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________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक ८.-उद्देशक २. ८६. [प्र०] इंदियलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ? [उ०] गोयमा ! चत्तारि णाणाई, तिन्नि य अन्नाणाएं भयणाए। ८७. [प्र०] तस्स अलद्धीयाणं पुच्छा । [उ०] गोयमा! नाणी, नो अन्नाणी । नियमा एगनाणी-केवलणाणी सोई. दियलद्धिया णं जहा इंदियलद्धिया। . ८८. [प्र०] तस्स अलद्धीयाणं पुच्छा। [उ०] गोयमा! नाणी वि अन्नाणी वि । जे नाणी ते अत्थेगतिया दुधाणी. अत्यंगतिया पगनाणी । जे दुनाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी । जे एगनाणी ते केवलनाणी । जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी, तं जहा-मइअन्नाणी य सुयअन्नाणी य । चक्विंदिय-धाणिदियाणं लद्धी अलद्धी य जहेव सोइंदियस्स । जिम्भिदियलद्धियाणं चत्तारि णाणाई, तिन्नि य अन्नाणाणि भयणाए । ८९. [प्र०] तस्स अलद्धीयाणं पुच्छा । [उ०] गोयमा नाणी वि, अन्नाणी वि । जे नाणी ते नियमा एगनाणी-केवलणाणी । जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी, तं जहा-मइअनाणी य सुयअन्नाणी य । फासिदियलद्धीया णं अलद्धीया णं जहा इंदियलद्धिया य अलद्धीया य । ९०. [प्र०] सागारोवउत्ता णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ? [उ०] पंच नाणाई तिनि अनाणाई भयणाए । ९१. [प्र०] आभिणियोहियनाणसागारोवउत्ता णं भंते०१[उ०] चत्तारि णाणाई भयणाए । एवं सुयनाणसागारोवउत्ता वि । ओहिणाणसागारोवउत्ता जहा ओहिनाणलद्धीया। मणपजवनाणसागारोवउत्ता जहा मणपज्जवनाणलद्धीया । केवलना एन्द्रियधिक ८६. [प्र०] हे भगवन् ! इन्द्रियलब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ! [उ० ] हे गौतम! *तेओने भजनाए चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान होय छे इन्द्रियटविरहित ८७. [प्र०] इन्द्रियलन्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ! [उ.] हे गौतम | तेओ ज्ञानी छे, पण अज्ञानी नथी. ते अवश्य एक केवळज्ञानवाळा छे. श्रोत्रंद्रियलब्धिवाळा इन्द्रियलब्धिवाळानी पेठे (सू०८६.) जाणवा. श्रोत्रेन्द्रियलग्धि- ८८. [प्र०] श्रोत्रेन्द्रियलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ! [उ०] हे गौतम । तेओ ज्ञानी पण छे, अने अज्ञानी पण छे. जेओ ज्ञानी छे तेओमां केटलाक बेज्ञानवाळा अने केटलाक एकज्ञानवाळा छे. जेओ बेज्ञानवाळा छे तेओ आमिनिबोधिकज्ञानी अने श्रुतज्ञानी छे; अने जेओ एकज्ञानी छे तेओ एक-केवलज्ञानी छे, जेओ अज्ञानी छे तेओ अवश्य बेअज्ञानवाळा छे. जेम के मतिअज्ञानी चक्षुरिन्द्रियने अने श्रुतअज्ञानी. नेत्रेन्द्रिय अने घ्राणेन्द्रियलब्धिवाळाने श्रोत्रेन्द्रियलब्धिवाळानी पेठे (सू० ८७.) चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान जाणवाः घाणेन्द्रियलन्धिबाळा नल नेत्रेन्द्रिय अने घ्राणेन्द्रियलब्धिरहित जीवोने श्रोत्रेन्द्रियलब्धिरहित जीवोनी पेठे बे ज्ञान, बे अज्ञान अने एक केवलज्ञान होय छे. जिलेन्द्रियलब्धिक जिह्वेन्द्रियलब्धिवाळाने चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. विहेन्द्रियलब्धि- ८९. [प्र०] जिहेन्द्रियलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी ? [उ०] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी पण छे, अने अज्ञानी पण छे. रहित जेओ ज्ञानी छे तेओ अवश्य एक केवलज्ञानी छे, जेओ अज्ञानी छे तेओ अवश्य बे अज्ञानवाळा छे; ते आ प्रमाणे- मतिअज्ञानी अने पशेन्द्रियसम्धिकः श्रुतअज्ञानी. स्पर्शेन्द्रियलब्धिवाळाने इन्द्रियलब्धिवाळानी पेठे (सू० ८६.) भजनाए चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान जाणवा. स्पर्शेन्द्रिय लब्धिरहित जीवोने इन्द्रियलब्धिरहित जीवोनी पेठे (सू० ८७.) एक केवलज्ञान होय छे. साकार उपयोगवाळा. ९०. [प्र०] हे भगवन् ! "साकारउपयोगवाळा जीवो शुं ज्ञानी होय के अज्ञानी होय ! [उ० ] हे गौतम ! तेओने पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए (विकल्पे) होय छे. भाभिनियोधिक भने ९१. [प्र०] हे भगवन् ! आमिनिबोधिकसाकारोपयोगवाळा जीवो शुं ज्ञानी होय के अज्ञानी होय ! [उ०] हे गौतम! तेओने श्रुतचानोपयोग. भजनाए चार ज्ञान होय छे. ए प्रमाणे श्रुतज्ञानसाकारउपयोगवाळा जीवो पण जाणवा. अवधिज्ञानसाकारउपयोगवाळा जीवोने अवधिज्ञान 1-णिदियलद्धीया णं अलखीया ण य-घ। २-इंदियलद्धिया मलद्धिया छ। ८६. * इन्द्रियलब्धिवाळा जीवो जेओ ज्ञानी छे, तेओने चार ज्ञान होय छे, पण केवलज्ञान होतुं नथी; केमके केवलज्ञानीने इन्द्रियनो उपयोग नथी. जेओ अज्ञानी छे तेओने त्रण अज्ञान भजनाए छ.-टीका. ८८. 1 श्रोत्रेन्द्रियलब्धिरहित जीवोमा जेओ ज्ञानी छे ते आदिना बेज्ञानवाळा छे, अने ते अपर्याप्तावस्थामा साखादनसम्यग्दृष्टि विकलेन्द्रिय जीवो छ, एकज्ञानी ते केवलज्ञानवाळा छ, तेओ इन्द्रियोपयोगरहित होवाथी थोत्रेन्द्रियलब्धिरहित छे. जे अज्ञानी छे ते आदिना बेअज्ञानवाळा छे. ८९. जिढेन्द्रियलब्धिरहित केवलज्ञानी अने एकेन्द्रिय जीवो छे, तेथी जेओ ज्ञानी छे ते एक केवळज्ञानवाला छे, अने जेओ अज्ञानी छे तेओ अवश्य बेअज्ञानवाळा छ, केमके एकेन्द्रिय जीवोमा साखादन नहि होवाथी ज्ञाननो अभाव छ, तेम विभंगनो पण अभाव छे. ९०.1 आकार-विशेष, ते सहित जे बोध ते साकार बोध एटले विशेषग्राहक बोध, तेना उपयोगसहित ते साकारोपयुक्त कहेवाय छे. ते मानी अने अज्ञानी बन्ने होय छे. तेमा शानीने पांच ज्ञान भजनाए होय छे, एटले कदाचित् बे, अण, चार अने एक पण शान होय छे. भा बधा शान लम्धिने धाश्रयी जाणवा. उपयोगनी अपेक्षाए तो एक काळे एकज ज्ञान के एक अज्ञान होय छे. अज्ञानीने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे.-टीका. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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