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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ८.-उद्देशक १० ७६. प्र०] तस्स अलद्धियाणं पुच्छा । [उ०] गोयमा! नाणी वि, अन्नाणी वि । केवलनाणवजाई चत्तारिणाणा तिमि अन्नाणाई भयणाए।
७७. [३०] अन्नाणलद्धियाणं पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो नाणी, अन्नाणी । तिनि अनाणाई भयणाए।
७८. [प्र०] तस्स अलद्धियाणं पुच्छा । [उ०] गोयमा! नाणी, नो अन्नाणी । पंच नाणाई भयणाए, जहा अभाणस्स लद्धिया अलद्धिया य भणिया एवं मइअन्नाणस्स सुयअन्नाणस्स य लद्धिया अलद्धिया य भाणियचा । विभंगनाणलद्धीयाणं तिन्नि अन्नाणाई नियमा। तस्स अलद्धीयाणं पंच नाणाई भयणाए, दो अन्नाणाई नियमा।
७९. [प्र०] दसणलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी? [उ०] गोयमा! नाणी वि, अन्नाणी वि, पंच नाणाई तिन्नि अनाणाई भयणाए।
८०. [प्र०] तस्स अलद्धीया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? [उ०] गोयमा। तस्स अलद्धिया नत्थि । सम्म दसणलद्धियाणं पंच नाणाई भयणाए । तस्स अलद्धियाणं तिन्नि अन्नाणाई भयणाए।
८१. [प्र०] मिच्छादसणलद्धीया णं भंते ! पुच्छा । [उ०] तिन्नि अन्नाणाई भयणाए । तस्स अलद्धीयाणं पंच नाणाई, तिन्नि य अन्नाणाई भयणाए । सम्मामिच्छादसणलद्धिया, अलद्धिया य जहा मिच्छादसणलेद्धीया अलद्धीया तहेव भाणिय; ।
८२. [प्र०] चरित्तलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? [उ०] गोयमा! पंच नाणाई भयणाए । तस्स अलद्धीयाणं मणपज्जवनाणवजाइं चत्तारि नाणाई, तिन्नि य अन्नाणाई भयणाए ।
केवलशानलन्धि- ७६. [प्र०] केवळज्ञानलब्धिरहित जीवो ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी पण छे अने अज्ञानी पण
छे. तेओने केवळज्ञान शिवाय चार ज्ञान अने त्रण. अज्ञान भजनाए होय छे. अज्ञानहन्धिक
७७. [प्र०] हे भगवन् ! अज्ञानलब्धिवाय जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ० ] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी नथी, पण
अज्ञानी छे. तेओने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. अज्ञानन्धिरहित. ७८. प्र०] हे भगवन् ! अज्ञानलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ? [उ०] हे गौतम! तेओ ज्ञानी छे, पण अज्ञानी मत्यज्ञान भने श्रुता- नथी; तेओने पांच ज्ञान भजनाए होय छे. जेम अज्ञानलब्धिवाळा अने अज्ञानलन्धिरहित जीवो कह्या तेम मतिअज्ञान अने श्रुतअज्ञानल
शनि कधिहित. ब्धिवाळा अने ते लब्धिथी रहित जीवो कहेवा. [ एटले अज्ञानलब्धिवाळानी पेठे (सू० ७७) मतिअज्ञान अने श्रुतअज्ञानलब्धिवाळा विमंगशानलम्धिक जीवो जाणवा, अने अज्ञानलब्धिरहित जीवोनी पेठे (सू० ७८) मत्यज्ञान अने श्रुताज्ञानलब्धिरहित जीवो जाणवा. ] विभंगज्ञानलब्धिवाळा लम्धिरहित.
__ जीवोने अवश्य त्रण अज्ञान होय छे, अने विभंगज्ञानलाब्धरहित जीवोने भजनाए पांच ज्ञान के अवश्य बे अज्ञान होय छे. दर्शनलग्धिक. ७९. [प्र०] हे भगवन् ! "दर्शनलब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ! [उ.] हे गौतम! तेओ ज्ञानी पण
छे अने अज्ञानी पण छे. [ जेओ ज्ञानी छे ] तेओने पांच ज्ञान, अने [ जेओ अज्ञानी छे तेओने ] त्रण अज्ञान भजनाए होय छे.. दर्शनकन्धिरहित. ८०. [प्र०] हे भगवन् ! दर्शनलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम ! दर्शनलन्धिरहित जीवो
होता नथी. सम्यग्दर्शनलब्धिवाळा जीवोने भजनाए पांच ज्ञान होय छे, अने सम्यग्दर्शनलब्धिरहित जीवोने भजनाए त्रण अज्ञान होय छे. मिथ्यादर्शनलम्धिक ८१. [प्र०] हे भगवन् ! मिथ्यादर्शनलब्धिवाळा जीवो ज्ञानी होय के अज्ञानी ? [उ.] तेओने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. मिनदृष्टिलम्धिक. मिथ्यादर्शनलब्धिरहित ( सम्यग्दृष्टि अने मिश्रदृष्टि ) जीवोने पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. सम्यगमिथ्यादर्शनलब्धिवाळा
( मिश्रदृष्टि )जीवो मिथ्यादर्शनलब्धिवाळानी पेठे जाणवा. सम्यगमिथ्यादर्शनलब्धिरहित जीवो जेम मिथ्यादर्शनलन्धिरहित जीवो कह्या
ते प्रमाणे जाणवा. चारित्रलाधिक. ८२. [प्र०] हे भगवन् ! चारित्रलब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ! [उ.] हे गौतम! तेओने पांच ज्ञान भजनाए
होय छे. चारित्रलब्धिरहित जीवोने मनःपर्यवज्ञान शिवाय चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे.
१ सम्मदं-घ। २ -सद्धी अलद्धी त-घ ।
७९. * दर्शन-श्रद्धान, तेमा जे ज्ञानपूर्वक होय ते सम्यश्रद्धान भने अज्ञानपूर्वक होय ते मिथ्याश्रद्धान. सम्यश्रद्धावाळा ते ज्ञानी अने मिथ्याधद्धावाळा ते अज्ञानी कहेवाय छे.
८.. दर्शनलब्धिरहित नीवो नयी, केमके सर्व जीवने सम्यक् मिथ्याके मिश्र श्रद्धानमांथी एक श्रद्धान अवश्य होय छे.
८२. चारित्रलब्धिरहित जे ज्ञानी छे, तेओने मनःपर्यवज्ञान शिवाय चार ज्ञान भजनाए होय छे, केमके अविरतिपणामां आदिना बे के प्रण ज्ञान होय छे, अने सिद्धपणामां एक केवलज्ञान होय छे. सिद्ध नोचारित्री नोअचारित्री होवाथी चरित्रलन्धिरहित छे. जे अज्ञानी छे तेओने प्रण अज्ञान भजनाए होय छे.
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