी आण. पृथिवीकायिको जीवोनी पेठे बन्ने प्रकारना जाणवा. ए प्रमाणे यावत् मनुष्यो सुधी समजतुं तेमज वानव्यंतर, ज्योतिषिक अने वैमानिकाने नैरपिकोनी पेठे (निरुपम आयुपवा) जाणमा. ३. [ प्र० ] हे भगवन् ! शुं नैरयिको आत्मोपक्रमवडे-पोते पोताना वडेज [ पूर्वभवना आयुषने ] उपक्रमी - घटाडी उत्पन्न थाय छे, परोपक्रमपडे — अन्यबडे पूर्वभवना आयुपने घटाडी उत्पन्न थाय छे, के निश्पकमवढे कोइ पण रीते आयुपने घटाया सिवाय पूरेपूर्क आयुष भोगवीने उत्पन्न थाय छे ! [उ०] हे गौतम! तेओ आत्मोपक्रमवडे, परोपक्रमवडे अने निरुपकक्रमवडे उत्पन्न थाय छे. ए प्रमाणे यावत्-वैमानिको सुधी जाण. विद्याचारणनुं गमनं बे उत्पातथी अने आगमन एक उत्पातथी थाय छे अने जंघाचारणनुं गमन एक उत्पातथी अने आगमन वे उत्पातथी थाय छे ते लब्धिना स्वभावथी जाणवु. अन्य आचार्यों आ संबन्धे एवं कहे छे के विद्याचारणनी विद्या आववाना समये वधारे अभ्यासवाळी थाय छे अने गमनसमये तेवी होती नथी, तेथी एक उत्पातथी अहिं आगमन थाय छे अने बे उत्पाते गमन थाय छे, पण जंघाचारणनी लब्धिनो जेम जेम उपयोग थाय छे तेम तेम ते अल्पसामर्थ्यवाळी थाय छे माटे ते एक उत्पाते गमन करे छे अने बे उत्पाते अहिं आवे छे - टीका. १ + जेओ अप्राप्त काळे आयुषनो क्षय करे छे ते सोपक्रमायुषवाळा अने ते सिवायना बीजा निरुपक्रम आयुषवाळा कहेवाय छे. देवो, नैरयिको, असंख्यात वर्षना आयुषवाळा तिर्यंच अने मनुष्यो, उत्तम पुरुषो तथा चरमशरीरी निरुपक्रम आयुषवाळा होय छे, अने बाकीना सर्व संसारी जीवो सोपक्रम अनेको केटीका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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