SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७ शतक ८.-उद्देशक २. - भगवत्सुधमेखामिप्रगीत भगवतीसूत्र. ६८. [H०] तस्स अलद्धीया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ? [उ०] गोयमा! नो नाणी, अन्नाणी । अत्थेगतिया दुअन्नाणी, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए। ६९. [प्र० आभिणियोहियणाणलद्धीया णं भंते। जीवा किं नाणी अन्नाणी? [उ०] गोयमा! नाणी, नो अन्नाणी। अत्यंगतिया दुनाणी, चत्तारि नाणाई भयणाए। ७०. प्र० तस्स अलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? [उ०] गोयमा! नाणी वि अन्नाणी वि । जे नाणी ते नियमा एगनाणी-केवलनाणी। जे अन्नाणी ते अत्थेगतिया दुअन्नाणी, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए । एवं सुयनाणलद्धीया वि। तस्स अलद्धीया वि जहा आभिणिवोहियनाणस्स अलद्धीया । ७१. प्र०] ओहिनाणलद्धीयाणं पुच्छा। [उ०] गोयमा! नाणी, नो अनाणी । अत्थेगतिया तिन्नाणी, अत्थेगतिया चउनाणी । जे तिन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी । जे चउनाणी ते आभिणियोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, मणपजवनाणी। ७२. [प्र०] तस्स अलद्धियाणं पुच्छा। [उ०] गोयमा! नाणी वि अन्नाणी वि । एवं ओहिनाणवजाइं चत्तारि नाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए। ७३. [प्र०] मणपजवनाणलद्धियाणं पुच्छा। [उ०] गोयमा! णाणी, णो अन्नाणी । अत्थेगतिया तिघाणी, अत्थेगतिया चउनाणी । जे तिन्नाणी ते आभिणियोहियनाणी, सुयणाणी, मणपजवनाणी। जे चउनाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, मणपजवनाणी। ___७४. [प्र०] तस्स अलद्धीयाणं पुच्छा । [उ०] गोयमा ! गाणी वि, अन्नाणी वि; मणपज्जवनाणवजाई चत्तारि णाणाई, तिणि अन्नाणाई भयणाए । ७५. [प्र०] केवलणाणलद्धिया णं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी? [उ०] गोयमा! नाणी, नो अनाणी । नियमा एगणाणी-केवलणाणी। ६८. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ! [उ.] है गौतम | तेओ ज्ञानी नथी पण अज्ञानी शानसम्धिरहित. छे. केटला एक वेअज्ञानवाळा छे, अने तेओने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. ६९. [प्र०] हे भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानलब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ! [उ०] हे गौतम! तेओ ज्ञानी भामिनिबोधिकहोय छे, पण अज्ञानी नथी. केटलाएक वेज्ञानवाळा छे, तेओने चार ज्ञान भजनाए होय छे. [ एटले केटलाएक त्रणज्ञानवाळा अने केटलाएक चारज्ञानवाळा होय छे.] ७०. [प्र०] हे भगवन् ! आमिनिबोधिकज्ञानलब्धिरहित जीवो ज्ञानी छे के अज्ञानी ! [उ.] हे गौतम! तेओ ज्ञानी पण छे अने मामिनियोधिक अज्ञानी पण छे. जेओ ज्ञानी छे तेओ अवश्य एक केवलज्ञानी छे; जेओ अज्ञानी छे तेमा केटलाक बेअज्ञानवाळा छे अने केटलाक त्रण कम्धिरहितअज्ञानवाळा छे; एटले तेओने भजनाए त्रण अज्ञान होय छे. ए प्रमाणे "श्रुतज्ञानलब्धिवाळा पण जाणवा. श्रुतज्ञानलब्धिरहित जीवो आभिनिबोधिकलब्धिरहित जीवोनी पेठे जाणवा. ७१. प्र०] हे भगवन् ! अवधिज्ञानलब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे! [उ.] हे गौतम! तेओ ज्ञानी छे, पण अपिधानअज्ञानी नथी. तेओमां केटलाक त्रणज्ञानवाळा छे अने केटलाक चारज्ञानवाळा छे; जेओ त्रणज्ञानवाळा छे तेओ आमिनिबोधिकज्ञान, लम्भिक जीवो. श्रुतज्ञान अने अवधिज्ञानवाला छे. जेओ चारज्ञानवाळा छे तेओ आभिनिवोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान अने मनःपर्यवज्ञानवाळा छे. ७२. प्र०] हे भगवन् ! अवधिज्ञानलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ.] हे गौतम! तेओ ज्ञानी पण छे अवधिशानलम्धिअने अज्ञानी पण छे, ए प्रमाणे तेओने अवधिज्ञान शिवाय चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. रदित ७३. [प्र०] हे भगवन् ! मनःपर्यवज्ञानलब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे? [उ.] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी छे, पण मनापर्यवधानअज्ञानी नथी; तेमां केटलाक त्रणज्ञानवाळा छे अने केटलाक चारज्ञानवाळा छे. जे त्रण ज्ञानवाळा छे तेओ आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी कधिक अने मनःपर्यवज्ञानी छे, अने जेओ चार ज्ञानवाळा छे तेओ आमिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी अने मनःपर्यवज्ञानी छे.. ७४. [प्र०] मनःपर्यवज्ञानलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ! [उ.] हे गौतम! तेओ ज्ञानी पण छे अने अज्ञानी मनापर्यवशामपण छे, तेओने मनःपर्यवज्ञान शिवाय चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए छे. सम्धिरहित ७५. [प्र०] हे भगवन् ! केवलज्ञानलब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे! [उ०] हे गौतम! तेओ ज्ञानी छे पण केवलशान अज्ञानी नथी. तेओ अवश्य एककेवलज्ञानवाला छे. अम्धिन ७०. * आभिनिवोधिकलब्धिवाळानी पेठे (सू०६९) श्रुतज्ञानलब्धिवाळा जाणवा, एटले तेओ ज्ञानी ज होय छे, अने तेओने चार ज्ञान भजनाए होय छे. श्रुतज्ञानलब्धिरहित जीवो आभिनिबोधिकलन्धिरहित जीवोनी पेठे (सू०७०) जाणवा, एटले तेओ ज्ञानी अथवा अज्ञानी होय छे, जो ज्ञानी होय तो तेने मात्र एक केवलज्ञान होय छे अने अज्ञानी होय तो त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. परन्तु ग-घ-ङ प्रतिमा “तस्स अलद्धिया जहा आभिणिवोहियनाणस्स लद्धिया" एवो पाठ छे, (श्रुतज्ञानलब्धिरहित जीवो आभिनिवोधिकलब्धिवाळानी पेठे जाणवा ) पण ए पाठ अर्थनी दृष्टिथी संगत लागतो नधी. क प्रतिमा आ पाठ नथी, मात्र ख प्रतिमा 'अलद्धिया' ए पाठ छे, अने ते अर्थनी साथे संगत लागतो होवाथी ते पाठ कायम राखी तेने अनुसारे अनुवाद करेलो छे-संशोधक.' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy