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मिमपरिणत वे द्रभ्यो.
विस्रसापरिणत
ये द्रव्यो.
द्रव्यनो परिणाम.
श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ८. - उद्देशक ९.
. परिणए एगे अणारंभसच्चमणप्पयोगपरिणए । एवं एएणं गंमेणं यासंजोएणं नेयां, सधे संजोगा जत्थ जत्तिया उट्ठेति ते भा या, जाव सवट्टसिद्धगत्ति ।
चार द्रव्यनो परिणाम.
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६२. [प्र० ] जति मीसापरिणया किं मणमीसापरिणया ? [अ०] एवं मीसापरिणया वि ।
६३. [प्र०] जइ वीससापरिणया किं वन्नपरिणया, गंधपरिणया० ? [उ०] एवं वीससापरिणया वि, जाव अहवा गे उरंसठाणपरिणए, एगे आयतसंठाणपरिणए वा ।
६४. [प्र० ] तिन्निभं ! दवा किं पयोगपरिणया, मीसापरिणया, वीससापरिणया ? [३०] गोयमा ! पयोगपरिणया वा, मीसापरिणया वा, वीससापरिणया वा; अहवा एगे पयोगपरिणए दो मीसापरिणया; अहवा एगे पयोगपरिणए दो वीससापरिणया; अहवा दो पयोगपरिणया एगे मीससापरिणय; अहवा दो पयोगपरिणया एगे विससापरिणय; अहवा एगे मीसा परिणए दो वीससापरिणया अहवा दो मीससापरिणया एगे वीससापरिणए; अहवा पगे पओगपरिणए एगे मीसापरिणप एगे वीससापरिणए ।
६५. [प्र० ] जइ पयोगपरिणया किं मणप्पयोगपरिणया, वयप्पयोगपरिणया, कायप्पयोगपरिणया ? [ उ०] गोयमा ! मणप्पयोगपरिणया वा, एवं एक्कगसंयोगो, दुयासंयोगो, तियासंयोगो भाणियधो ।
६६. [प्र०] जद्द मणप्पयोगपरिणया किं सञ्चमणप्पयोगपरिणया, असच्चमणप्पयोगपरिणया, सच्चामोसमणप्पयोगपरिणया, असच्चामोसमणप्पयोगपरिणया ? [30] गोयमा ! सचमणप्पयोगपरिणया वा, जाव असच्चामोसमणप्पयोगपरिणया वा; अहवा एगे सच्चमणप्पओगपरिणए दो मोसमणप्पयोगपरिणया वा । एवं दुयासंयोगो, तियासंयोगो भाणियवो एत्थ वि तहेव, जाव अहवा एगे तंससंठाणपरिणए एगे चउरंससंठाणपरिणए पगे आयतसंठाणपरिणए वा ।
६७. [प्र०] चत्तारि भंते ! दद्या किं पओगपरिणया, मीसापरिणया, वीस सापरिणया ? [उ०] गोयमा ! पयोगपरिणया वा, मीसापरिणया वा, वीससापरिणया वा, । अहवा एगे पओगपरिणए तिन्नि मीसा परिणया; अहवा एगे पओगपरिणए प्रयोगपरिणत होय. १ अथवा एक द्रव्य आरंभसत्यमनः प्रयोगपरिणत होय अने बीजुं अनारंभसत्यमनः प्रयोगपरिणत होय. ए प्रमाणे ए रीते द्विक संयोगो करवा. ज्यां जेटला द्विकसंयोगो थाय त्यां ते सघळा कहेवा; यावत् सर्वार्थसिद्धवैमानिकदेव सुधी कहेवुं.
६२. [प्र० ] हे भगवन् ! जो बे द्रव्यो मिश्रपरिणत होय तो शुं ते मनोमि श्रपरिणत होय ? इत्यादि. [ उ० ] हे गौतम! प्रयोगपरिणत संबंधे कह्युं तेम मिश्रपरिणतसंबंधे कहे .
६३. [प्र०] हे भगवन् ! जो बे द्रव्यो विस्रसापरिणत होय तो शुं ते वर्णपणे परिणत होय, गन्धपणे परिणत होय ! इत्यादि [30] गौतम ! ए रीते पूर्वे कह्या प्रमाणे विस्रसापरिणतसंबन्धे पण जाणवुं, यात्रत् एक द्रव्य समचतुरस्रसंस्थानपणे परिणत होय अने बीजुं आयतसंस्थानपणे पण परिणत होय.
मनः प्रयोगादि
६५. [प्र०] जो ते त्रणे द्रव्यो प्रयोगपरिणत होय तो शुं मनः प्रयोगपरिणत होय, वचनप्रयोगपरिणत होय के कायप्रयोगपरिणत परिणत श्रण. होय ? [ उ० ] हे गौतम ! ते मनःप्रयोगपरिणत पण होय. ए प्रमाणे एकसंयोग, द्विकसंयोग अने त्रिकसंयोग कहेवो.
६४. [प्र०] हे भगवन् ! त्रण द्रव्यो शुं प्रयोगपरिणत होय, मिश्रपरिणत होय, के विस्रसापरिणत होय ? [ उ० ] हे गौतम! ते (त्रणे द्रव्यो ) प्रयोगपरिणत होय, मिश्रपरिणत होय अने विस्रसापरिणत पण होय. १ अथवा एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होय अने बे मिश्रपरिणत होय, २ अथवा एक प्रयोगपरिणत होय अने बे विस्रसापरिणत होय, ३ अथवा बे प्रयोगपरिणत होय अने एक मिश्रपरिणत होय, ४ अथवा बे प्रयोगपरिणत होय अने एक विस्रसापरिणत होय, ५ अथवा एक मिश्रपरिणत होय अने बे विस्रसापरिणत होय. ६ अथवा ने मिश्रपरिणत होय अने एक विस्रसापरिणत होय. ७ अथवा एक प्रयोगपरिणत एक मिश्रपरिणत अने एक विस्रसापरिणत होय.
६६. [प्र०] जो ते त्रणे द्रव्यो मनः प्रयोगपरिणत होय तो शुं सत्यमनः प्रयोगपरिणत होय ! (इत्यादि ४ प्रश्न ). [ उ० ] हे गौतम! सत्यमनःप्रयोगपरिणत होय, अथवा यावत् असत्यामृषामनः प्रयोगपरिणत होय. अथवा एक सत्यमनः प्रयोगपरिणत होय अने बे मृषामनःप्रयोगपरिणत होय. ए प्रमाणे अहीं पण द्विकसंयोग अने त्रिकसंयोग कहेवो. यावत् अथवा एक त्र्यत्र ( त्रिकोण ) संस्थानपणे परिणत होय, एक समचतुरस्र ( चोरस) संस्थानपणे परिणत होय अने एक आयतसंस्थानपणे परिणत होय.
६७. [प्र०] हे भगवन् ! चार द्रव्यो शुं प्रयोगपरिणत होय, मिश्रपरिणत होय के विस्रसापरिणत होय ? [ उ० ] हे गौतम ! ते ( चारे द्रव्यो) प्रयोगपरिणत होय, मिश्रपरिणत होय के विश्रसापरिणत होय. १ अथवा एक प्रयोगपरिणत होय अने त्रण मिश्रपरिणत होय.
१ गमपूर्ण छ ।
२ दुयसं- घ । ३ मीससाप-घ ।
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