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________________ ११४ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २०.-उद्देशक ७. जाव-ईसीपभाराए उववाएयचो, एवं एएणं कमेणं जाव-तमाए अहेसत्तमाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जावईसीपब्भाराए उववाएयचो. आउक्काइयत्ताए । ७. [प्र०] आउयाए णं भंते ! सोहम्मी-साणाणं सणंकुमार-माहिदाण य कप्पाणं अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणोदहि-घणोदहिवलएसु आउक्काइयत्ताए उववजित्तए० सेसंतं चेव, एवं एएहि चेव अंतरा समोहओ जाव-अहेसत्तमाए पुढवीए घणोदहि-घणोद्दिवलएसु आउक्काइयत्ताए उववाएयधो, एवं जाव-अणुत्तरविमाणाणं ईसिपब्भाराए य पुढवीए अंतरा समोहए जाव-अहेसत्तमाए घणोदहि-घणोदहिवलपसु उववाएयधो २।। ८. [प्र०] वाउक्काइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए सकरप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउकाइयत्ताए उववजित्तए० एवं जहा सत्तरसमसए वाउकाइयउहेसए तहा इह वि, नवरं अंतरेसु समोहणा नेयवा, सेसं तं चेव, जाव-अणुत्तरविमाणाणं ईसीप-भाराए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए घणवाय-तणुवाए घणवाय-तणुवायवलएसु वाउक्काइयत्ताए उववजित्तए, सेसं तं चेव, जाव-से तेणटेणं जाव-उववजेजा। 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति । वीसइमे सए छट्ठओ उद्देसो समत्तो। प्रमाणे पहेली अने बीजी पृथिवीनी वच्चे मरणसमुद्घातने प्राप्त थयेल अप्कायिकनो यावत्-ईषत्प्राग्भारा पृथिवी सुधी उपपात कहेवो. एं प्रमाणे ए क्रम वडे यावत्-तमा अने अधःसप्तम पृथिवीनी वच्चे मरणसमुद्घातने प्राप्त थयेल अप्कायिकनो यावत्-ईषत्प्राग्भारा पृथिवी सुधी अप्कायिकपणे उपपात कहेवो. ७. [प्र०] हे भगवन् ! जे अप्कायिक सौधर्म-ईशान अने सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्पनी वच्चे मरणसमुद्घात करीने आ रत्नप्रभापृथिवीमा घनोदवि अने घनोदधिवलयोमा अप्कायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे-इत्यादि बधु पूर्ववत् कहे. ए प्रमाणे पूर्वे कहेला आंतराओमां मरणसमुद्घातने प्राप्त थयेल अकायिकनो अधःसप्तम पृथिवी सुधीना घनोदधि अने धनोदधिवलयोमा अप्कायिकपणे उपपात कहेवो यावत् -अनुत्तर विमान अने ईषत्प्राग्भारा पृथिवीनी वच्चे मरणसमुद्घातने प्राप्त थयेल अप्कायिकनो यावत्-सातमी पृथिवी सुधी घनोदधि भने घनोदधिवलयोमा अप्कायिकपणे उपपात कहेवो... ८. [प्र०] हे भगवन् ! जे वायुकायिक आ रत्नप्रभा अने शर्कराप्रभा पृथिवीनी वच्चे मरणसमुद्घात करीने सौधर्मकल्पमा वायुकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे-इत्यादि प्रश्न. [उ.] जेम *सत्तरमा शतकना वायुकायिक उद्देशकमां कयु छे ते प्रमाणे अहिं पण कहेवू विशेष ए के, रत्नप्रभादि पृथिवीओना आंतरामां मरण समुद्घातसंबन्धे कहे. बाकी बधु पूर्ववत् जाणवू. ए प्रमाणे यावत्-अनुत्तर विमान अने ईषत्प्राग्भारा पृथिवीनी वच्चे मरणसमुद्घात करीने जे वायुकायिक घनवात अने तनु वातमां तथा घनवात अने तनुवातना वलयोम वायुकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य होय-इत्यादि बाकीर्नु बधुं पूर्ववत् कहेवू. यावत्-ते हेतुथी यावत्-'उत्पन्न थाय. "हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'–एम कही यावत्-विहरे छे. वीशमा शतकमां छट्ठो उद्देशक समाप्त. बायुकायिक सत्तमो उद्देसो। १. [प्र०] कइविहे गं भंते ! बंधे पन्नत्ते ? [उ०] गोयमा ! तिविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा-१ जीवप्पयोगबंधे, २ अणं. तरबंधे, ३ परंपरबंधे। २. [प्र०] नेरइयाणं भंते ! काविहे बंधे पन्नत्ते ? [उ.] एवं चेव, एवं जाव-वेमाणियाणं ।' कर्मवन्ध, सप्तम उद्देशक. १. [प्र०] हे भगवन् ! बंध केटला प्रकारनी कह्यो छे? [उ०] हे गौतम ! बंध त्रण प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-जिीवप्रयोगबंध, अनंतरबंध अने परंपरबंध. २. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकोने केटला प्रकारनो बंध कह्यो छे ! [उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवू. एम यावत्-वैमानिको सुधी कहे. ८.* भग० ख०.४ श०१७ उ०१०-११ पृ.४२. जीवना प्रयोग-मन, वचन भने कायना व्यापार-वडे कर्मपुद्गलोनो आस्मानी साथे संबन्ध थवो ते जीवप्रयोग बन्ध, कर्मपुद्गलोनो बन्ध थया पछीना समये जे बन्ध ते अमन्तर बन्ध कहेवाय छे अने त्यार पछी द्वितीयादि समये जे बन्ध ते परंपर बन्ध कहेवाय छे. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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