________________
६९
शतक ८.-उद्देशक २.
भगवत्सुधर्मखामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ८३. [प्र०] सामाइअचरित्तलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ? [उ०] गोयमा ! नाणी, केवलवजाई चचारि नाणा भयणाए । तस्स अलद्धियाणं पंच नाणाई, तिन्नि य अन्नाणाई भयणाए । एवं जहा सामाइयचरिचलद्धीया अलखीया
मणिया, एवं जाव अहक्खायचरित्तलद्धीया अलद्धीया य माणियथा, नवरं अहफ्खायचरिचलद्धीयाणं पंच नाणाई भयणाए।
४.० चरित्ताचरित्तलद्धीया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ? [उ०] गोयमा! नाणी, नो अन्नाणी । अत्थेगतिया दुनाणी, अत्थेगतिया तिन्नाणी । जे दुन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी य सुयनाणी य । जे तिनाणी ते आभिणियोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी । दाणलद्धियाणं पंच नाणाई, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए ।
८५. प्र०ा तस्स अलद्धीयाणं पुच्छा। [उ०] गोयमा ! नाणी, नो अन्नाणी । नियमा एगनाणी केवलनाणी । एवं जाव वीरियस्स लद्धी अलद्धी य भाणिया । बालवीरियलद्धियाणं तिन्नि नाणारं, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए । तस्स अलदिया पंच नाणा भयणाए। पंडियवीरियलद्धीयाणं पंच नाणाई भयणाए । तस्स अलद्धीयाणं मणपजवनाणवजाई णाणाई, अनाणाणि तिन्नि य भयणाए। बालपंडियवीरियलद्धियाणं तिन्नि नाणाई भयणाए । तस्स अलद्धीयाणं पंच नाणाई तिन्त्रि अन्नाणाई भयणाए।
23. प्रि०ा हे भगवन् ! 'मामायिकचारित्रलब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी होय छे के अज्ञानी होय छे ! [उ.] हे गौतम! तेओ सामायिकचारिणज्ञानी होय छे. तेओने केवलज्ञान शिवाय चार ज्ञान भजनाए होय छे. सामायिकचारित्रलब्धिरहित जीवोने पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञान
सम्धिक. भजनाए होय छे. ए प्रमाणे जेवी रीते सामायिकचारित्रलब्धिवाळा अने सामायिकचारित्रलब्धिरहित जीवो कह्या तेम यावत् यथाख्यात- पथाख्यातचारित्रचारित्रलब्धिवाळा अने यथाख्यातचारित्रलब्धिरहित जीवो कहेवा. परन्तु यथाख्यातचारित्रलब्धिवाळाने पांच ज्ञान भजनाए जाणवा.
कम्धिक भने
अलग्धिक ८४. प्र०] हे भगवन् ! चारित्राचारित्र (देशचारित्र)लब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे! [उ.1 हे गौतम! चारित्राचारित्र
लम्धिक. तेओ ज्ञानी छे पण अज्ञानी नथी; तेमां केटलाक बेज्ञानवाळा अने केटलाक प्रणज्ञानवाळा छे. जेओ बेज्ञानवाळा छे तेओ आमिनिबोधिक ज्ञान अने श्रतज्ञानवाळा छे, जेओ त्रणज्ञानवाला छे तेओ आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी अने अवधिज्ञानी छे. चारित्राचारित्र चारित्राचारित्र (देशचारित्र लब्धिरहित जीवोने भजनाए पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञान होय छे. दानलब्धिवाळाने पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए ।
सन्धिरहित.
दानलम्पिकहोय छे.
८५. प्र०] दानलब्धिरहित जीवो ज्ञानी छे के अज्ञानी छे! [उ०] हे गौतम! तेओ ज्ञानी छे, अने तेओ अवश्य एककेवल- दानलम्धिरहित. ज्ञानवाळा छे. ए प्रमाणे यावत् वीर्यलब्धिवाळा अने वीर्यलब्धिरहित जीवो कहेवा. बालवीर्यलब्धिवाळा जीवोने त्रण ज्ञान अने त्रण
वीर्यलम्धिक मने बीअज्ञान भजनाए होय छे. बालवीर्यलन्धिरहित जीवोने भजनाए पांच ज्ञान होय छे. पंडितवीर्यलब्धिवाळा जीवोने पण भजनाए पांच ज्ञान वीर्यसम्धिक, पंडितहोय छे. पंडितवीर्यलब्धिरहितने मनःपर्यवज्ञान शिवाय चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. बालपंडितवीर्यलब्धिवाळाने भजनाए
वीर्यलम्धिक भने त.
दग्धिक. वालपंकित्रण ज्ञान होय छे, अने बालपंडितवीर्यलब्धिरहित जीवोने पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे.
तवीर्यसम्धिक बने अलग्धिक.
'
१ एवं जहा जाव घ।
८३.• सामायिकचारित्रलब्धिवाळा जीवो ज्ञानी ज होय छे, तेथी तेओने केवलज्ञान शिवाय बाकीना चार ज्ञान भजनाए होय छे, केमके यथाख्यातचारित्रीने ज केवलज्ञान होय छे. सामायिकचारित्रनी लब्धिरहित जे ज्ञानी छे तेओने छेदोपस्थापनीयभावे अने सिद्धभावे पांच ज्ञान भजनाए छ, जे अज्ञानी छे तेओने त्रण अज्ञान भजनाए छे. परन्तु यथाख्यातचारित्रवाळाने छद्मस्थपणे अने केवलीपणे पांच ज्ञान भजनाए होय छे.
४. चारित्राचारित्रलब्धिरहित जीवो देशविरति श्रावकथी अन्य जाणवा, तेमा जे ज्ञानी छे तेने पांच ज्ञान भजनाए होय छे, अने जे अज्ञानी छे तेओने प्रण अज्ञान भजनाए छे.
दानान्तरायना क्षय के क्षयोपशयथी प्रकट थयेल दानलब्धिवाळा ज्ञानी अने अज्ञानी होय छे. तेमां जेओ ज्ञानी छे तेओने पांच ज्ञान भजनाए छ, केमके केवलज्ञानी पण दानलब्धियुक्त छे. जेओ अज्ञानी छे तेओने त्रण अज्ञान भजनाए छे.
८५. "दानलब्धिरहित सिद्धो छे, तेओने दानान्तरायना क्षय थवा छतां देवा लायक वस्तुना अभावथी, पात्रना अभावथी अने दानना प्रयोजनना अभावथी दानलब्धिरहित कह्या छे, तेओ अवश्य एककेवलज्ञानसहित छे. ए प्रमाणे लाभ, भोग, उपभोग अने वीर्यलब्धिवाळा अने तेथी इतर जीवो जाणवा. अहीं पूर्वे कह्या प्रमाणे लन्धिरहित सिद्धो जाणवा. यद्यपि दानान्तरायनो क्षय होवाथी केवलज्ञानीने दानादि लन्धिओ प्रकट थाय छे अने तेथी तेमनी पण दानादिकमा प्रवृत्ति थवी जोइए, तो पण तेओ कृतकृत्य थयेला होवाथी अने प्रयोजनना अभावथी तेओनी दानादिमा प्रवृत्ति थती नथी.-टीका.
बालवीर्यलब्धिवाळा असंयत (अविरति) कहेवाय छे, तेमां ज्ञानीने त्रण ज्ञान अने अज्ञानीने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. बालवीर्यलन्धिरहित जीवो सर्वविरति, देशविरति अने सिद्धो जाणवा, तेओने पांच ज्ञान भजनाए होय छे. पंडितवीर्यलब्धिरहित असंयत, देशसंयत अने सिद्धो छे. तेमा असंयतने आदिना त्रण ज्ञान के त्रण अज्ञान भजनाए होय छे, देशसंयतने त्रण शान भजनाए होय छे, अने सिद्धने एक केवलज्ञान होय छे. मनःपर्यवज्ञान मात्र पंडितवीर्यलब्धिवाळाचेज होय.छे. सिद्धो पंडितवीर्यलब्धिरहित छे, केमके भहिंसादि धर्मव्यापारमा सर्वथा प्रवृत्ति करवी ते पंडितवीर्य छे अने ते तेभोने नथी.-टीका.
Jain Education International
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only