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________________ तक १३ देशक४. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ३१३ हियतरा चेव अप्पजुइयतरा चेव । छट्टीए णं तमाए पुढवीए नरगा पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए नरपर्हितो महत्तरा चेव ४, नो ता महप्पसणारा देव ४ तेसु णं नरपसु नेरतिया पंचमाए धूमप्पभाष पुढचीप नेरहपहिंतो महाकम्मतरा चेव ४ नो तहा अप्पकम्मतरा चेव ४; अप्पयितरा चेच २ नो तदा महट्टियतरा चैष २ पंचमाप णं धूमप्पभाष पुढचीर तिनि निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता एवं जहा छट्टीए भणिया एवं सत्त वि पुढवीओ परोप्परं भण्णंति जाव- रयणप्पभंति, जाव-नो सहा महिपतरा चेव, अप्पत्तियतरा चेव । ३. [२०] रवणप्यनापुढविनेरचा नं भंते! केरिसयं पुढयिकासं पचणुम्भयमाणा विरंति [४०] गोयमा मणिहूं, साप-अमणामं एवं जाय-असत्तमपुढविनेरया एवं आउफासं, एवं जाय वणरसइफासं । ४. [0] इमाणं भंते! रयणप्पभापुढवी दोघं सकरप्पभं पुढविं पणिहाय सङ्घमहंतिया बादल्लेणं, सङ्घखुड़िया सवंतेसु० [४०] एवं जहा जीवाभिगमे चितिए नेरइयउद्देसए । ५. [प्र० ] इमीसे णं भंते! रयणप्यभार पुढवीर णिरयपरिसामंतेसु जे पुढविकाश्या० १ [४०] एवं जहा नेप आव सत्तमा । ६. [प्र०] कहि मं भंते! लोगस्स आयाममध्ये पण्णत्ते १ [४०] गोयमा ! हमीसे णं रयणप्पभाप उपासंतररस असंजतिभागं ओगाहेत्ता एत्थ णं लोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते । ७. [प्र०] कहि णं मंते ? अहेलोगस्स मायाममज्झे पष्णते ? [30] गोयमा ! चउत्थीप पंकष्पभाष पुढची उच्चातरस्स सातिरेगं भद्धं ओगाहिता पत्य णं अहेलोगस्स आयाममजले पण्णत्ते । नरकावासोथी अत्यन्तमोटा छे- इत्यादि चार बोल कहेवा. परन्तु तेनी पेठे ते महाप्रवेशवाळा नथी, अर्थात् तेमां घणा जीवो प्रवेश करता नथी. ते नरकावासोमां नारकीओ पांचमी धूमप्रभा पृथिवीना नारको करतां महाकर्मवाळा छे ४, परन्तु तेवा अल्पकर्मवाळा नथी-४, ते अल्पऋद्धिवाळा छे, परन्तु ते प्रमाणे ते अत्यन्त महर्द्धिक नथी. पांचमी धूमप्रभा नरकपृथिवीमां त्रण लाख नरकावासो कहेला छे- इत्यादि जेम छट्ठी तमापृथिवी संबंधे कह्युं, तेम साते नरकपृथिवीओ संबन्धे परस्पर यावत् - 'रत्नप्रभा' - सुधी कहेतुं, यावत् - तेथी [ शर्कराप्रभाना नारको ] महाऋद्धिवाळा नथी, पण अल्पद्युतिवाळा छे. ३. [प्र० ] हे भगवन् ! रनप्रभा पृथिवीना नारको केवा प्रकारना पृथिवीना स्पर्शने अनुभवता बिहरे छे [अ०] हे गौतम! "अनिष्ट, यावत्–मनने प्रतिकूळ–[पृथिवीना स्पर्शने अनुभवता विहरे छे. ] इत्यादि यावत् - अधः सप्तम पृथिवीना नारको संबंधे जाणवुं, ए [अनिष्ट अने प्रतिकूल ] पाणीना स्पर्शने, यावत् - वनस्पतिना स्पर्शने ( अनुभवता विहरे छे.) ४. [प्र० ] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवी बीजी शर्कराप्रमापृथिवीनी अपेक्षाए जाडाइमां सर्व करतां मोटी छे अने चारे दिशाए लंबाई पदोव्यइमां सर्वधी न्हानी छे [उ०] हा गौतम इयादि जैम जीवाभिगम सूत्रना बीजा नैरधिक उद्देशकमा कि तेम अहिं जाण. ५. [प्र० ] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीना नरकावासोनी आसपास जे पृथिवीकायिक जीवो छे, यावत्-वनस्पतिकायिक जीवो छे ते [महाकर्मवाळा खने महावेदनावाळा [४०] दा, गौतम !] इल्यादि जैम जीवामिगम सूत्रना नैरयिक उद्देशकमा कर्ता छे तेम * यावत् — अधः सप्तमनरकपृथिवी सुधी जाणवुं. ६. [ प्र० ] हे भगवन् ! लोकना आयाम - लंबाईनो मध्य भाग क्यां कहेलो छे ? [उ०] हे गौतम! आ रत्नप्रभा पृथिवीना आकाशना लंडनो असंख्यातमो भाग उल्लंघन कर्ता पछी अहीं छोकना आपागनो मध्यभाग कहेलो छे. ७. [प्र०] हे भगवन् ! क्यां अधोलोकना आयाम - लंबाईनो मध्य भाग कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम! चोथी पंकप्रभा पृथिवीना आकाशना खंडनो कंइक अधिक अरधो भाग उल्लंघन कर्या पछी अहिं अधोलोकना आयामनो मध्य भाग कहेलो छे. ३ # जुओ जीवा• प्रति० ३३० २०१२७-१. यावत् शब्दमी जराविक अनेकानि करना, बादर तेजस्काधिक मात्र समयक्षेत्रने विषे न होय के मरने विषे तेनो सद्भाव होतो नथी, परन्तु त्यां अभिसमान उष्ण अन्य वस्तुओं होय छे, तेथी 'तेजस्कायिकना स्पर्शने अनुभवे छे' एम कभुं छे-टीका. ४+ जीवा • प्रति० ३ उ० २ १० १२७- १. रत्नप्रभा पृथिवी जाडाइमां एक लाख भने एंशीहज़ार योजनप्रमाण होवाथी सर्व करतां मोटी छे, अने शर्कराप्रभा योजनमा दोवाची तेनाची न्हानी छे तेमज रनप्रभा लंबाई अने पोलाइमां एक रनु (राज) प्रमाण के तेथी हानी छे प्रमाण होवाची मोटी केटीका. ५ जीवा० प्रति० ३०२०१२७-२ ४० भ० सू० Jain Education International For Private & Personal Use Only एक लाख भने बत्रीश हजार भने पार्कप्रभा देवी अधिक २ स्पर्शद्वार. ३ प्रणिभिदार. ४ निरयान्तद्वार. ५. कोकमध्यदार. मोकोकमध्य. www.jainelibrary.org/
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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