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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १८.-उद्देशन. ३. ७. [प्र०] मणुस्सा णं भंते | निजरापोग्गले किं जाणंति पासंति आहारंति, उदाहु न जाणंति न पासंति नाहाररात ? [30] गोयमा! अत्थेगइया जाणंति ३, अत्थेगा न जाणंति न पासंति, आहारंति ।[4] से केणटेणं भते ।। 'मत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थेगइआ न जाणंति न पासंति, आहारंति ? [उ०] गोयमा! मणुस्सा दुविहा पनत्ता, तंजहा-सन्नीभूया य असन्नीभूया य । तत्थ णं जे ते असन्निभूया ते न जाणंति न पासंति, आहारंति । तत्थ णं जे ते सन्नीभूया ते दुविहा पन्नत्ता तंजहा-उवउत्ता अणुवउत्ता य । तत्थ णं जे ते अणुवउत्ता ते न याणंति न पासंति, आहारंति । तत्थ णं जे ते उवउत्ता ते जाणंति ३, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुझ्यह-अत्थेगइया न जाणंति, न पासंति, आहारेंति, अस्थेगया जाणंति ३ । वाणमंतरजोइसिया जहा नेरदया। . ८. [प्र०] वेमाणिया णं भंते ! ते निजरापोग्गले किं जाणंति ६ ? [उ०] गोयमा ! जहा मणुरसा, नवरं घेमाणिया
दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-माइमिच्छदिट्ठीउववनगा य अमाइसम्मदिट्टीउववन्नगा य । तत्थ णं जे ते मायिमिच्छदिटिउववन्नगा ते णं न जाणंति न पासंति आहारंति । तत्थ णं जे ते अमायिसम्मदिट्ठीउववनगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-अणंतरोधवनगा य परंपरोक्वनगा य । तत्थ णं जे ते अणंतरोववन्नगा ते णं न याणंति न पासंति आहारेति । तत्थ णं जे ते परंपरोषनगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-पजत्तगा य अपजत्तगा य । तत्थ णं जे ते अपज्जत्तगा ते णं न जाणंति, न पासंति.
आहारंति । तत्थ णं जे ते पजत्तगा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-उवउत्ता य अणुवउत्ता य, तत्थ गंजे ते अणुषउत्ता ते पाणंति न पासंति आहारंति ।
९. [म०] कतिविहे गं भन्ते ! बंधे पन्नत्ते ? [उ०] मागंदियपुत्ता! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा-दधबंधे य भावबंधे य ।
१०. [प्र०] दवयंधे णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ? [उ०] मागंदियपुत्ता ! दुविहे पनचे तं जहा-पोगबंधे य वीससाधंधे य।
७. [प्र०] हे भगवन् ! मनुष्यो शुं निर्जरा पुद्गलोने जाणे छे, जुए छे अने आहारे छे-ग्रहण करे छे, के जाणता नथी, जोता नथी अने ग्रहण करता नथी! [उ०] हे *गौतम | केटलाक जाणे छे, जुए छे अने आहारे छे, अने केटलाक जाणता नथी, जोता नथी पण तेओनो आहार करे छे. [प्र०] हे भगवन् । शा माटे एम कहेवामां आव्यु के, केटलाक जाणे छे, जुए छे अने आहारे छे अने केटलाक नथी जाणता, नथी जोता, पण आहारे छे' ! [उ०] हे गौतम ! मनुष्य बे प्रकारना कह्या छे, संज्ञीरूप-मनसहित अने असंज्ञीरूप-मनरहित. तेमा जे असंज्ञीरूप छे ते जाणता नथी, जोता नथी, पण ते निर्जरा पुद्गलोनो आहार करे छे; अने जे संज्ञीरूप छे ते पण बे प्रकारना छे, उपयुक्त भने अनुपयुक्त. तेमा जे विशिष्ट ज्ञानना उपयोग रहित छे ते जाणता नथी, जोता नथी, पण आहार करे छे. जे विशिष्ट ज्ञानना उपयोगबाळा छे तेओ तेने जाणे छे, जुए छे अने तेनो आहार करे छे, ते कारणथी हे गौतम | एम कहेवाय छे के केटलाक जाणता नथी, जोता नथी पण तेनो आहार करे के भने केटलाक जाणे छे, जुए छे अने तेनो आहार पण करे छे'. वाणव्यंतर अने ज्योतिष्कोनी वक्तव्यता नैरयिको प्रमाणे समजवी.
८. [प्र०] हे भगवन् । वैमानिको ते निर्जरा पुद्गलोने जाणे छे, जुए छे अने आहारे छे के नथी जाणता, नथी जोता अने आहारता पण नथी ! [उ०) हे गौतम | जेम मनुष्योनी वक्तव्यता कही छे (सू०७) तेम वैमानिकोनी वक्तव्यता जाणवी. परन्तु विशेष ए छे के, वैमानिक बे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-मायी मिथ्यादृष्टि अने अमायी सम्यग्दृष्टि. तेमां जे मायी मिथ्यादृष्टि देव छे तेओ निर्जरापुद्गलोने जाणता नथी, जोता नथी पण आहारे छे. तथा जे अमायी सम्यग्दृष्टि छे, ते वे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणेअनन्तरोपपन्नक अने परंपरोपपन्नक. तेमा जे अनंतरोपपन्नक-प्रथम समयोत्पन्न छे ते जाणता नथी, जोता नथी, पण आहारे छे, अने जे परंपरोपपन्नक (जेने उत्पन्न थयाने द्वितीयादि समयो थयेला छे.) छे ते बे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-पर्याप्तक अने अपर्याप्तक. तेमा जे अपर्याप्तक छे ते जाणता नथी, जोता नथी, पण आहारे छे. जे पर्याप्तक छे ते बे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-उपयुक्त अने अनुपयुक्त. तेमा जे अनुपयुक्त छे ते जाणता नथी, जोता नथी पण आहारे छे.
९. [प्र०] हे भगवन् ! बंध केटला प्रकारनो कह्यो छे ? [उ०] हे माकन्दिकपुत्र ! बंध वे प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-द्रव्यबंध अने भावबंध.
१०. [प्र०] हे भगवन् ! द्रव्यबंध केटला प्रकारनो कह्यो छे ! [उ०] हे माकंदिकपुत्र ! बे प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणेप्रयोगबन्ध अने विस्रसाबन्ध (स्वाभाविकबन्ध ).
ग्वधना प्रकार.
७. अहिं भगवंतने प्रश्न पूछनार तो मार्कदिकपुत्र, उतां भगवाने गौतमने संबोधी उत्तर आप्यो तेनुं कारण ए छे के, आ पाठ प्रज्ञापना सूत्र. माथी उद्धृत करेलो छ भने प्रज्ञापनासूत्रनी रचनाशैली प्रायः गौतमप्रश्न अने भगवंतना उत्तर रूप होवाथी अहिं पण ते सळंग पाठ प्रहण करेलो छे.
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