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________________ शतक १३.-उद्देशक ४. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ३१७ [प्र०] केवतिएहिं आगासस्थिकायपएसेहिं पुढे ? [उ.] छहि । [प्र०] केवतिपहिं जीवत्थिकायपएसहिं पुढे १ [उ०] सिय पुढे सिय नो पुढे, जब पुढे नियमं अणंतेहिं । एवं पोग्गलस्थिकायपएसेहि वि, अद्धासमपहि वि। २२. प्रग एगे भंते ! जीवत्थिकायपएसे केवतिपहिं धम्मत्थिकाय-पुच्छा। [उ०] जहन्नपदे चउहि, उकोसपए सत्तहिं। एवं अहम्मत्थिकायपएसेहि वि।[4] केवतिपहिं आगासस्थिकाय-पुच्छा। [उ.] सत्तहिं। [प्र०] केवतिपहिं जीवत्थि? [उ०] सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स ।। २३. [०] एगे भंते ! पोग्गलत्थिकायपएसे केवतिपहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं० १ [उ०] एवं जहेव जीवत्थिकायस्स । २४. प्रान दो भंते ! पोग्गलत्थिकायप्पएसा केवतिपहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुट्टा ? [उ०] गोयमा ! जहन्नपए छहिं, उकोसपए बारसहिं । एवं अहम्मत्थिकायपएसेहि वि। [प्र०] केवतिएहिं आगासत्थिकाय? [उ०] बारसहिं, सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स। २५. [प्र०] तिन्नि भंते ! पोग्गलत्थिकायपएसा केवतिपहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुट्ठा ? [उ०] जहन्नपए अट्ठहिं, उकोसपए सत्तरसहिं । एवं अहम्मत्थिकायपएसेहि वि । [प्र. केवतिपहिं आगासथि० १ [उ० सत्तरसहि, सेसं जहा धम्म तो जघन्यपदे एक, बे, त्रण के चार धर्मास्तिकायना प्रदेशवडे स्पर्श करायेलो होय, अने उत्कृष्टपदे सात प्रदेशोवडे स्पर्श करायेलो होय. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकायना प्रदेशोनी साथे पण स्पर्श जाणवो. [प्र०] केटला आकाशास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ? [उ०] हे गौतम ! छ प्रदेशोबडे स्पर्श करायेल होय. [प्र०] केटला जीवास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय? [उ०] कदाचित् स्पर्श करायेलो होय अने कदाचित् स्पर्श न करायेलो पण होय. जो स्पर्श करायेलो होय तो अवश्य अनन्त प्रदेशोवडे स्पर्श करायेलो होय. ए प्रमाणे पुद्गलास्तिकायना प्रदेशोवडे अने अद्धा-कालना समयोवडे पण स्पर्शना जाणवी. २२. प्र०] हे भगवन्! जीवास्तिकायनो एक प्रदेश केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेलो होय-ए प्रश्न. उ०] जीवास्तिकायनो एक जघन्यपदे चार अने उत्कृष्टपदे सात प्रदेशोवडे स्पर्श करायेलो होय. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे पण स्पर्श करायेल होय. [प्र०] प्रदेश. केटला आकाशास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ? [उ०] सात प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय. [प्र०] केटला जीवास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ? [उ०] बाकी बधुं धर्मास्तिकायनी पेठे जाणवू. २३. [प्र०] हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकायनो एक प्रदेश केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ! [उ०] जेम जीवा- पुनलास्तिकायनो स्तिकायना एक प्रदेश संबन्धे कयुं तेम अहिं जाणवू. एक प्रदेश २४. [प्र०] हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकायना बे प्रदेशो केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेला होय ! (उ०] हे गौतम! पुद्गलास्तिकायना बे *छ प्रदेशोवडे, अने उत्कृष्टपदे बार प्रदेशोवडे स्पर्श करायेला होय. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे पण स्पर्शना जाणवी. प्रदेशो. प्र०] केटला आकाशास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेला होय ? उ०] बार प्रदेशोवडे स्पर्श करायेला होय. बाकी बधुं धर्मास्तिकायनी पेठे जाणवं. २५. [प्र०] हे भगवन् ! त्रण पुद्गलास्तिकायना प्रदेशो केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेला होय ? [उ०] जघन्यपदे पुद्गलास्तिकायना आठ, अने उत्कृष्टपदे सत्तर प्रदेशोवडे स्पर्श करायेला होय. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे पण स्पर्श करायेला होय. प्र०] केटला त्रण प्रदेशो. २४ * अहिं चूर्णिकारनुं आवा प्रकारचें व्याख्यान छ-"लोकान्ते द्विप्रदेशिक स्कन्ध एक प्रदेशने अवगाहीने रहेलो छे, तो पण ते प्रदेशने 'प्रतिद्रव्यनी अवगाहना होय छे' ए नयमतनी विवक्षाथी अवगाह प्रदेश एक छतां पण भिन्न मानवाथी ते बे प्रदेशो वडे स्पर्शायेलो छे, तथा जे तेनी उपरनो के नीचेनो प्रदेश छे ते पण नयना मतथी बे प्रदेशथी स्पर्शायेलो छे, अने पासेना बे अणुओ एक एक प्रदेशनो स्पर्श करे छे-आ प्रमाणे धर्मास्तिकायना छ प्रदेशो वडे क्यणुक स्कन्धनो स्पर्श थाय छे. नयना मतनो आश्रय न करीए तो ह्यणुक स्कन्धने चार प्रदेश नी जघन्य स्पर्शना होय छे." वृत्तिकार आ प्रमाणे कहे छे-।। "अहिं जे बे बिंदुओ छे ते बे परमाणुओ जाणवा, तेमां आ तरफनो परमाणु आ तरफना धर्मास्तिकायना प्रदेश वडे स्पर्श करायेल होय, भने :पेली तरफनो परमाणु पेली तरफना धर्मास्तिकायप्रदेश पडे स्पृष्ट होय-ए प्रमाणे बे प्रदेशो, तथा जे ये प्रदेशोमा बे परमाणुओ स्थापित करेला छेतेनी आगळना बे प्रदेशोवडे स्पर्श करायेला होय-ए प्रमाणे चार थया, अने बे अवगाढ प्रदेशनी स्पर्शना होय-एम छ प्रदेशनी स्पर्शना होय. उत्कृष्ट बार प्रदेशनी स्पर्शना होय छे, ते आ प्रमाणे - द्विपदेशावगाढ होवाथी बे प्रदेश, बे उपरना अने बे नीचेना, पासेना बब्बे, अने उत्तर दक्षिणनो एक एक मळीने बार प्रदेशनी । स्पर्शना होय छे. २५ पुद्लास्तिकायना त्रण प्रदेशने एक प्रदेशावगाढ छतां पूर्वोक्त नयना मतथी अवगाढ त्रण प्रदेश, नीचेना के उपरना प्रण प्रदेश भने पासेना बे प्रदेश-ए प्रमाणे धर्मास्तिकायना आठ प्रदेशनी स्पर्शना होय छे. अहिं बधा जघन्य पदे विवक्षित परमाणुथी बमणा करी अने बे अधिक करीए एटला प्रदे. शोनी स्पर्शना होय छे. अने उत्कृष्टपदे विवक्षित परमाणुथी पांचगुणा करी बे अधिक करीए एटला प्रदेशनी स्पर्शना होय छे. तेमा एक परमाणुने बमणा करीए अंने बे सहित करीए एटले जघन्यपदे चार प्रदेशनी स्पर्शना होय, अने उत्कृष्टपदे एक परमाणुने पांच गुणा करीए अने बे सहित करीए एटले सात प्रदेशनी स्पर्शना होय छे. ए प्रमाणे घणुक-त्र्यणुकादिने विषे जाणवू-टीका. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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