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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ७.-उद्देशक. ८. ६. [प्र०] से गृणं भंते ! हत्थिरस य कुंथुस्स य समा चेव अपचक्खाणकिरिया कजति [उ.] इंता, गोयमा! पत्थिस्स य कुंथुस्स य जाव कजति। [म] से फेणटेणं भंते ! एवं बुधा जाप कजा [उ० ] गोयमा ! अविरतिं पशुण, से तेणटेणं जाव कजाइ ।
७.प्र. आहाफम्म णं भंते ! भुंजमाणे किं बंधह, किं पकरेइ, किंचिणाइ, किं उवचिणार? [उ.] एवं जहा पदमे सए नवमे उद्देसए तहा भाणियचं, जाव सासए पंडिए, पंडियतं असासयं । सेवं भंते !, सेवं भंते ! ति ।
सत्तमस्स सयस्स अट्ठमो उद्देसो समत्तो ।
पाथी अने कुंथुने समान अप्रत्यास्यान किया.
६. [प्र०] हे भगवन् ! खरेखर हाथी अने कुंथुने अप्रत्याख्यान क्रिया समान होय ! [उ०] हा, गौतम ! हाथी अने कुन्थुने यावत् अप्रत्याख्यान क्रिया समान होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी एम कहो छो के हाथी अने कुन्थुने समान अप्रत्याख्यान क्रिया होय ? [उ०] हे गौतम! अविरतिने आश्रयी, ते हेतुथी यावत् हाथी अने कुंथुने समान अप्रत्याख्यान क्रिया होय.
অন্ধ,
७. [प्र०] हे भगवन् | आधाकर्म आहारने खानार [ साधु ] शुं बांधे, शुं करे, शेनो चय करे अने शेनो उपचय करे ? [उ०] जेम *प्रथम शतकना नवमां उद्देशकमां कयुं छे ए प्रमाणे यावत् पंडित शाश्वत छे, पण पंडितपणुं अशाश्वत छे' त्यां सुधी कहे,. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे [एम कही गौतम यावत् विचरे छे].
सातमां शतकमां आठमो उद्देशक समाप्त.
७. *पृ. २१०. प्र. ३०३-३०९. अवशिष्ट अंश-हे गौतम ! आधाकर्म आहारने खानार [साधु] आयुषकर्म शिवाय सातकर्मनी प्रकृतिको शिथिलबंधथी बंधायेली होय तो तेनो गाढ बन्ध करे छे, यावत् संसारमा भ्रमण करे छे.
अवशिष्ट अंश-हे भगवन् ! अस्थिर वस्तु परावर्तन पामे, स्थिर वस्तु परावर्तन न पामे ! अस्थिर वस्तु भांगे, स्थिर न भांगे ? बालक शाश्वत ले, बालका अशाश्वत छे ? पंडित शाश्वत छे, पंडितपणुं अशाश्वत छे ! [उ.] हे गौतम ! अस्थिर वस्तु परावर्तन पामे, यावत् पंडितपणुं अशाश्वत छे.
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