________________
शतक ७. – उद्देशक ९.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
३५
१४. [प्र०] पणे णं भंते! नागनचुर कालमासे का किया कहिं गए, कहिं उबयद्ये १ [30] गोयमा ! सोहम्मे कप्पे, अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने, तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाणि ठिती पण्णत्ता, तत्थ णं वरुणस्स वि देवरस चसारि पलिबोयमाई ठिती पन्नता से णं भंते! वरुणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्यपणं भवखणं, foraणं जाव महाविदेहे वाले सिज्झिहिति, जाव अंतं करेहिति ।
1
१५. [प्र०] वरुणस्स भंते! नागणसुयरस पियालयंस कालमासे कालं किया कोई गए कई उप [अ०] गोयमा ! सुकुले पचायाते ।
१६. [प्र०] से णं भंते ! तओहिंतो अनंतरं उट्टित्ता कहिं गच्छिहिति, कहिं उववज्जिहिति ? [३०] गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति, जाव अंतं काहिति । सेवं भंते ! सेवं भंते । ति ।
सत्तमसयस्स नवमओ उद्देसओ समतो ।
१४ [अ०] हे भगवन् ! नागनो पौत्र वरुण मरणसमये मरीने क्यों गयो, क्यां उत्पन्न थयो [30] हे गौतम! सौधर्म देवलोकने विषे अरुणाभनामे विमानमां देवपणे उत्पन्न थयो छे. त्यां केटलाक देवोनी आयुष्नी स्थिति चार पल्योपमनी कही छे. त्यां वरुणदेवनी पण चार पल्योपमनी स्थिति कही छे. [अ०] हे भगवन्! ते वरुणदेव देवटोकपी आयुपनो क्षय धनाधी, भवनो क्षय धमाची स्थितिनो क्ष वाय---[क्यां जशे] [३०] यावत् महाविदेह क्षेत्रने विषे सिद्धिने पाय यावत् [ सबै दुःखोनो ] अन्त करशे.
१५. [ प्र० ] हे भगवन् ! भागना पौत्र वरुणनो प्रिय बालमित्र मरणसमय मरण पामान क्या गयो, क्या उत्पन्न भयो ? [उं०] हे गौतम ! ते कोइ सुकुलमां उत्पन्न थयो छे.
१६. [प्र० ] हे भगवन् ! त्यांथी मरीने तुरत ते [ वरुणनो वाल मित्र ] क्यां जशे ! [उ०] हे गौतम! ते महाविदेह क्षेत्रमां सिद्धिने पामशे, यावत् [ सर्व दुःखोनो ] अन्त करशे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, [ एम कही गौतम यावत् विचरे छे ]
Jain Education International
सातमा शतकनो नवमो उद्देशक समाप्त.
१ गच्छेद्दिति ख, गच्छहिति । २ उबवजहि-घ ।
For Private & Personal Use Only
वरुण मरीने क्य गयो १
वरुण देवलोकी चवी मोक्ष जशे
घरुणनो मिश्र मरीने क्या गयो ?
चरुणनो मिश्र त्यांची क्या अशे
www.jainelibrary.org/