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धर्मदेव कथा देवोमां उत्पन्नथाय ?
देवाधिदेवो मरण पानी क्यों जाय ?
भावदेव मरण पामी क्यों जाय ?
भष्यद्रष्य देवोनी स्थिति...
मध्यद्रयदेवने वेटखाकाळनुं अन्तर होय ?
नरदेवने परस्पर के टलं अन्तर दोष ?
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श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे -
शतक १२. - उद्देशक ९.
२७. [प्र०] जइ देवेसु उववजंति किं भवणवासि पुच्छा । [ उ०] गोयमा ! नो भवणवासिदेवेसु उववजंति, नो वाणमंतर, नो जोइसिय०, वेमाणियदेवेसु उबवजंति, सधेसु वेमाणिएसु उववजंति जाव-सङ्घट्टसिद्ध अणुत्तरोववाइएसु-जाव उववजंति, अत्थेगइया सिज्यंति, जाव-अंतं करेंति ।
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२८. [प्र० ] देवाधिदेवा अनंतरं उट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववजंति ? [अ०] गोयमा ! सिज्यंति, जाव- अंत
करेंति ।
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२९. [०] [भावदेवा भंते! अनंतरं दधद्वित्ता- पुच्छा [४०] जहा वतीय असुरकुमाराणं उच्चट्टणा तथा भाषिता । ३०. [प्र० ] भवियदवदेवे णं भंते! 'भवियद्यदेवेति कलओ केवचिरं दोइ ? [30] गोषमा जघेणं अंतोमुंडु, उद्योगं तिथि पलिओदमाई, एवं जदेव ठिई समेव संचिणा वि जायभायदेषस्स, नवरं धम्मदेयस्स अहणं एवं समयं उकोसेणं देणा पुपकोडी |
३१. [प्र० ] भविषद्वदेवस्स णं भंते! फेयतियं कालं अंतरं दोइ ? [३०] गोयमा जहणं दसवाससहरसाई अंतो मुडुत्तमम्भदियाई, उकोसे अनंतं कालं यणरसइकालो ।
३२. [प्र० ] नरदेवाणं पुच्छा । [ उ०] गोयमा ! जहन्नेणं सातिरेगं सागरोवमं, उक्कोसेणं अणतं कालं - अवहं पोग्गलपरिय देणं ।
२७. [१०] जो तेओ (धर्मदेवो) देयोमा उत्पन्न धाय तो झुं भवनवासी देवोमां उत्पन्न धाग - इयादि प्रभ. [30] हे गौतम! भवनवासिदेयोगां, यानव्यंतरोमा अने ज्योतिष्फोमां उत्पन्न पता नधी, पण वैमानिक देवोमा उपल थाय छे. सर्व वैमानिकम यावत् सर्चासिद्ध अनुसरीपपातिक देयोगां यावद्-उत्पन्न धाय के अने बेटाक सिद्ध थाय छे, यावत् सर्वं दुःखोनो नाश करे छे.
२८. [प्र० ] हे भगवन् ! देवाधिदेवो अन्तररहित- तुरतज मरण पामी क्यां जाय -क्यां उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम! तेओ सिद्ध थाय, यावत् - सर्व दुःखोनो अन्त करे.
२९. [प्र० ] हे भगवन्! भावदेवो तुरतज मरण पामी क्यो जाय-ए प्रश्न. [30] 'जैम 'व्युत्क्रांति' पदमां अमुरकुमारोगी उद्वर्तना कही छे तेम अहिं भावदेवोनी पण उद्वर्तना कहेवी.
३०. [प्र० ] हे भगवन् । भव्यद्रव्यदेवो 'भव्यद्रव्यदेवरूपे' काळधी क्यांसुधी होय! [उ०] हे गौतम! जघन्यथी अंतर्मुहूर्त अने उत्कृष्टथी त्रण पल्योपम सुधी होय. ए प्रमाणे जेम भवस्थिति कही तेम संस्थिति पण यावद्-भावंदेव सुधी जाणवी. परन्तु धर्मदेव जघन्य एक समय सुधी अने उत्कृष्ट कंईक न्यून पूर्वकोटि वर्ष सुधी होय.
३१. [अ०] हे भगवन्! भव्यद्रव्यदेवने परस्पर केला काळ अंतर होय! [उ०] हे गौतम! जधन्य अंत अधिक दशहजार वर्ष, अने उत्कृष्ट अनंतकाळ वनस्पतिकाळ पर्यन्त अन्तर होय.
३२. [प्र०] हे भगवन् ! नरदेवने परस्पर केटलुं अन्तर होय - ए प्रश्न. [ उ०] हे गौतम! जघन्य "कांइक अधिक एक सागरोपम, अने ठाकूष्ट अनंतफा कांइक न्यून अर्धपुद्रलपरिवर्त पर्यन्त अन्तर होप.
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२९ प्रज्ञा० पद ६ ५० २१५-१.
३० अशुभ भावने प्राप्त कर्या पछी शुभ भावने एक समय मात्र प्राप्त करी तुरतज मरण पामे ते अपेक्षाए धर्मदेवनी जघन्य स्थिति एक समयनी
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जाणवी.
३१ईने जानीस्थित
यन्तरादि उपाय भने खांची मरी शुभ पृथ्वी आदिम कई महीने पुनः भव्यद्रव्य देव तरीके उपजे - एरीते अन्तर्मुहूर्त अधिक दशहजार वर्षेनुं अन्तर होय. अहिं कोई शंका करे छे के "देवपणाथी च्यवी तुरतज भव्यद्रव्यदेव तरीके उत्पत्ति भोगाची दस हजार वर्ष अन्तर होय, पण तूर्त अधिक फेम हो" अहिं समाधान करे व भानुपतीदेव व्ययी शुभ पृथिव्यादिमां उत्पन्न उनी प्राचीन टीकाकारनो आशयघन से मतने सरीउपर कोई अन्तर होय छे-वीजा समाधान भा प्रमाणे आपे छे - " जेणे देवनुं आयुष बांधेलं छे ते अहिं भव्यद्रव्यदेव तरीके इष्ट छे, तेथी दशहजारवर्षनी स्थितिवाळा देवभवधी व्यवी भव्यइब्यदेवपणे उत्पन्न धान भने अन्तहूर्त पछी आपनो बन्ध करे सारे पूर्वे को अन्तर घटे व्यदेव मरी देव कई सांची व्यवी वनदिने विषे अनन्तकाल पर्यन्त रही पुनः भव्यद्रव्यदेव थाय - ते अपेक्षाए उत्कृष्ट अन्तर जाणवु.
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३२ नरदेव - चक्रवर्ती कामभोगोमां आसक्त थई प्रथम नरकपृथिवीमां जघन्य सागरोपम आयुष भोगवी पुनः चक्रवर्ती थाय, अने ज्यांसुधी चकरन उत्पन्न न थाय तेटला काल अधिक एक सागरोपम जघन्य अन्तर होय. कोई सम्यग्टष्टिज चक्रवर्तीपणुं पामे, अने ते उत्कृष्ट कंईक न्यून अर्ध पुद्गलपरावर्त संसार भ्रमण करी पुनः सम्यक्त्व पानी छेवटे नरदेवत्व पामी मोक्षे जाय, ते अपेक्षाए नरदेवनुं उत्कृष्ट अन्तर होय - टीका.
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