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आ.श्री. कैलाससागर सूरि ज्ञान मंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र काबा
शतक ८.-उद्देशक १.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
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तिनि वीससापरिणया; अहवा दो पयोगपरिणया दो मीसापरिणया; अहवा दो पयोगपरिणया दो वीससापरिणया; अहवा तिन्नि पओगपरिणया एगे मीसापरिणए; अहवा तिन्नि पओगपरिणया एगे वीससापरिणए; अहवा एगे मीससापरिणए तिन्नि वीससापरिणया; अहवा दो मीसंसापरिणया दो वीससापरिणया; अहवा तिन्नि मीसापरिणया एगे वीससापरिणए; अहवा एगे पओगपरिणए एगे मीसापरिणए दो वीससापरिणया; अहवा एगे पयोगपरिणए दो मीसापरिणया एगे वीससापरिणए; अहवा दो पयोगपरिणया एगे मीसापरिणए एगे वीससापरिणए ।
६८. प्र० जइ पयोगपरिणया कि मणप्पयोगपरिणया, वयप्पयोगपरिणया, कायप्पयोगपरिणया? [उ.] एवं एएणं कमेणं पंच छ सत्त जाव दस संखेजा असंखेजा अणंता य दवा भाणियवा दुयासंजोएणं, तियासंजोएणं, जाव दससंजोएणं; बारससंजोएणं उवजुंजिऊणं जत्थ जत्तिया संजोगा उडेति ते सधे भाणियचा; एए पुण जहा नवमसए पवेसणए भणिहामो तहा उवजुंजिऊण भाणियबा, जाव असंखेजा अणंता एवं चेव, नवरं एवं पदं अब्भहियं, जाव अहवा अणंता परिमंडलसंठाणपरिणया, जाव अणंता आयतसठाणपरिणया ।
६९. [प्र०] एएसिणं भंते ! पोग्गलाणं पयोगपरिणयाणं, मीसापरिणयाणं, वीससापरिणयाण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा? [उ० गोयमा! सवयोवा पोग्गला पयोगपरिणया, मीसापरिणया अणंतगुणा, वीससापरिणया अणंतगुणा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ।
अट्ठमसए पढमो उद्देसो समत्तो।
२ अथवा एक प्रयोगपरिणत होय अने त्रण विस्रसापरिणत होय. ३ अथवा बे प्रयोगपरिणत होय अने बे मिश्रपरिणत होय. ४ अथवा बे प्रयोगपरिणत होय अने बे विस्रसापरिणत होय. ५ अथवा त्रण प्रयोगपरिणत होय अने एक मिश्रपरिणत होय. ६ अथवा त्रण प्रयोगपरिणत होय अने एक विस्रसापरिणत होय. ७ अथवा एक मिश्रपरिणत होय अने त्रण विस्रसापरिणत होय. ८ अथवा बे मिश्रपरिणत होय अने बे विस्रसापरिणत होय. ९ अथवा त्रण मिश्रपरिणत होय अने एक विस्रसापरिणत होय. १० अथवा एक प्रयोगपरिणत होय एक मिश्रपरिणत होय अने बे विस्रसापरिणत होय. ११ अथवा एक प्रयोगपरिणत होय बे मिश्रपरिणत होय अने एक विस्रसापरिणत होय. १२ अथवा बे प्रयोगपरिणत होय एक मिश्रपरिणत होय अने एक विस्रसापरिणत होय.
६८. प्र०] हे भगवन् ! जो ते चार द्रव्यो प्रयोगपरिणत होय तो शुं मनःप्रयोगपरिणत होय ? (वचनप्रयोगपरिणत होय के मनःप्रयोगादिपरिकायप्रयोगपरिणत होय ! ) [उ.] हे गौतम ! सर्य पूर्वनी पेठे जाणवू; ए क्रमवडे पांच, छ, सात यावत् दश, संख्याता, असंख्याता,
गत चार म्यो.
पांच, छ, यावत् अने अनंत द्रव्योना द्विकसंयोग त्रिकसंयोग, यावत् दशसंयोग, बारसंयोग उपयोगपूर्वक कहेवां अने ज्यां जेटला संयोगो थाय त्यां ते सर्व मनन्त द्रव्योनो
परिणाम. कहेवा. ए बधा संयोगो *नवम शतकना प्रवेशनकमां जे प्रकारे कहीशुं तेम उपयोगपूर्वक विचारीने कहेवा, यावत् असंख्येय अने अनंत द्रव्योनो परिणाम ए प्रमाणे जाणवो, परन्तु एक पद अधिक करीने कहे; यावत् अथवा अनंत द्रव्यो परिमंडलसंस्थानपणे परिणत होय, यावत् अनंत द्रव्यो आयतसंस्थानपणे परिणत होय.
मरुपबरव
६९. [प्र० हे भगवन् ! प्रयोगपरिणत, मिश्रपरिणत अने विस्रसापरिणत ए पुद्गलोमां कया पुद्गलो कोनाथी यावद् विशेषाधिक छोय छे: [उ.] हे गौतम! सर्वथी थोडा पुदूलो प्रयोगपरिणत हे, तेथी मिश्रपरिणत अनंतगुण छे, अने तेथी विस्रसापरिणत अनंतगुण छे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. [एम कही भगवान् गौतम यावत् विहरे छे]
अष्टमशतके प्रथम उद्देशक समाप्त.
मीसाप-घ। २-यज्वं (एक्कगसंजोगेणं ) दु-घ । Jain Education Internse भग. श. ९.१० ३२.
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