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श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे
शतक ८:- उद्देशक. १.
३६. [प्र०] जदि एर्गिदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणते किं पुढविक्काइयएगिंदिय - जाव परिणते वा, जाव वणस्सइकाइयएर्गिदियओरालियकायप्पओगपरिणते वा ? [30] गोयमा ! पुढविक्काइयपर्गिदिय- जाव परिणए वा, जाव वण सइकाइयएगिंदिय- जाव परिणए वा ।
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३७. [प्र० ] जदि पुढ विकाइयएगिंदियओरालियसरीर- जाव परिणते किं सुहुमपुढविक्काइय- जाव परिणए, बादरपुढविकाइय- जाव परिणते ? [अ०] गोयमा ! सुहुमपुढविकाइयएर्गिदिय- जाव परिणते वा, बायरपुढविक्काइय- जाव परिणते वा ।
३८. [प्र०] जदि सुहुमपुढविक्काइय- जाव परिणते किं पज्जत्तसुहुमपुढविक्काइय- जाव परिणते, अपजत्तसुहुमपुढविकाअ - जाव परिणते ? [अ०] गोयमा ! पज्जत्तसुहुमपुढविकाइय- जाव परिणते वा, अपजत्तसुहुमपुढविक्काइय- जाव परिणते वा एवं बादरा वि, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं चउक्कओ भेदो, वेइंदिय-तेइंदिय- चउरिंदियाणं दुयओ भेदो- पज्जत्तगा
य अपजत्तगा य ।
३९. [प्र० ] जदि पंचिदियओरालियसरी रकायप्पयोगपरिणते किं तिरिक्खजोणियपंचिदिय ओरालियसरीरकायप्पयोगपरिणते, मणुस्सपंचिंदिय- जाव परिणते ? [ उ०] गोयमा ! तिरिक्खजोणिय- जाव परिणए वा, मणुस्सपंचिंदिय- जाव परिणए वा ।
४०. [प्र०] जइ तिरिक्खजोणिय- जाव परिणए किं जलयरतिरिषखजोणिय- जाव परिणय वा, थलयर - खहचर - जाव परिणए वा ? [30] एवं चउक्कओ भेदो, जाव सहचराणं ।
४१. [प्र०] जइ मणुस्पंचिंदिय- जाव परिणए किं संमुच्छिममणुस्तपंचिंदिय- जाव परिणए, गन्भवकंतियमणुस्सजाव परिणए ? [अ०] गोयमा ! दोसु वि ।
४२. [प्र० ] जइ गन्भवतियमणुस्स- जाव परिणए किं पजत्तगब्भवकंतिय- जाव परिणए, अप्पजत्तगब्भवकंतियमणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरकायप्पयोग परिणए ? [उ०] गोयमा ! पज्जत्तगब्भवकंतिय- जाव परिणए वा, अपजत्तगब्भवक्यंतियजाव परिणए वा ।
३६. [प्र० ] हे भगवन्! जो ते एक द्रव्य एकेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होय तो शुं पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय औदा+ रिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होय के यावत् वनस्पतिकायिकएकेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होय ? [ उ० ] हे गौतम ! पृथिवी - कायिकएकेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय के यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय.
३७. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य पृथिवीकायिकएकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगपरिणत होय तो शुं सूक्ष्मपृथिवीकायिकएकेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय के बादरपृथिवीकायिकए केन्द्रिय कायप्रयोगपरिणत होय ? [उ० ] हे गौतम ! सूक्ष्मपृथिवीकायिकएकेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय के बादरपृथिवीकायिकएकेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय.
३८. [प्र० ] हे भगवन् ! जो एक द्रव्य सूक्ष्मपृथिवीकायिककायप्रयोगपरिणत होय तो शुं पर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिककायप्रयोगपरत होय, के अपर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिककायप्रयोगपरिणत होय ! [ उ० ] हे गौतम ! पर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिककायप्रयोगपरिणत होय के अपर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिककायप्रयोगपरिणत होय. ए प्रमाणे बादरपृथिवीकायिको जाणवा. ए प्रमाणे यावद् वनस्पतिकायिकना चार भेद ( सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त अने अपर्याप्त ) अने बेइन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, अने चउरिन्द्रिय जीवोना बे भेद पर्याप्त अने अपर्याप्त जाणवा.
३९. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य पंचेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होय तो शुं तिर्यंचयोनिकपंचेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होय के मनुष्यपंचेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होय ? [उ० ] हे गौतम! तिर्यंचयोनिक औदारिक शरीरकायप्रयोगपरिणत होय के मनुष्यपंचेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होय.
४०. [प्र०] हे भगवन्! जो ते एक द्रव्य तिर्यंचयोनिककायप्रयोगपरिणत होय तो शुं जलचरतिर्यंचयोनिककायप्रयोगपरिणत होय के स्थलचर अने खेचरयोनिककायप्रयोगपरिणत होय ? [30] पूर्व प्रमाणे यावत् खेचरोना [ संमूर्छिम, गर्भज, पर्याप्त अने अपर्याप्त ] चार भेदो जाणवा.
४१. [प्र० ] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य मनुष्यपंचेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय तो शुं संमूर्छिममनुष्यपंचेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय के गर्भजमनुष्यपंचेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय ? [ उ० ] हे गौतम! ते ( एक द्रव्य ) [ संमूर्छिम अने गर्भज ] मनुष्यकायप्रयोगपरिप्त होय.
४२. [प्र०] हे भगवन्! जो ते एक द्रव्य गर्भजमनुष्यका यप्रयोगपरिणत होय तो शुं पर्याप्तगर्भजमनुष्यकायप्रयोगपरिणत होय के. अपर्याप्तगर्भजमनुष्यपंचेन्द्रियऔदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होय ! [उ०] हे गौतम ! पर्याप्तगर्भजमनुष्यकायप्रयोगपरिणत होय के अपर्याप्तगर्भजमनुष्यकायप्रयोगपरिणत होय.
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