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________________ शवक.८.-उद्देशक २. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ७२ सागारोवउत्ता जहा केवलनाणलद्धीया । मइअन्नाणसागारोवउत्ताणं तिनि अन्नाणाई भयणाए । एवं सुयअन्नाणसागारोवउचा वि। विभंगणाणसागारोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाई नियमा। - ९२. [प्र०] अणागारोवउत्ता णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी? [उ०] पंच नाणाई तिनि आनाणाई भयणाए। एवं चक्खदसण-अचक्खुदसणअणागारोवउत्ता वि नवरं चत्तारि णाणाई तिनि अन्नाणाई भयणाए। ९३. [प्र०] ओहिदसणअणागारोवउत्ताणं पुच्छा। [उ०] गोयमा! नाणी वि अन्नाणी वि । जे नाणी ते अत्येगतिया तिनाणी अत्थेगतिया चउनाणी । जे तिनाणी ते आभिणिवोहियनाणी, सुयनाणी, ओहीनाणी । जे चउनाणी ते आभिणियोहियणाणी, जाव मणपजवनाणी । जे अन्नाणी ते नियमा तिअन्नाणी, तं जहा-महअन्नाणी, सुयअन्नाणी, विभंगनाणी। केवलदसणअणागारोवउत्ता जहा केवलणाणलद्धीया। ९४. [प्र०] सजोगी णं भंते ! जीवा किं नाणी० १ [उ०] जहा सकाइया । एवं मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी वि। अजोगी जहा सिद्धा। ९५. [प्र०] सलेस्सा.णं भंते ०१ [उ०] जहा सकाइया । ९६. [प्र०] कण्हलेस्सा णं भंते ! .? [उ०] जहा सइंदिया। एवं जाव पम्हलेस्सा, सुकलेस्सा जहा सलेस्सा । अलेस्सा जहा सिद्धा। लब्धिवाळानी पेठे (सू. ७१.) [त्रण के चार ज्ञान ] जाणवा. मनःपर्यवज्ञानसाकारउपयोगवाळा जीवोने मनःपर्यवज्ञानलब्धिवाळानी अवधिधान भने म पेठे (सू. ७३.) मति, श्रुत अने मनःपर्यवं ए त्रण ज्ञान, के अवधिसहित चार ज्ञान जाणवा. केवलज्ञानसाकारउपयोगवाळा जीवो मापर्यपधान साभार उपयोग केवलज्ञानलब्धिवाळानी पेठे (सू. ७५.) एक केवलज्ञान सहित जाणवा. मतिअज्ञानसाकारोपयोगवाळा जीवोने भजनाए त्रण अज्ञान होय मतिनानादि साकारोपयोग. छे. ए प्रमाणे श्रुतअज्ञानसाकारोपयोगवाळा जीवो पण जाणवा. विभंगज्ञानसाकारोपयुक्त जीवोने अवश्य त्रण अज्ञान होय छे. ९२. [प्र०] हे भगवन् ! *अनाकारोपयोगवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ! [उ० ] हे गौतम ! तेओने पांच ज्ञान अने वनाकारोप्योगवाला जीवो. त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. ए प्रमाणे चक्षुदर्शन अने अचक्षुदर्शनअनाकारोपयोगवाळा जीवो पण जाणवा. परन्तु तेओने चार ज्ञान चक्षुदर्शन बने अच. अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. क्षुदर्शनमना कारोपयोग. . ९३. [प्र०] अवधिदर्शनअनाकारोपयोगवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ.] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी पण छे अने अनि भना अज्ञानी पण छे, जेओ ज्ञानी छे तेओमा केटलाक त्रण ज्ञानवाळा अने केटलाक चार ज्ञानवाळा छे. जेओं त्रण ज्ञानवाळा छे तेओ आमि- कारा निबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी अने अवधिज्ञानी छे; जेओ चार ज्ञानवाळा छे तेओ आभिनिबोधिकज्ञानी, यावत् मनःपर्यायज्ञानी छे. जेओ अज्ञानी छे तेओ अवश्य त्रणअज्ञानवाळा छे. ते आ प्रमाणे-मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी, अने विभंगज्ञानी. केवलदर्शनअनाकारोपयोगवाव्य जीवो केवलज्ञानलब्धिवाळा पेठे (सू. ७५.) एक केवलज्ञानयुक्त जाणवा. ९४. [प्र०] हे भगवन् ! सियोगी जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे! [उ.] तेओ सकायिकनी पेठे (सू. ३८.) जाणवा. सयोगी जीनोए प्रमाणे मनयोगी, वचनयोगी अने काययोगी पण जाणवा. अयोगी-योगरहित जीवो सिद्धोनी पेठे (सू. ३०.) जाणवा. ९५. [प्र०] हे भगवन् ! लेश्यावाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ! [उ० ] हे गौतम! तेओ सकायिकनी पेठे. सलेइप गीचो. (सू. ३८.) जाणवा. ९६. [प्र०] कृष्णलेश्यावाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे! [उ.] तेओ सेन्द्रिय जीवोनी पेठे (सू. ३५.) जाणवा. ए कृष्णादिलेश्या बाळा. प्रमाणे यावत् पद्मलेश्यावाळा जीवो पण जाणवा. शुक्ललेश्यावाळा सलेश्यनी पेठे (सू. ९५.) जाणवा अने अलेश्य-लेश्याविनाना-जीवो सिद्धोनी पेठे (सू. ३०.) जाणवा. ९२. * जे ज्ञानने विषे आकार-जाति, गुण, क्रियादि खरूप विशेष प्रतिभासित न थाय ते अनाकारोपयोग एटले दर्शन, अनाकारोपयोगवाळा ज्ञानी भने अज्ञानी बे प्रकारना छे. ज्ञानीने लब्धिनी अपेक्षाए पांच ज्ञान भजनाए होय छे अने अज्ञानीने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. ९३. 1 अवधिदर्शनअनाकारउपयोगवाळा ज्ञानी अने अज्ञानी बन्ने छे, कारण के दर्शननो विषय सामान्य होवाथी भने सामान्य अमिषरूप होबाथी ज्ञानी अने अज्ञानीना दर्शना मेद होतो नथी. ९४.१ योगद्वारमा सयोगीने सकायिकनी पेठे भजनाए पांच ज्ञान अनेत्रण भज्ञान जाणवा. ए प्रमाणे मनयोगसहित, वचनयोगसहित भने काययोगसहित जीवो पण जाणवा, केमके केवलीने पण मनोयोगादि होय छे. सयोगी मिथ्यादृष्टिने त्रण अज्ञान होय छ भने अयोगीने एक केवळज्ञान होय छे.-टीका. ९५. 1 लेश्याद्वारमा जेम सकायिकने भजनाए पांच शान अने प्रण अज्ञान कह्या तेम लेश्यावाळाने पण जाणवा, केमके केवलीने पण शुक्ललेश्या होवाथी ते लेश्यासहित छे. योगान्तगर्त कृष्णादि द्रव्यना संबन्धथी आत्मानो परिणाम ते लेश्या. विशेष माटे जुओ-(प्रज्ञापनाटीका. पद १७५. ३३०-१.) १६. कृष्णलेश्या इन्द्रियोपयोगनी पेठे चारज्ञानवाळा भने त्रण अज्ञानवाळाने होय छै. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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