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________________ ३१६ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १३.-उद्देशक ४. १९. [प्र०] एगे भंते ! धम्मत्थिकायपदेसे केवतिपहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे ? [उ०] गोयमा ! जहन्नपदे तिहि, उक्कोसपदे छहिं । [प्र०] केवतिपहिं अहम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे? [उ०] गोयमा ! जहन्नपए चउहिं, उकोसपए सत्तहि । प्रि०] केवतिपहिं आगासत्थिकायपएसेहिं पुढे ? [उ०] गोयमा! सत्तहिं । [प्र०] केवतिपहिं जीवत्थिकायपएसोहि पुटे ? [उ०] गोयमा! अणंतेहिं । प्र०] केवतिपहिं पोग्गलत्थिकायपएसेहिं पुढे ? [उ०] गोयमा! अणंतेहिं । प्र०] केवतिपहिं अद्धासमएहिं पुढे? [उ०] सिय पुढे सिय नो पुट्टे, जइ पुढे नियम अणंतहि । २०. [प्र०] एगे भंते ! अहम्मत्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे ? [उ०] गोयमा ! जहन्नपए चउहि, उक्कोसपए सत्तहिं । [प्र०] केवतिएहिं अहम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे ? [उ०] जहन्नपए तिहिं, उक्कोसपए छहिं, सेसं. जहा धम्मत्थिकायस्स। २१. [प्र०] एगे भंते ! आगासत्थिकायपएसे केवतिपहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे ? [उ०] गोयमा ! सिय पुढे सिय नो पुढे, जइ पुढे जहन्नपदे एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा चउहिं वा, उक्कोसपए सत्तहिं । एवं अहम्मत्थिकायप्पएसेहि वि । ८ मस्तिकायप्रदेश १९. [प्र०] हे भगवन् ! धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायेलो होय ? [उ०] हे गौतम ! *जघधर्मास्तिकायनोएक स्पर्शनाद्वार... न्यपदे त्रण प्रदेशोवडे, अने उत्कृष्टपदे छ प्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय. [प्र०] केटला अधर्मास्तिकायना. प्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय ! [उ०] प्रदेश धर्मास्तिका- हे गौतम! जघन्यपदे चिार, अने उत्कृष्ट पदे सात अधर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय. (प्र० केटला आकाशास्तिकायना प्रदे शोबडे स्पर्शायलो होय ? [उ०] हे गौतम ! आकाशास्तिकायना सात प्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय. [प्र०] केटला जीवास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय ? [उ०] हे गौतम ! जीवास्तिकायना अनन्त प्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय. [प्र०] केटला पुद्गलास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय ? [उ०] हे गौतम ! पुद्गलास्तिकायना अनन्तप्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय. [प्र०] केटला अद्धा-काल-ना समयोवडे स्पर्शायलो होय ? [उ०] कदाचित् कालना समयोवडे स्पर्शायलो होय अने कदाचित् स्पर्शायलो न होय. जो स्पर्श करायलो होय तो अवश्य अनन्तसमयोवडे स्पर्श करायेलो होय. २०. [प्र०] हे भगवन् ! अधर्मास्तिकायनो एक प्रदेश केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायेलो होय ? [उ०] हे गौतम ! जघएक प्रदेश. न्यपदे चार, अने उत्कृष्टपदे सात धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेलो होय. [प्र०] केटला अधर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेलो होय ? [उ०] हे गौतम ! जघन्यपदे त्रण अने उत्कृष्टपदे छ प्रदेशोवडे स्पर्श करायेलो होय. बाकी बधुं धर्मास्तिकायना प्रदेशनी पेठे कहे,. आकाशास्तिकायनो २१. [प्र०] हे भगवन् ! आकाशास्तिकायनो एक प्रदेश केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेलो होय ! [उ०] हे गौतम ! एक प्रदेश ||कदाचित् [लोकने आश्रयी ] स्पर्श करायेलो होय अने कदाचित् [अलोकने आश्रयी ] स्पर्श करायेलो न होय. जो स्पर्श करायेलो होय १९ * अहिं जघन्यपद लोकान्तना कोणने विषे होय छे, ते भूमिने नजीक ओरडाना कोणनी पेठे जाणवू. स्थापना]- त्या धर्मास्तिकायना एक प्रदेशने उपरना एक प्रदेश अने पासेना बे प्रदेशो-एम धर्मास्तिकायना त्रण प्रदेशोनी स्पर्शना होय छे. भने उत्कृष्टपदे ... चार दिशाना चार प्रदेशो भने ऊर्ध्व तथा अधोदिशाना एक एक प्रदेश मळीने छ प्रदेशनी स्पर्शना होय छे. स्थापना-6. . धर्मास्तिकायना एक प्रदेशने जघन्यपदे जेम धर्मास्तिकायना त्रण प्रदेशनी स्पर्शना कही छे, तेवी रीते अधर्मास्तिकायना त्रण प्रदेशनी स्पर्शना तथा धर्मास्तिकायना एक प्रदेशने स्थाने रहेला अधर्मास्तिकायना एक प्रदेशनी स्पर्शना-मळीने चार प्रदेशनी स्पर्शना होय छे. भने उत्कृष्टपदे छ दिशाना छ प्रदेशो अने धर्मास्तिकायना प्रदेशने स्थाने रहेला एक अधर्मास्तिकायनी प्रदेशनी एम सात प्रदेशनी स्पर्शना होय छे. लोकान्ते पण अलोकाकाश होवाथी पूर्वोक्त सात आकाशास्तिकायना प्रदेशनी स्पर्शना होय छे. . एक धर्मास्तिकायना प्रदेशने विषे अने तेनी पासे अनन्तजीवना अनन्त प्रदेशो विद्यमान होवाथी ते जीवना अनन्त प्रदेशो वडे स्पर्शायेल होय. ए प्रमाणे पुद्गलास्तिकायना अनन्त प्रदेशोवडे पण स्पर्शायलो होय. ___ अद्धासमय मात्र समयक्षेत्र-अढी द्वीपमा होय छे, तेनी बाहेर नथी, केमके समयादिक काल सूर्यनी गतिद्वारा निष्पन्न थाय छे, तेथी कदाचित् धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश स्पर्शायेल होय अने कदाचित् न होय. जो स्पर्शायेल होय तो अनन्त अद्धासमयो वडे स्पर्शायेल होय, केमके ते अनादि होवाथी तेने अनन्त समयनी स्पर्शना होय छे. अथवा वर्तमानसमयविशिष्ट अनन्त द्रव्यो ते अनन्त समय कहेवाय छ, माटे अनन्त समयोवडे स्पृष्ट कहेवाय छे. २० $ अधर्मास्तिकायना एक प्रदेशनी वाकीना द्रव्योना प्रदेशोनी साथे स्पर्शना धर्मास्तिकायप्रदेशनी स्पर्शनाने अनुसारे जाणवी. - २१|| आकाशास्तिकायनो एक प्रदेश लोकने आश्रयी धर्मास्तिकायना प्रदेश वडे स्पृष्ट होय छे, अने अलोकने आश्रयी स्पृष्ट होतो नथी. जो स्पृष्ठ होय तो जघन्य पदे १ लोकान्तमा वर्तमान धर्मास्तिकायना एक प्रदेश वडे अलोकाकाशना अग्रभागमा वर्ततो एक आकाश प्रदेश स्पृष्ट होय, २ वक्रगत आकाशप्रदेश धर्मास्तिकायना बे प्रदेश वडे स्पृष्ट होय, ३ जे अलोकाकाशना प्रदेशनी आगळ, नीचे अने उपर धर्मास्तिकायना प्रदेशो छे ते धर्मास्तिकायना त्रण प्रदेशो पडे स्पृष्ट होय. ४ लोकान्तने विषे खुणामा रहेलो आकाशप्रदेश ते तदाधित प्रदेश, उपरना के नीचेना अने बे दिशामा रहेला बे प्रदेश-ए रीते चार धर्मास्तिकायना प्रदेशो बडे स्पृष्ट होय. ५जे आकाशनो प्रदेश उपरना, नीचेना, बे दिशाना अने त्यांज रहेला धर्मास्तिकायना प्रदेशथी स्पृष्ट होय ते पांच प्रदेशो वडे स्पीय. ६ जे उपर, नीचे, त्रण दिशा अने त्यांज रहेला धर्मास्ति कायना प्रदेशो वडे स्पीय ते छ प्रदेशो वडे स्पृष्ट होय. ७ अने जे उपर, नीचे, चार दिशामा अने त्यां रहेला प्रदेशो वडे स्पर्शाय ते धर्मास्तिकायना सात प्रदेशो वडे स्पृष्ट होय. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकायना प्रदेशो वडे स्पर्शना जाणवी. 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SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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