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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १९.-उद्देशक ३. इजंति ? [उ.] गोयमा! पाणाइवाप वि उवक्खाइजंति, जाव-मिच्छादसणसल्ले वि उवक्साइजति । जेसि पिणं जीवाणं ते जीवा एवमाहिति तेसि पिणं जीवाणं नो विन्नाए नाणत्ते ८।।
१२. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा कोहिंतो उववजंति, किं नेरइएहितो उववजंति ? [उ०] एवं जहा पकंतीप पुढषिकाइयाणं उववाओ तहा भाणियचो ९।
१३. [प्र०] तेसि णं भंते ! जीवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुर, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई १०।।
१४. [प्र०] तेसि णं भंते ! जीवाणं कति समुग्धाया पन्नत्ता ?, [उ०] गोयमा ! तओ समुग्धाया पन्नत्ता, तं जहावेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्याए, मारणंतियसमुग्घाए ।
१५. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा मारणंतियसमुग्धापणं किं समोहया मरंति, असमोहया मरंति ? [उ०] गोयमा ! समोहया वि मरंति, असमोहया वि मरंति ११ ।
१६. [प्र०] ते णं भंते! जीवा अणंतरं उच्चट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववजंति ? [उ०] एवं उधट्टणा जहा वकंतीए १२ ।
१७. [प्र०] सिय भंते ! जाव-चत्तारि पंच आउक्काइया एगयओ साहारणसरीरं बंधंति, एग० २ बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति ? [उ०] एवं जो पुढविकाइयाणं गमो सो चेव भाणियधो जाव-उष्वटुंति; नवरं ठिती सत्त वाससहस्साई उकोसेणं, सेसं तं चैव ।
१८. [H०] सिय भंते ! जाव-चत्तारि पंच तेउक्काइया० एवं चेव, नवरं उववाओ ठिती उच्चट्टणा य जहा पनवणाए, सेसं तं चेव । वाउकाइयाणं एवं चेव, नाणत्तं नवरं चत्तारि समुग्घाया।
उत्पादद्वार.
१० स्थितिद्वार.
११ समुद्घात.
जीवो जे बीजा पृथिवीकायिकादि जीवोनी हिंसादि करे छे एम कहेवाय छे ते जीवोने पण ('आ जीवो अमारी हिंसा करनार छ') एवो भेद ज्ञात नथी. ९.
१२. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो क्याथी आवीने उत्पन्न थाय-शुं नैरयिकोथी आवीने उत्पन्न थाय?-इत्यादि. [उ०] जेम "व्युत्कान्तिपदमां पृथिवीकायिकोनो उत्पाद कहेल छे तेम अहिं कहेवो.
१३. [प्र०] हे भगवन्! ते पृथिवीकायिक जीवोनी केटला काळनी स्थिति (आयुष) कही छे ! [उ०] हे गौतम! जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्टथी बावीश हजार वर्षनी स्थिति कही छे.
१४. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवोने केटला समुद्घातो कह्या छ ? [उ०] हे गौतम! त्रण समुद्घातो कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ वेदना समुद्घात, २ कषाय समुद्घात अने ३ मारणान्तिक समुद्धात.
१५. [प्र०] हे भगवन्! शुं ते जीवो मारणान्तिक समुद्घात करीने मरे के मारणान्तिक समुद्घात कर्या सिवाय मरे ? [उ०] हे गौतम! तेओ मारणान्तिक समुद्घात करीने पण मरे अने ते कर्या सिवाय पण मरे.
१६. [प्र०] हे भगवन् ! तेओ मरीने तुरत क्या जाय, क्या उत्पन्न थाय ! [उ०] 'व्युकान्ति पदमा कह्या प्रमाणे नेओनी उद्वर्तना कहेवी. १२
१७. [प्र०] हे भगवन् ! कदाच बे, त्रण चार के पांच अप्कायिको मेगा थईने एक साधारण शरीर बांधे अने पछी आहार करे? [उ.] पृथिवीकायिकोने आश्रयी जे पाठ कहेवामां आवेल छे ते अहिं उद्वर्तना द्वार सुधी कहेवो. परन्तु अप्कायिकोनी स्थिति उत्कृष्टथी सात हजार वर्षनी जाणवी. बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवं.
१८. [प्र०] हे भगवन्! कदाच यावत्-चार के पांच अग्निकायिक जीवो मेगा थईने एक साधारण शरीर बांधे-इत्यादि पूर्ववत् (सू० १) प्रश्न अने उत्तर कहेवो. परन्तु विशेष ए छे के तेओनो उपपात, स्थिति अने उद्वर्तना प्रिज्ञापनासूत्रमा कह्या प्रमाणे जाणवां, अने वाकी बधु पूर्ववत् जाणवू. वायुकायिकोने पण ए प्रमाणे जाणवू; परन्तु एटलो विशेष के तेओने चार समुद्घात होय छे.
१२ उर्तनाद्वार.
अप्कायिक.
अधिकाविक
१२ । पृथिवीकायिको नैरयिकोधी आवी उत्पन्न थता नथी, पण तिर्यचयोनिक, मनुष्य अने देवोथी आवी उत्पन्न थाय छे-जुओ प्रज्ञा० पद०६.१०२१२-१. १६ 1 जुओ प्रज्ञा० पद ३ प० ३११.
१८१ तेजस्कायिक जीवो तियच अने मनुष्यमांथी आवी उपजे छ. तेओनी स्थिति उत्कृष्ट त्रण अहोरात्रनी होय छे. त्याथी नीकळीने तेओ तिर्यचा ज उत्पन्न थाय छे. बळी तेमा लेश्यानी पण विशेषता छे. ज्यारे पृथिवीकायिकने चार लेश्याओ होय छे, त्यारे अनिकायिकने त्रण लेश्याओ होय छे. वायुकायिकने अनिकायिकनी पेठे जाणवं, परन्तु तफावत एटलो छे के वायुकायिकने वैक्रिय समुद्घात अधिक होवाथी चार समुद्घात होय छे. जुओ-प्रज्ञा० पद६५०३१२.
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