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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १३.-उद्देशक ४. प्रा कहि णं भंते ! उद्दलोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते ? [उ०] गोयमा! उप्पि सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं हेर्टि बंभलोए कप्पे रिटुविमाणे पत्थडे पत्थ णं उडलोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते।
... कहिनं भंते ! तिरियलोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते ? [उ०] गोयमा। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पवयस्स बहुमझदेसभाए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेढिल्लेसु खुड्डागपयरेसु एत्थ णं तिरियलोगस्स मज्झे अट्टपएसिए रुयए पण्णत्ते, जओ णं इमाओ दस दिसाओ पवहंति, तंजहा-१ पुरच्छिमा, २ पुरच्छिमदाहिणा-एवं जहा दसमसए जावनामधेजं ति।
१०. [प्र०] इंदा णं भंते ! दिसा १ किमादीया, २ किंपवहा, ३ कतिपदेसादिया, ४ कतिपदेसुत्तरा, ५ कतिपदेसिया, ६ किंपजवसिया, ७ किंसंठिया पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा! इंदा गं दिसा १ रुयगादीया, २ रुयगप्पवहा, ३ दुपएसादीया, ४ दुपएसुत्तरा, ५ लोगं पडुच्च असंखेजपएसिया, अलोगं पडुच्च अणंतपएसिया, ६ लोगं पडुच्च साईया सपजवसिया, अलोगं पडुच्च साईया अपजवसिया, ७ लोगं पडुच्च मुरजसंठिया, अलोगं पडुच्च सगडुद्धिसंठिया पन्नत्ता।
११. [प्र०] अग्गेयी णं भंते! दिसा १ किमादीया, २ किंपवहा, ३ कतिपएसादीया, ४ कतिपएसविच्छिन्ना, ५ कतिपएसिया, ६ किंपजवसिया, ७ किंसंठिया पन्नत्ता? [उ०] गोयमा! अग्गेयी णं दिसा १ रुयगादीया, २ रुयगप्पवहा, ३ एगपएसादीया, ४ एगपएसविच्छिन्ना, ५ अणुत्तरा लोगं पडुच्च असंखेजपएसीया, अलोगं पडुश्च अणंतपएसीया, ६ लोगं पडुच्च साइया सपजवसिया, अलोगं पडुश्च साइया अपज्जवसिया, छिन्नमुत्तावलिसंठिया पण्णत्ता । जमा जहा इंदा, नेरी जहा अग्गेयी । एवं जहा इंदा तहा दिसाओ चत्तारि, जहा अग्गेई तहा चत्तारि वि विदिसाओ।
१२. [प्र०] विमला णं भंते! दिसा किमादीया०-पुच्छा जहा अग्गेयीए। [उ.] गोयमा! विमला गं दिसा १ रुयगादीया, २ रुयगप्पवहा, ३ चउप्पएसादीया, ४ दुपएसविच्छिन्ना, अणुत्तरा लोगं पडुच सेसं जहा अग्गयीए, नवरं व्यगसंठिया पण्णत्ता, एवं तमा वि।
कचलोकमध्य. ८. [प्र०) हे भगवन् ! क्यां ऊर्ध्वलोकनी लंबाईनो मध्यभाग कहेलो छे ? [उ०] हे गौतम ! सनत्कुमार अने माहेन्द्र देवलोकना
उपर अने ब्रह्मदेवलोकनी नीचे रिष्ट नामे त्रीजा प्रतरने विषे अहिं ऊर्ध्वलोकना आयामनो मध्य भाग कहेलो छे. तिर्यग्लोकमध्य ९. [प्र०] हे भगवन् । तिर्यग् लोकना आयामनो मध्यभाग क्या कहेलो छे ? [उ०] हे गौतम ! जंबूद्वीपमा मेरुपर्वतना बरोबर मध्य
भागने विषे आ रत्नप्रभा पृथिवीना उपर अने नीचेना क्षुद्र (सर्व करतां लघु) एवा बे प्रतरो छे, तेने विषे तिर्यग्लोकना मध्यभागरूप
आठ प्रदेशनो रुचक कहेलो छे, ज्यांथी आ दश दिशाओ नीकळे छे, ते आ प्रमाणे-१ पूर्वदिशा, २ पूर्वदक्षिण, इत्यादि जेम दशम
. शतकना *प्रथम उद्देशकने विषे कहुं छे ते प्रमाणे यावत् 'दिशाना दश नाम छे'- त्यां सुधी जाणवू. ६ दिशा-विदिशा
१०. प्र०] हे भगवन् । १ ऐन्द्री (पूर्व) दिशानी आदिमां शुं छे ! २ ते क्याथी नीकळे छे ? ३ तेनी आदिमां केटला प्रदेशो प्रवदवार.
छे! ४ केटला प्रदेशोनी उत्तरोत्तर वृद्धि थाय छे ! ५ ते केटला प्रदेशनी छे ? ६ तेनो अन्त क्यां छे ! अने ७ ते केवा आकारे कहेली ऐन्द्री दिशा क्याथी नीकळे । छे ? [उ०] हे गौतम ! १ ऐन्द्री दिशानी आदिमां रुचक छे, २ ते रुचक थकी नीकळे छे, ३ तेनी आदिमां बे प्रदेशो छे, ४ बे प्रदेशनी
उत्तरोत्तर वृद्धि थाय छे, ५ लोकने आश्रयी ते असंख्यातप्रदेशवाळी छे, अलोकने. आश्रयी अनन्तप्रदेशात्मक छे, ६ लोकने आश्रयी आदि अने अन्तसहित छे, अने अलोकने आश्रयी सादि अने अनन्त छे, ७ लोकने आश्रयी मुरज-मृदंगने आकारे छे, अने अलोकने आश्रयी
गाडानी ऊधने आकारे कहेली छे. आग्नेयी. ११. [प्र०] हे भगवन् ! १ आग्नेयी दिशानी आदिमां शुं छे ! २ ते क्याथी नीकळे छे ? ३ तेनी आदिमां केटला प्रदेशो छ । ४
ते केटला प्रदेशना विस्तारवाळी छे ! ५ ते केटला प्रदेशनी छे? ६ तेने अन्ते शुं छे ! ७ अने ते केवा आकारे छे! [उ०] हे गौतम ! १ आग्नेयी दिशानी आदिमा रुचक छे, २ ते रुचक थकी नीकळे छे, ३ तेनी आदिमा एक प्रदेश छे, ४ ते एक प्रदेशना विस्तारवाळी छे, ५ ते उत्तरोत्तर वृद्धिरहित छे, अने लोकने आश्रयी असंख्यप्रदेशात्मक छे, अलोकने आश्रयी अनन्त प्रदेशात्मक छे, ६ लोकने आश्रयी
आदि अने अन्त सहित छे, अने अलोकने आश्रयी सादि अने अनन्त छे. अने ७ ते तूटी गएली मोतीनी माळाना आकारे कहेली छे. याम्या दक्षिण. याम्या (दक्षिण) दिशा ऐन्द्री (पूर्व) दिशानी पेठे जाणवी. नैर्ऋती आग्नेयी दिशानी पेठे जाणवी-इत्यादि जेम ऐन्द्री दिशा कही, तेम चारे नैकवी.
दिशाओ अने आग्नेयी दिशा कही तेम चारे विदिशाओ जाणवी. अध्वंदिशा. १२. [प्र०] हे भगवन् ! विमला (ऊर्ध्व) दिशानी आदिमां शुं छे ? इत्यादि आग्नेयीनी पेठे प्रश्न करवो. [उ०] हे गौतम ! १
विमला दिशानी आदिमां रुचक छे, २ ते रुचक थकी नीकळे छे, ३ तेनी आदिमा चार प्रदेश छे, ४ ते बे प्रदेशना विस्तारवाळी छे, ५.
उत्तरोत्तर वृद्धि रहित ते दिशा लोकने आश्रयी असंख्यातप्रदेशात्मक छे. बाकी बधुं आग्नेयी दिशाने विषे कयुं छे तेम जाणवू. परन्तु तमादिशा.
एटलो विशेष छे के ते रुचकने आकारे कहेली छे. ए प्रमाणे तमा (अधो) दिशा पण जाणवी.
९. भग• खं० ३ ० १० उ०१ पृ. १८८.
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