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शतक १२.-उद्देशक ९. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
२९३ ३३. [प्र०] धम्मदेवस्स णं पुच्छा। [उ०] गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमपुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं, जाव-अवडं पोग्ग. लपरियट्ट देसूणं ।
३४. [प्र०] देवाधिदेवाणं पुच्छा। [1०1 गोयमा! नत्थि अंतरं। ३५. [प्र०] भावदेवस्स णं पुच्छा। [उ०] गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-वणस्सइकालो।
३६. [प्र०] एएसि णं भंते ! भवियदचदेवाणं, नरदेवाणं, जाव-भावदेवाण य कयरे कयरोहिंतो जाव-विसेसाहिया वा ? [उ०] गोयमा ! सवत्थोवा नरदेवा, देवाधिदेवा संखेजगुणा, धम्मदेवा संखेजगुणा, भवियदधदेवा असंखेजगुणा, भावदेवा असंखेजगुणा।
३७. [प्र०] एएसि णं भंते ! भावदेवाणं भवणवासीणं, वाणमंतराणं, जोइसियाणं, वेमाणियाणं सोहम्मगाणं, जाव-अधुयगाणं, गेवेजगाणं, अणुत्तरोववाइयाण य कयरे कयरेहिंतो जाव-विसेसाहिया वा? [उ०] गोयमा सवत्थोवा अणुत्तरोववाइया भावदेवा, उवरिमगेवेजा भावदेवा संखेजगुणा, मज्झिमगेवेजा संखेजगुणा, हेट्ठिमगेवेज्जा संखेजगुणा, अधुए कप्पे देवा संखेजगुणा, जाव-आणयकप्पे देवा संखेजगुणा, एवं जहा जीवाभिगमे तिविहे देवपुरिसे अप्पाबहुयं जाव-जोतिसिया भावदेवा असंखेजगुणा । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ति ।
नवमो उद्देसओ समत्ती.
३३. [प्र०] हे भगवन् ! धर्मदेवने परस्पर केटलं अन्तर होय. ए प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी *पल्योपमपृथक्त्व (बेथी धर्मदेवने परस्पर के नव पल्योपम ) अने उत्कृष्ट अनंतकाळ कंइक न्यून अपार्ध पुद्गलपरिवर्त पर्यन्त अन्तर होय.
लुं अन्तर होय! ३४. [प्र०] हे भगवन् ! देवाधिदेवने परस्पर केटलं अन्तर होय-ए संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम | तेने अिंतर नथी. देवाधिदेवने अन्तर
३५. [प्र०] भावदेवना परस्पर अन्तर संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी अंतर्मुहर्त अने उत्कृष्ट अनंतकाळ-वनस्पतिकाळ भावदेवर्नु अन्तर. पर्यन्त अन्तर होय.
३६. प्रि० हे भगवन् । भव्यद्रव्यदेवो, नरदेवो, यावद्-भावदेवोमांना कोण कोनाथी यावद्-विशेषाधिक छे! [उ०] हे गौतम! भव्यम्यदेवाविर्नु सौथी थोडा नरदेवो छे, ते करतां देवाधिदेवो संख्यातगुण छे, तेथी धर्मदेवो संख्यातगुण छे, ते करता भव्यद्रव्यदेवो असंख्यातगुण छे परस्पर अल्पमतुल्य. अने तेथी भावदेवो असंख्यातगुण छे.
३७. [प्र०] हे भगवन् ! भावदेवो भवनवासी, वानव्यंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक, सौधर्म, ईशान यावंद्-अच्युतक, प्रैवेयक तथा भावदेवनु अल्पवात. अनुत्तरौपपातिक-एओमांना कोण कोनाथी यावद्-विशेषाधिक छे ! [उ०] हे गौतम ! सर्वथी थोडा अनुत्तरौपपातिक भावदेवो छे, ते करतां उपना अवेयेक भावदेवो संख्यातगुण छे, ते करतां मध्यम प्रैवेयक भावदेवो संख्यातगुण छे, तेथी अधस्तन अवेयक भावदेवो संख्यातगुण छे, ते करतां अच्युत कल्पना देवो संख्यातगुण छे, यावद्-आनतकल्पना देवो संख्यातगुण छे. ए प्रमाणे जेम 'जीवाभिगम'सूत्रमा त्रिविध जीवना अधिकारमा देवपुरुषोनुं अल्पबहुत्व कमु छे तेम अहीं पण यावद्-'ज्योतिष्क भावदेवो असंख्येयगुण छे' त्या सुधी कहेवू. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे' [एम कही-भगवान् गौतम यावद् विहरे छे.]
द्वादश शते नवम उद्देशक समाप्त.
३३ * कोईक धर्मदेव-चारित्रयुक्त साधु सौधर्म देवलोकमा पल्योपमपृथक्त्वना आयुषवाळो देव घई त्याथी च्यवी पुनः मनुष्यपणु पामी आठ वर्ष पछी चारित्र स्वीकारे, ते अपेक्षाए कांईक अधिक पल्योपमपृथक्त्व अन्तर होय-टीका.
३४ । देवाधिदेव मोक्षे जाय छे तेथी देओने अन्तर होतुं नथी-टीका. ३. 1 जीवाभि० प्रति. २५०७१-१.
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